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Bhushan Patil

Thriller

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Bhushan Patil

Thriller

शैतानी रास्ता

शैतानी रास्ता

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वैसे तो इस बात को 10 साल गुजर चुके है। पर आज भी उस भयानक घटना को याद कर मेरी रूह तक कांप जाती है। मेरा नाम मुकेश है। ये बात उस समय की है जब में कॉलेज के पहले साल में पढ़ाई किया करता था। दीवाली से पहले ही हमारे पहले सेमेस्टर की परीक्षा हो गयी थी। इसीलिए हमे उस बीच 25 दिनों का वेकेशन मिला था। दीवाली आने को अभी 3 दिन बाकी थे।

मुझे शांत जगहों पर जाना अच्छा लगता था। पर मेरी पढ़ाई के चलते में व्यस्त रहता था। पर इस बार मैने सोच लिया था कि मैं अपने मामा के गाँव जाऊँगा। मैं 3 साल से वहाँ नहीं गया था। पर इस बार मैने पक्का जाने का मन बना लिया था। पापा काम में व्यस्त होने की वजह से वहां जाने से मना कर रहे थे। तो माँ ने भी जाने से मना कर दिया। अब मुझे अकेले जाना था। पापा ने रेल रिज़र्वेशन टिकट करवा दी थी।


रेल का सफर तब और भी बेहतरीन हो जाता है जब आप अपने गाँव जाने निकलो....शहर के शोर शराबे से दूर अगर हमे कही सुकून चाहिये तो वो गाँव ही हमे देता है। वो मस्त वातावरण में ताज़ी हवाओं और लहराते खेतों का आनंद...वो चारपाई पे बैठ कर नाना से पुराने किस्से सुनना....बड़ा ही आनंद प्राप्त होता है।

रात में यही सब सोचते हुए कब पूरी रात रेल के सफर में गुजर गई पता ही नहीं चला...सुबह के 9.45 पे रंगेर स्टेशन पर में उतरा....रंगेर वहां का बड़ा तालुका था.... मेरे मामा मुझे लेने आये थे। वही स्टेशन के बाहर मस्त चाय समोसे का आनंद उठाकर हम टुकटुक रिक्शा में बैठ हमारे गाँव सुतुर जाने निकले। जो वहां से करीब 30 किलोमीटर दूर था। घने जंगलों के रास्ते होकर हम अपने गाँव पहुँचे।


नाना नानी ने बड़े प्यार से मेरा स्वागत किया। फिर मस्त चूल्हे पे बना स्वादिष्ट व्यंजन का कर मस्त लेट लिया। शाम को गाँव में रहता मेरा दोस्त रंगा जो मेरी ही उम्र का था। वो मुझसे मिलने आया।


रंगा - अरे दोस्त बहुत साल बाद आये यार तुम तो कैसे हो?

मुकेश - ठीक हूं दोस्त तुम सुनाओ...

रंगा - बस कट रही है....सुबह जल्दी उठ कर भैंसिया का दूध निकालो....दोपहर में खेत जोतो और कोई काम बिगड़े तो बापू की गालियां सुनो..बस यही जिंदगी रह गयी हमरी गाँव में।

मुकेश - गाँव तो फिर भी ठीक है भाई....यहाँ सुकून तो है। वरना शहर में जीना मतलब रेस में लगे रहो बस....टेक्नोलॉजी का आदमी पे कंट्रोल हो गया है...आपस मे मिलने से अच्छा उस मोबाइल पे मिलाप कर लेते है....गाड़ियों का तो भंडार लगा हुआ है। प्रदूषण हमे खा रहा है या हम उसे खा रहे है। बस यही लगा पड़ा है।

इसीलिए तो लोग जब शहर से ज्यादा थक जाते है तो उन्हें सुकून पाने के लिए तब गाँव की याद आती है। जैसे हम भी आ गए।


रंगा - हाँ दोस्त यहाँ बड़ा सुकून मिलता है। पर समस्याएं तो यहाँ भी है। बेचारा किसान खेत में मेहनत कर कर के थक जाता है पर बारिश की बूंद तक सही समय पर नहीं गिरती....बिजली तो ऐसे जाती है मानो हमारे लिए तो उसका अस्तित्व ना के बराबर है।

मुकेश - सही है दोस्त बस यही आस है एक ना एक दिन ये सब बदलेगा जरूर।

तभी उनके सामने से लखिया की बेटी मोहिनी अपने घर के तरफ जा रही थी।

रंगा - आय हाय मेरी दुल्हनिया कहाँ जा रही हो

मोहिनी - ( मुँह टेढ़ा करते हुए ) गोबर लेने जा रही हूं तुम खाओगे क्या मकड़े।

फिर वो चली गयी.....

