रणछोड़

रणछोड़

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देखते देखते 30 बरस बीत गए। दोनों एक दूसरे के इंतजार में शायद अभी तक बैठे हुए हैं ।मदन आज भी जब रमा के घर के सामने से गुजरता है कानों में यही आवाज गूंजती है -रणछोड़ रणछोड़ रणछोड़.......

दोनों हाथों की हथेलियों से अपने कानों को दबा वाह मानो अतीत के उन पलों में पहुंच जाता है......

आम का बाग कोयल की कुहू और रमा की रुनझुन पायल यही बस उसकी जिंदगी का अहम हिस्सा था गांव में जातिगत कट्टरता के चलते दोनों दोपहर में ही छुप -छुप के मिल पाते थे वह मेधावी छात्र था इसीलिए रमा उसे पसंद करती थी दोपहर में मिलने का कारण गांव वालों की नजरों का खतरा मोल लेने से बचना था क्योंकि अलग-अलग बिरादरी के होने के कारण गांव वालों को उनका मिलन कहां मंजूर होता।

किंतु वही कहावत की इश्क और मुश्क छुपाए नहीं छुपते के अनुसार 1 दिन रमा के घर वालों को पता चल ही गया उसकी एक विधवा बुआ ने उसका पीछा किया और उसे मदन के साथ देख लिया ।फिर क्या..……

बड़ी मुश्किल से यह संदेश उस तक पहुंचाया। ना मिलने की ताकीद के साथ कुछ दिन इंतजार करने को कहा इस बीच उसने रो-धो कर अपने पिता को मनाने की कोशिश की इकलौती बेटी की जिद के आगे पिता ने हथियार डाल दिए और फैसला पंचायत पर छोड़ दिया।

जिस दिन पंचायत का फैसला होना था गांव का गांव एकत्र हो गया था मामला एक रसूखदार की लड़की और एक गरीब लड़के का था चौपाल में बड़ी-बड़ी आरामदायक कुर्सियों पर गणमान्य लोग विराजमान थे रामा भी एक कोने में सिकुड़ी खड़ी थी किंतु मदन का कहीं अता-पता नहीं था लोग बड़ी बेचैनी से उसकी राह देख रहे थे.....

मदन वहां से बहुत दूर यह सब देख रहा था वह बार-बार कदम आगे बढ़ाकर पीछे खींच लेता था क्योंकि उसकी माँ ने उसे रात में रसूखदारों की तरफ से मिलने वाली धमकी की पूरे परिवार को जान से मार देंगे बतलाई थी और वह मजबूर था एक तरफ प्यार तो दूसरी तरफ परिवार समझ में नहीं आ रहा था वह क्या करें क्या ना करें?

काफी समय इंतजार के बाद पंचों ने अपना फैसला सुनाते हुए रमा को समझाइश दे दी कि ऐसे रणछोड़ से तुम शादी करने चली थी जो ऐन वक्त पर भाग गया अच्छा हुआ तुम बच गई।

 तब से वह दिन और आज का दिन रमा ने उसे देखा तो सही पर उससे बात बिल्कुल भी नहीं की तब से सारा गांव उसे रणछोड़ के नाम से जानता है।



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