सच्ची मित्रता
सच्ची मित्रता
पहाड़ियों से घिरा हुआ छोटा सा गाँव था 'माधवगढ़', जिसमें दो मित्र रहते थे, नाम था 'रामू और दिनेश'। दोनों में गहरी मित्रता थी। दोनों एक ही कक्षा में पढ़ते थे औऋ अधिकतर दोनों का समय साथ ही व्यतीत हुआ करता था।
दोनों पढ़ाई में तो अव्वल थे ही साथ ही वे कबड्डी और दौड़ के भी अच्छे खिलाड़ी थे। उनके विनम्र स्वभाव एवं आदर्श चरित्र से हर कोई उनकी तारीफ़ करता था। लोग उनकी मित्रता के कायल थे।
अक्सर दोनों मित्र विद्यालय समय के बाद पहाड़ी के पीछे स्थित तालाब में तैरने जाया करते थे, वे अच्छे तैराक भी थे। उस तालाब में सुन्दर -सुन्दर कमल पुष्ष खिला करते थे। दोनों को यह स्थान बेहद प्रिय था।वे दोनों घण्टों यहाँ बतियाते पढ़ाई की चर्चा किया करते थे।
वहीं दूसरी और उनकी इस गहरी मित्रता से मोहन और उसके मित्रों (राजेश -सुनिल) को काफी ईर्ष्या होती थी। वे कई बार इनकी दोस्ती में दरार डालने तथा इन्हें नीचा दिखाने का प्रयास कर चुके थे, मगर हर बार उन्हें मुँह की खानी पड़ती थी।
रामू और दिनेश की मित्रता मानों दाँत कटी रोटी जैसी थी।
कुछ दिनों बाद विद्यालय में दौड़ प्रतियोगिता आयोजित होने वाली थी। प्रतियोगिता यह थी कि जो भी विद्यार्थी सबसे पहले उस तालाब से कमल पुष्ष लेकर विद्यालय लौटेगा वही विजेता होगा।
निश्चित दिन प्रतियोगिता शुरू हुई, सभी छात्र पूरे उत्साह से दौड़े जा रहे थे। मोहन और उसके मित्र जानते थे कि बिना छल किये दिनेश और रामू को हराना असंभव है, अतः उन्होंने पहाड़ी की चढ़ाई के दौरान जान-बूझकर रामू को जोर से धक्का दे दिया।
रामू इस धक्के से धड़ाम से नीचे की और जा गिरा और एक बड़े से पत्थर से टकारने से उसका घुटना काफ़ी ज़ख्मी हो गया। वही दिनेश उससे थोड़ा आगे था। उसने जब यह देखा तो वह तुरंत नीचे उतरकर अपने मित्र रामू के पास आया।
"रामू !! तुम्हारे घुटने से काफ़ी खून बह रहा है चलो नीचे उतरकर गाँव में उपचार करवाते हैं"
"नहीं मित्र ! हम लक्ष्य के करीब हैं, और में नहीं। चाहता हम हारे क्योंकि हमने कभी हारना नहीं सीखा"।
हाँ मित्र तुम्हारी बात सही है ,पर इस समय तुम्हारा उपचार ज्यादा जरूरी है।
"नहीं मित्र ! तुम मेरी परवाह मत करो, तुम दौड़ो और उन कपटियों को हराओ"।
नहीं मित्र यदि हम दौड़ेंगे तो साथ -साथ बाकि नहीं, मैं तुम्हें यूँ छोड़कर नहीं जा सकता।
"ठीक है फिर चलो हम साथ में ही इस दौड़ को पूरी करते हैं,, हमारे लिए जीत से कही ज्यादा महत्वपूर्ण है उन कपटियों को सबक सिखाना"
दोनों मित्रों ने पुनः दौड़ प्रारंभ कर दी,। अब तक मोहन और उसके मित्र उनसे काफ़ी दूर निकल चूके होंगे, क्यों रामू?
हाँ मित्र, लगता तो ऐसा ही है। खैर ! ईश्वर अच्छे लोगों की हमेशा मदद करता है, हम अवश्य जीतेंगे।
बिल्कुल मित्र!