मुकेश - हाहाहाः हाहा तुम को तो कुछ भाव ही नहीं दी।

रंगा - बहुत प्यार करते है हम उनसे कभी तो मानेगी।

दीवाली का दिन आ गया था....शाम के करीब 5 बजे थे। मुझे अपने मामा ने अपने पास बुलाया....


मामा - देखो बेटा मुकेश....मेरी तबियत खराब है और तुम्हारे नाना को भी घुटनों का दर्द है। क्या तुम जाकर किरदी गाँव के पास आयी रमाकांत देरी में दूध दे आओगे। उन्हें दीवाली के लिए अतिरिक्त दूध चाहिये। उन्होने मुझसे बड़ी उम्मीद से कहा है।

मुकेश - हाँ मामा जरूर जाऊँगा.... रंगा को साथ ले के उसके साथ मोटरसाइकिल पे चला जाता हूं।


कुछ देर बाद दोनों दूध के केन लिए मोटरसाइकिल पर बैठ... किरदी गाँव के लिये निकले जो वहां से करीब 20 किलोमीटर दूर था।

रमाकांत डेरी में दूध देने के बाद वो करीब 6.30 बजे हम वापस आने के किये निकले ही थे कि हमारी मोटरसाइकिल खराब हो गयी। उसकी खराबी दूर करते हुए मेकैनिक को 8 बज गए। रात हो गयी थी।

मुकेश - यार इस मोटरसाइकिल की वजह से हमे देर हो गयी दीवाली के रात के आधे मज़े इसने खराब कर दिए...अब वापस जाते हुए भी देर हो जाएगी।

तभी मुकेश ने अपना मोबाइल निकाला और मैप पर जल्दी पहुँचने का दूसरा रास्ता खोजने लगा....तभी वो बोला...

मुकेश - अबे बुड़बक रंगा एक और शॉटकट रास्ता भी तो है तूने बोला क्यों नही?...देख मैने ढूंढ लिया वही से चलते है।

रंगा - नहीं यार वो मुझे भी पता है पर हम उस रास्ते से नहीं जा सकते। वो रास्ता भूतिया है। आज तो अमावस्या भी है।

मुकेश - यार तुम गाँव वाले भी ना कुछ भी अफ़वाये फैलाते हो भूत वूत कुछ नहीं होता....चलो हम सिर्फ आधे से भी कम वक्त में गाँव पहुँच जाएंगे उस रास्ते से....


रंगा ने कई कोशिशें की पर में नहीं माना.... हमने मोटरसाइकिल आगे बढ़ाई आगे जाने पर एक मुड़ा हुआ गहरे जंगल से जाता कच्चा रास्ता दिखाई दिया....वो वही रास्ता था। दीवाली की अमावस्या की रात और अंधेरे का पूरी तरफ फैला साम्राज्य....वो रास्ता ओर भी भयानक लग रहा था।

रंगा ने फिर चेतावनी दी पर मैने तो मोटरसाइकिल आगे बढ़ा दी....अंधेरे को चीरती हुई मोटरसाइकिल की रौशनी से हम आगे बढ़ रहे थे। रात कीड़ों कि भयानक आवाज़े गूंज रही थी....कुत्ते जंगल में कहीं रो रहे थे। हम आगे बढ़ रहे थे कि अचानक हमारी मोटरसाइकिल के आगे से कोई साया तेज़ी से गुजरा और गायब हो गया। हम दोनों बुरी तरह सहम गए।

हमारी धड़कने बढ़ गयी। फिर मैने रंगा से कहा " कुछ नहीं था यार बड़ा हवा का झोंका होगा..डरना मत" हालांकि अब मुझे भी थोड़ा डर लगने लगा था। फिर तभी हम दोनों ने सामने जो देखा हमारी रूह कांप उठी। ठीक रास्ते के बीच कोई खड़ा था। मुँह पर लंबे बाल ढके हुए....सफेद साड़ी पहने हुए। उसे देख हम काफी डर गए थे।


रंगा - ( काफी डरते हुए ) हमें माफ़ कर दो...हम ग़लती से इस रास्ते पर आ गए.... आत्मा माता हमे बख्श दे ....वादा करता हूं लखिया की बेटी को देखूंगा तक नहीं ।

तभी मैं मोटरसाइकिल से उतरा और चलते हुए उसकी तरफ बढ़ा.... रंगा ने मुझे काफी रोका पर अब में उसके पास पहुँच चुका था। तभी में जोर जोर से हँसने लगा....हाहाहाःहाहा।

रंगा - हे आत्मा माता मेरे दोस्त के दिमाग पर हावी मत हो।


मैने कहा " अबे डरपोक ये सिर्फ एक पुतला है जो यहाँ किसी ने लोगो को डराने के लिए रखा हुआ है।" रंगा ने भी आकर देखा तब उसके जान में जान आयी पर पुतले पर कुछ लिखा हुआ था..." ख़तरा " मैने उस पुतले को उठाकर दूर फेंक दिया ओर हम फिर आगे बढ़ गए।


