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हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Drama Fantasy Inspirational

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हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Drama Fantasy Inspirational

सौतेला : भाग 2

सौतेला : भाग 2

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कमला काकी बोली " अरे बेटा, सगी मां होती तो चार रोटी बनाकर रख देती पर सौतेली मां तो सौतेली ही होती ही है ना। सगा बेटा सगा ही होता है और सौतेला बेटा सौतेला। जिस तरह से सास कभी मां नहीं बन सकती है चाहे वह कितनी ही अच्छी क्यों ना हो, कहलाती तो सास ही है न। उसी तरह से सौतेली मां भी कभी सगी मां नहीं बन सकती है चाहे वह लाख जतन कर ले। इसमें तेरी नई मां का कोई दोष भी नहीं है। उसके भी तो खुद के दो बच्चे हैं न। वह बेचारी उनका ध्यान रखे कि तुम दोनों बहन भाइयों का ? अगर तुम्हारा ही ध्यान रखती तो वह ऐसे भूखे नहीं आने देती तुमको। पर कोई बात नहीं बेटा। उसने ध्यान नहीं रखा तो कोई बात नहीं। मैं हूं ना। ये ले दो रोटी और खा ले इन्हें "। 

कमला काकी की बात सुनकर संपत का मन कसैला हो गया। उसे लगा कि नई मां को उसके साथ दो रोटी तो रखनी चाहिए थी। शायद उसने इसलिए नहीं रखी थी क्योंकि वह सौतेला था ? अब तक तो उसे बिल्कुल भी भूख नहीं थी लेकिन अब उसे भूख लगने लगी थी। लेकिन उसे कमला काकी की रोटी नहीं खानी थी इसलिए वह खड़े होते हुए बोला " नहीं काकी, मुझे भूख नहीं है अभी। मैं घर जाकर खा लूंगा "। और इतना कहकर संपतराम वहां से चल दिया।

कमला काकी ने चाहे उसे रोटी नहीं खिलाई मगर उसने "जहर" तो खिला दिया था। संपत के मन का कीड़ा बिलबिलाने लगा। नई मां ने उसे रोटी बांधकर नहीं रखी थी। क्या वास्तव में वह सौतेली मां जैसा व्यवहार कर रही है ? क्या उसके सौतैले भाई दौलतराम और बहन सुमन को ज्यादा प्यार करती है नई मां ? पर ऐसा कोई दृष्टांत उसे याद नहीं आ रहा था। सोचते सोचते वह घर कब पहुंच गया उसे पता ही नहीं चला। 

जैसे ही वह घर पहुंचा तो नई मां ने पूछा " कहां चला गया था संपत ? मैं तो चिंता के मारे मरी जा रही थी। बताकर तो जाता कम से कम " ?

संपत के मन में आया कि कह दे 'चिंता के मारे मरी तो नहीं ना' ? लेकिन वह ऐसी कोई अप्रिय बात बोलना नहीं चाहता था। इतना बोलने की हिम्मत भी नहीं थी उसकी। इसलिए वह इतना ही बोला " बस, खेतों की ओर चला गया था। थोड़ा काम करने लग गया था इसलिए देर हो गई। आगे से बताकर जाऊंगा। हां, कमला काकी मिली थी। आपकी बहुत "प्रशंसा" कर रही थी।" संपत के शब्दों में व्यंग्य भरा हुआ था मगर नई मां का ध्यान उधर गया ही नहीं। वह अपनी ही धुन में बोली

"दूर ही रहना उस चुड़ैल से। बहुत लगाती बुझाती है वह। जाने क्या क्या सिखा देगी तुझे। मुंह की बहुत मीठी है पर है एकदम करेला " 

संपत को नई मां की बात एकदम सही लगी। कमला काकी की जुबान कितनी मीठी थी मगर कलेजे में करेले की तरह कसैली लग रही थी। उसने एक झटके में कमला काकी की बातें अपने दिमाग से निकाल दी और नहाने चला गया। 

दौलत और सुमन संपत से बहुत छोटे थे। सुमन तो अभी साल भर की ही थी। आज संपत को उस पर और ज्यादा लाड आने लगा। उसे कंधे पर बिठाकर वह पूरे घर में घुमाने लगा। उसकी सगी बहन अनीता सुमन को गोदी में लेने के लिए रोती ही रह गई पर संपत ने सुमन को उसे नहीं दिया। खुद ही घुमाता रहा। दौलत भी उसके पैरों में लिपट गया था। 

