रमुआ
रमुआ
रमुआ नहीं रामदेव
सुबह से छोटी कामों में व्यस्त है। कोई कहता पानी दो, कोई चाय, कोई कुछ तो कोई कुछ।
चकरघिन्नी की तरह घूम रही थी, प्रफुल्ल मन से।
मालकिन की आवाज सुन बोली-"जी दीदी, पूजा की थाली तैयार है।"
मालकिन ने पुनः आदेश के स्वर में कहा-"कुछ छूटना नहीं चाहिए। पता है न कौन राखी बंधवाने आ रहा है?"
छोटी ने कहा-"पता है ज्ञान देने वाला नेता।"
मालकिन ने हंसते हुए कहा-"शिक्षा मंत्री।"
कुछ हद तक तो सही कहा तुमने।"
नियत समय पर आ गये वे। उनके साथ कार्यकर्ताओं का हुजूम।"
सबके आव भगत में रात्रि के बारह बज गये।
छोटी गांव से आये भाई सुदामा को सर्वेन्ट क्वाटर में राखी बांधने गई। कहा-'भैया समय ही नहीं मिला, बेबस थी ।
भाई ने कहा -"हम मजदूर और मजबूर लोगों का पर्व ऐसा ही होता है। १२ बजने में ५ मिनट बाकी है, जल्दी कर।" कह हाथ बढ़ा छोटी से राखी बंधवा लेता है। उपहार देख छोटी की प्रसन्नता संग आंखों में नमी आ जाती है, माता पिता का चित्र जैसा अनमोल उपहार देखकर।
छोटी कहती है-'भाई अगर ये दोनों होते तो मैं छोटी नहीं पल्लवी होती, आप रमुआ मजदूर नहीं रामदेव होते।"
काका यदि हमारा हक दे देते तो १२ बजे रात में राखी नहीं बांधती।"
भाई सिर पर हाथ रख कहा-"विश्वास कर बहुत जल्दी अपना समय आयेगा।