इधर मोहन और उसके मित्रों को पहाड़ी चढ़ाई का इतना अभ्यास नहीं था सो वे सब जल्द ही थक गये। उनकी साँसे फूलने लग गयी थी,और पहाड़ी की आधी से ज्यादा चढ़ाई में ही वे विश्राम करने बैठ गये। ये सोचकर कि उनके मार्ग के दोनों काँटें दिनेश और रामू अब तक इस दौड़ से हट चुके होंगे।
वहीं दिनेश और रामू ने धीरे पर लगातार अपनी यात्रा जारी रखी, सबसे पहले दिनेश पहाड़ी के शिखर पर पहुँचा।
रामू को घुटने में दर्द की वजह से पहाड़ी की चोटी वाली बड़ी चट्टान को चढ़ने में मुश्किल हो रही थी। वह बार -बार असफल कोशिश कर रहा था।
जब दिनेश ने उसकी और देखा तो अपने मित्र के इस अदम्य साहस और जज्बे को देख उसकी आँखें भर आई। उसने अपने हाथ आगे बढ़ाकर रामू को ऊपर की और खींचकर पहाड़ी के शिखर पर पहुँचा दिया।
"धन्यवाद मित्र!"
अरे! इसमें धन्यवाद कैसा, ये तो हमारी दोस्ती का फर्ज़ था, और मित्रता में भला कैसा धन्यवाद। दिनेश ने मुस्कुराते हुए कहा।
दोनों मित्र कुछ ही समय में तालाब के किनारे पहुँच कमल पुष्ष ले पुनः अपने गंतव्य की और प्रस्थान कर दिये।लौटते हुए रास्ते में उन्हें मोहन और उसके मित्र मिल गये, वे उन्हें यूँ अचानक देख विस्मित हो गये। अब उन्हें पर खिन्नता महसूस हो रही थी पर "अब पछताय होत क्या जब चिड़िया चुग गयी खेत"
दिनेश और रामू लगभग आधे घण्टे की थकावट भरी यात्रा के बाद गाँव में पहुँच गए। दिनेश सबसे पहले कमल पुष्ष लेकर विद्यालय के द्वार पर पहुँचा।
इधर गाँव वालों को जब रामू के ज़ख्मी होने का पता चला तो वे तुरंत उसकी मदद को पहुँच गये।
इधर प्रतियोगिता समाप्त होने पर निर्णायक अध्यापक जी ने दिनेश को विजेता घोषित किया और और पुरस्कार लेने हेतु आगे बुलाया पर दिनेश ने कहा कि ये सिर्फ़ मेरी जीत नहीं बल्कि इस पुरस्कार पर समान अधिकार रामू का भी है। यदि वह ज़ख्मी न होता तो निस्संदेह वही जीतता। मैने तो बीच राह में ही इस दौड़ को छोड़ने का मानस बना लिया पर ये रामू ही था जिसने विपरीत परिस्थितियों में भी साहस नहीं खोया। अतः में चाहता हूँ यह पुरस्कार रामू को उसके अदम्य साहस के लिए मिलना चाहिए। सर्वसम्मति से दिनेश और रामू को संयुक्त विजेता घोषित किया गया।
अपने मित्र के मुख से अपने लिए ऐसी बातें सुन रामू की आँखें छलछला उठी, दोनों मित्रों ने एक दूजे को गले मिल बधाई दी।
हर कोई उनकी इस मित्रता पर वाहवाही कर रहा था।
वहीं दूसरी और सब मोहन और उसके मित्रों के इस कुकृत्य की भर्त्सना कर रहे थे। वे सब अपने ही लोगों के बीच शर्म से पानी -पानी हो रहे थे।
उन्हें अपनी गलती का पछतावा हो रहा था, मोहन और उसके मित्रों ने दिनेश और रामू से क्षमा माँगी। दोनों मित्रों ने उन्हें उन्हें क्षमा करते हुए गले लगा लिया।
पुरा पाण्डाल तालियों की गड़गड़ाहट से गूँज उठा।