शिक्षा एक वरदान
शिक्षा एक वरदान
स्कूल के वार्षिक उत्सव में सुमन आई थी, यह वहीं स्कूल है जहाँ से पढाई शुरू करके अपनी पढाई आगे बड़ाई थी और आज शिक्षा अधिकारी बन कर यहाँ आई थी और एक चलचित्र उसकी आँखों के आगे घुम गया।
"सुमन घर के बाहर बरतन माँझ रही थी, उसी रास्ते से दिनेश भी स्कूल के लिए निकलता था।
सुमन को देख कर उसे बड़ा दुख होता , वह सोचता :
”जिस उम्र में हम स्कूल जा रहे है, यह काम कर रही है।”
दिनेश ने यह बात स्कूल के प्राचार्य को बताई। वह बहुत सज्जन थे और बच्चों के भविष्य के लिए चिंतित रहते थे, सरकारी नियम के अनुसार उनके स्कूूूल में गरीब बच्चों के लिए सीट खाली थी।
उन्होंने सुमन की माँ से बात की।
सुमन पढ़ लिख कर अधिकारी बनना चाहती थी। प्राचार्य ने
सुमन को स्कूल में एडमिशन और छात्रवृत्ति का इन्तजाम करवाया जिससे वह पढाई भी करे और उसके घर की जरूरत भी पूरी हो सके। प्राचार्य
कहा- "अब मैं अनुरोध करूँगा सुमन मेडम से वह अपने विचार व्यक्त करें।”
सुमन की आँखो के आगे चल रहा चलचित्र बिखर गया था और उसने बिना झिझक अपनी बरतन माँझने सेे आज तक के सफर की बात सब को बताई।
आगे उसने कहा- ”शिक्षा के लिए इच्छाशक्ति होनी चाहिए, राह खुद बनती जाती है यह वरदान है। कठिन परिस्थितियों का सामना करते हुए भी शिक्षा नहीं छोड़नी चाहिए, तभी हम अपने लक्ष्य तक पहुँच पायेंगे।“
सुमन प्यार से बच्चों को आशीर्वाद देते हुए सबसे बहुत खुशी से मिल रही थी।
