सार्थक जीवन मूल्यपरक पथ से
सार्थक जीवन मूल्यपरक पथ से
शास्त्री जी श्लोक का अर्थ बता रहे थे कि जिस व्यक्ति के पास विद्या, तप, दान, ज्ञान, शील, सदगुण,धर्म नहीं है वह इस धरती पर मनुष्य पशुरूप में बोझ स्वरूप हैं ,अब गणित के पीरियड के बाद हिन्दी के शिक्षिका रमा जी आकर बच्चन की कविता " पूर्व चलने के पहले बटोही पथ की पहचान कर ले" का भावार्थ समझाने लगी। मेरे साथी बाबूशंकर को लगा कि यह हर व्यक्ति के जीवन के जमीनी स्तर को छू कर लिखी गई है। उसने इस वाक्य के निहित भाव को मनन किया और थोडी देर के लिए सोचने पर मजबूर हो गया कि इस संसार में उसी मनुष्य का जीवन सार्थक है जो रोमांच राह पर सूझ बूझ के साहसिक कदम बढाता है और समाज में अपनी पहचान बनाता है।
वह मन ही मन बुदबुदाया कि उस मनुष्य का जीवन कोई जीवन नहीं होता जिसमें अनोखापन न हो । शास्त्री जी ने अगले दिन दूसरे श्लोक का अर्थ में बताया गया कि "नीति में निपुण चाहे निन्दा करें या प्रशंसा, लक्ष्मी आये या चली जाए, धीर पुरुष न्याय के पथ से अपने को जरा भी विचलित नहीं करते।"
अब तो बाबूशंकर के सोच में भूचाल आ गया।वह निर्धारित पथ पर चल पडा,हालाँकि वह पितृहीन और गरीब होने के कारण उसके रास्ते में भीषण बाधायें आयी। साधनविहीन के बावजूद भी वह स्थित-प्रज्ञ होकर अपने मंजिल को पाने की दिशा में अथक परिश्रम करता। आर्थिक बाधाओं ने उसकी दृढता के आगे घुटने टेक दिये।
अन्त में उसकी मेहनत रंग लाई, और वो विरासत में मिले जीवन मूल्यों को निभाते हुए अपने कर्मक्षेत्र में उत्कृष्ठ कर्तव्य का निर्वहन कर समाज और परिवार में सम्मानजनक अपनी पत्नी और बेटों के साथ जीवन जीने का आनन्द ले रहे हैं । दोनों बेटे अच्छे संस्कार से विद्या ध्ययन कर समाज के उत्कर्ष प्रतिष्ठा को अर्जित करने के साथ अपने अभिभावकों से सदभावना रख समाज में अलग पहचान बना एक ज्वलंत उदाहरण प्रस्तुत कर रहे है।
कहने का तात्पर्य यह है कि सनातन और सार्वभौमिक नियमों के पालन या अनुपालन में देरी और कठिनाई जरूर होती है ,पर आनन्द का फल बहुत मीठा होता है जो अवर्णनीय है I