रंगा -सुनो वो लखिया की बेटी वाली बात अब झूठ मान लेना।


मैं जोरों से हँसने लगा....अंधेरे को चीरते हुए हमारी मोटरसाइकिल आगे बढ़ रही थी....तभी जैसे तूफान आया हो वैसे जोरों से हवाये चलने लगी...रात कीड़ों की भयंकर आवाज़े तेज़ हो गयी....हमारी मोटरसाइकिल भी बंद पड़ गयी पर तभी एक तेज़ बिजली कड़की सामने हमने जो देखा...हमारे रौंगटे खड़े हो गए।


एक भयानक शरीर और दो मुँह वाले एक सर चुड़ैल का जिसके लंबे नाखून... मुँह चीरा हुआ खून बहता हुआ....आँखें गुस्से से आग उगलती हुई...लंबे भयानक बाल बिखरे हुए....दूसरा सर प्रेत का...लंबे भयानक नाखून ...बड़ी भयंकर आँखें...लंबे भयानक कान...मुँह से निकलते नुकीले दाँत....दोनो शैतानों के हाथ मे खून से सनी कुल्हाड़ी थी।


उन्हें देख हम दोनों की हालत खराब हो गयी थी। वो दोनो जोरो से चिल्लाये " हमारी जगह आने की तुम दोनों की हिम्मत कैसे हुई...अब तुम दोनों को काट कर तुम्हारे जिस्म का खून पियेंगे....तुम्हारा माँस नोचेंगे हाहाहाःहाहा"। हम दोनों ने पूरी तेज़ी से दौड़ लगाई.... जंगल में भागने लगे। वो भयानक शैतान हमारे पीछे थे भयानक चिल्लाहट करते हुए।


हम एक बड़े पेड़ के पीछे छिप गए। हमने देखा वो हमें बुरी तरह खोज रहे है। हमारा बचना मुश्किल था। फिर उन्होंने हमें फिर देख किया और कुल्हाड़ी हमारी तरफ दे मारी। पर हम बच गए...हम फिर जान बचाकर दौड़े....हमारी सांसे फूल गयी थी....हम कांप गए थे। दौड़ते हुये मेरे दोस्त रंगा का पाँव फिसला और वो लाल बड़े पत्थरों पर जाकर टकराया वो बेहोश हो गया।


मैने उसे जगाने के कोशिशें की पर वो नहीं उठा पर तभी मेरे पीछे वही शैतान खड़े थे। वो मुझे मारने आगे बढ़े.... तभी एक चमकता विस्फोट सा हुआ और मैं भी बेहोश हो गया।

सुबह धीरे से मेरी आँखें खुली.... मैं अपने गाँव के घर था। मेरे मामा, नाना, नानी ओर गाँव के कुछ लोग खड़े थे। मैने रंगा के बारे पूछा तो उन्होने कहा वो भी ठीक है फिर मैने सारी घटना बताई....


नाना - तुम दोनों हमे गाँव के बाहर बेहोश पड़े मिले.... हमे तुम्हें पहले ही उस रास्ते के बारे में बता देना चाहिये था।

मुकेश - पर नानाजी हम तो वहां थे फिर गाँव के बाहर कैसे आये?

नाना -जैसे तुमने बताया रंगा लाल पत्थरों से जाकर टकराया था। बेटा वो एक दैवीय स्थान था जहाँ एक दैवीय साधु नारऋषि की समाधी है। उन्ही की दैवीय आत्मा ने तुम्हें बचाया और सुरक्षित यहाँ पहुँचाया होगा।


मामा - बेटा वहां कई साल पहले एक बड़ा हादसा हुआ था एक पति और पत्नी का एक्सीडेंट हो गया था। वो दोनो मारे गए थे जिस दिन वो मरे वो दिन भी अमावस्या का था। तब से वहां कई सारे मौते होने लगी इसीलिए सबने उस रास्ते से जाना बंद कर दिया।


मुकेश - रंगा ने मुझे कहा था पर मेरी ज़िद ने हमे खतरे में डाल दिया था। नारऋषि जी की जय हो जिन्होंने हमारी जान बचाई वरना हमारा बचना मुश्किल था।

उस दिन के बाद आजतक उस भयानक चेहरों को मैं भूल नहीं पाया....मैं जब भी गाँव जाता हूं उस भयानक रास्ते की तरफ देखता तक नहीं .... कुछ चीज़े ऐसी होती है जिन्हें हम यकीन ना करे पर वो होती है... ( story based on imagination) 

Copyright © Bhushan Patil

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