शैतान का फोन
शैतान का फोन
इधर मैं भगवान की पूजा कर रहा था उधर शैतान का फ़ोन आया।
मेरे फोन की रिंगटोन बज उठी थी,मैं सोचने लगा क्या करूँ,पूजा कंटिन्यू करुँ या फ़ोन उठा लूँ ।
अभी थोड़ी देर पहले ही तो बैठा था अपने फ़ोन के साथ, उसके जिस्म के साथ अठखेलियां करते हुए,कैसे मेरे हर छुवन पर सिहर जाती है उसकी पूरी बॉडी,कैसे कपकपाने लगती मेरी मोबाइल जब मैं मैसेज टाइप करता हूँ।हर फंक्शन ऐसे खुल जाते हैं जैसे कोई प्रेमिका अपने दिल को चीर के दिखा दे, लो देख लो मेरे दिल में कितना प्यार है तुम्हारे लिए। तब तो नहीं आया कोई फ़ोन। फिर मेरे मन में फ़ोन के लिए एक लफ्ज अनायास ही निकल पड़ा,!!! बेवफा !!! तू भी कैसी बेवफा है,कब बज उठे पता ही नहीं।
फिर मन ही मन सोचने लगा अभी किसका फ़ोन हो सकता है,वैसे इतना इम्पोर्टेन्ट तो कोई भी नहीं जिसका फ़ोन उठाने के लिए पूजा बीच में रोकनी पड़े, माँ हैं इम्पोर्टेन्ट लेकिन उनसे तो अभी अभी बात हुई थी।तो उन्हें बताया भी था कि अभी एक घंटे पूजा करूँगा ।और मेरी माँ बहुत ही धार्मिक हैं, तो वो तो बीच में डिस्टर्ब नहीं करेंगी।हो सकता है किसी दोस्त का हो तो बाद में बात कर लेता हूँ । अब फ़ोन उठा के बाद में बात करने के लिए कौन कहे, उससे बेहतर है पूजा ही कर लूँ।या फिर ये भी हो सकता है किसी कंपनी वाले का हो,कसम से किसी भी अपने से ज्यादा तो ये अपने लगते हैं।ये आपको कभी भी कहीं भी फ़ोन करके पूछ लेते हैं,सर ये वाला बिमा करवा लो, वो वाला रिचार्ज करवा लो,खाना खाया या नहीं, सर सो तो नहीं रहे, सर फ्री हो तो थोड़ा बात कर लीजिए। सच्ची बताऊँ अगर इनको थोड़ा सीरियस लिया जाये तो ये गर्लफ्रेंड की कमी पूरी कर ही देते हैं।और इनका क्या है, थोड़ी देर में फिर से कर ही लेंगे।
और फिर मैंने अपना ध्यान पूजा में लगा लिया ये सोचते हुए कि न जाने किसका फ़ोन होगा।
कमरे से रामचरित मानस के चौपाइयों की आवाज बाहर आने लगी थी।
मंगल भवन अमंगल हारी, द्रबऊ सो दसरथ अजिर बिहारी।।
परन्तु पूजा तो कब की डिस्कोन्टीन्यु हो चुकी थी, शैतान अपना काम कब का पूरा कर चुका था।