धीरे धीरे समय अपनी गति से चलने लगा। दौलत को उसके पिता ने एक इंग्लिश स्कूल में भर्ती करा दिया था। सौ रुपए महीना फीस जाती थी उसकी। अंग्रेजों की तरह टाई बैल्ट लगा कर बिल्कुल अंग्रेज लगता था दौलत। पड़ोस की कलावती दादी कहती भी थी कि "अपने छोरे को तो इंग्लिश स्कूल में भेजती है और सौतेले बच्चों को सरकारी स्कूल में। भई, कुछ भी हो, सगा सगा ही होता है"।

संपत ने इसका प्रतिवाद करते हुए कहा भी कि "दादी, तब ये प्राइवेट स्कूल थे ही नहीं तो मुझे कैसे भेजते" ?

पर कलावती दादी किसकी मानती है ? वो तो अपनी अपनी चलाती है। कहने लगी कि "बेटा, बात तो तेरी एकदम सही है। जब प्राइवेट स्कूल नहीं थे तो तुझे कैसे भेजती उसमें ? पर, दौलत को भी तो सरकारी स्कूल में ही पढ़ा सकती थी न वह ? पर है तो सौतेली मां ही। आखिर में रंग दिखा ही दिए ना उसने।"

संपत फिर से सोचने पर मजबूर हो गया। उसे समझ नहीं आ रहा था कि कौन सही है और कौन गलत ? नई मां जो ममता की निर्मल मूरत है वो या ये अड़ोसी पड़ोसी ? वह दुविधा में रहने लगा। उसके मन में "सौतेलेपन" का बीज अंकुरित होने लगा। 

संपत ने हाई स्कूल पास कर लिया था। पूरे स्कूल में अव्वल आया था वह।‌ घर खुशियों से भर गया था उनका। रामदास को तो ऐसा लगा कि जैसे संपत नहीं, वह आया है अव्वल। शिवजी के मंदिर में "सवामणी" की गई। आगे पढ़ने की बात आई तो संपत ने कह दिया कि उसे जयपुर में सबसे बड़े कॉलेज "कॉमर्स कॉलेज" में पढ़ना है। संपत के पिता पास ही में दौसा में पढ़ाना चाहते थे जिससे वह रोज पढ़ने बस से चला जाये और रोज वापस आ जाए। इस तरह वह रोज उनकी आंखों के आगे रहता। पर संपत ने इस बार हठ पकड़ ली कि उसे जयपुर ही पढ़ना है। नई मां ने भी प्रेम से समझाया कि अगर वो दौसा में पढेगा तो घर में ही रहेगा और यहां दौलत को भी पढ़ा सकेगा। इस बात को संपत उल्टा ले गया। संपत के अपरिपक्व मन ने समझ लिया कि वे लोग उसकी नहीं, दौलत की ज्यादा चिंता कर रहे हैं। "उसे दौसा में ही पढ़ने को क्यों कह रहे हैं ये लोग ? काशी की ही चिंता है ना इनको, मेरी नहीं।" यह सोचकर वह एकदम से भड़क गया। बोला " मैं सौतेला हूं ना इसलिए मुझे दौसा में पढ़ाने को कह रही हो ?" 

उसके इस तरह के व्यवहार से नई मां सकते में आ गई। उसे संपत से यह उम्मीद नहीं थी। उसने झट से कह दिया " सुनो जी। संपत ने आज बहुत बड़ी बात कह दी है। राम जानता है कि मैंने संपत और अनीता को खुद की औलाद से बढ़कर पाला पोसा है। फिर भी इसके मन में अगर ऐसा गंदा खयाल आया है तो फिर इसको जयपुर ही पढ़ाओ।" और वह तेज कदमों से चली गई।

संपत को महसूस हुआ कि जैसे उसने अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली है। मगर छूटा तीर कमान से और निकली बात ज़बान से फिर वापस नहीं आते हैं। अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत। अब तो दरार पड़ चुकी थी। 

संपत का दाखिला जयपुर के कॉमर्स कॉलेज में करवा दिया गया। 


क्रमशः 

शेष अगले भाग में 

श्री हरि



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