सच्चा आस्तिक।
सच्चा आस्तिक।
शुक्ल पक्ष में नवरात्रि का प्रारंभ होने में बस 1 ही दिवस बचा था, मोहन ने इस बार दृढ़ निश्चय किया था नौ दिन उपवास करने का, मोहन एक छोटे से गांव में रहता था, और परिवार के नाम पर उसके साथ बस उसकी मां रहती थी। मोहन एक फैक्टरी में काम करता था, जहां से आने वाली आय से उनके घर का गुज़ारा हो जाता था। मोहन और उसकी मां बहुत ही संतुष्ट रहने वाले लोग थे।
सायंकाल का वक्त था, हर दिन की तरह मोहन अपने काम से लौटा, उसने सोचा था घर जा कर एक बार मां से मिलने के बाद, वो बाज़ार से कुछ फलाहार ले कर आएगा क्योंकि उसे अगले दिन से उपवास का प्रारम्भ करना था।मोहन जैसे ही घर लौटा उसकी मां तेज बुखार से तप रही थी, अपनी मां की ऐसी हालत देख कर, वह बहुत घबरा गया। उसकी मां का शरीर इतना ज्यादा तप रहा था कि अब अस्पताल ले जाने के अलावा वह कुछ और नहीं कर सकता था। बिना देरी किए वह अपनी मां को अस्पताल ले कर गया और दवा ले कर वह घर वापिस आए। अब उसकी मां की हालत कुछ बेहतर थी, जैसे ही उसकी मां को होश आया वह बोली " बेटा तूने तो जो पैसे अपने फलाहार और पूजा की सामग्री के लिए इकट्ठा करके रखे थे, वो तो तूने मेरी दवा पर लगा दिए। इसके जवाब में मोहन ने बोला " मां, तुम प्रत्यक्ष रूप में मेरा सबसे पहला भगवान हो, तुम्हारी सेवा में किया गया कार्य क्या किसी पूजा से कम है" सच्चे उपवास और सच्ची पूजा में श्रद्धा मायने रखती है, सामग्री नहीं। यह जवाब सुन कर उसकी मां की आंखों से खुशी के अश्रु बहने लगे, और मां ने अपने पुत्र को अपने सीने से लगा लिया।
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देवी मां को खुश करने का सबसे आसान तरीका है अपनी मां को खुश रखना और उनका खयाल रखना।
जिस घर में मां बाप की पूजा होती है, उस घर में बिना किसी मंदिर की स्थापना के भी ईश्वर का वास कण कण में होता है।