Harat Kumar

Inspirational Classics Others

5.0  

Harat Kumar

Inspirational Classics Others

रिश्ते दूरियाँ नहीं देखते

रिश्ते दूरियाँ नहीं देखते

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मैं विजेन्द्र राजस्थान के एक छोटे से गाँव में रहता हूँ। मैंने स्कूल की पढ़ाई पूरी करके कॉलेज में प्रवेश लिया। सब कुछ ठीक चल रहा था। मेरे परिवार में मुझे और मेरी माँ को कोई पसंद नहीं करता था क्योंकि उन्हें दहेज में कुछ नहीं मिला था। मेरे नाना बिजली विभाग में नौकरी करते थे, उनके स्वर्गवास के बाद उनकी नौकरी मेरी माँ को दिया जाना था, पर मेरे परिवार वाले वो नौकरी मेरे चाचा को दिलवाना चाहते थे। इन सब में ज्यादा समय बीत गया और नौकरी चली गई। इसके बाद मेरे परिवार वाले मुझसे और मेरी माँ से और भी ज्यादा नफरत करने लगे। कॉलेज में गतिविधियों में भाग लेने पर भी मेरे परिवार वाले नाराज थे। मुझे किसी भी तरफ से मदद नहीं मिलती थी, सभी मुझसे घृणा करते थे। कैसे जैसे मैं इस तनाव और बैचेनी के माहौल में कॉलेज की पढ़ाई कर रहा था।


एक दिन फेसबुक पर मेरी त्रिपुरा से एक लड़की लक्ष्मी से मुलाकात हुई। फेसबुक पर यह दोस्ती का रिश्ता भाई बहन का रिश्ता बन गया और आज यह और मजबूत हो गया। मैंने बहन तो बना ली थी और रिश्ता भी अच्छे से चल रहा था पर मुझे अपनी बहन से मिलना था। मेरा घर से किसी दूसरी जगह पर जाना मुश्किल था, एक तो मुझसे ऐसे भी नफरत करते थे और इस तरह मिलने के लिए जाने देने की भी संभावना नहीं थी। मैंने एक योजना बनाई और एक प्रतियोगिता परीक्षा के लिए आवेदन किया और परीक्षा केन्द्र त्रिपुरा में रखा। तय दिन और समय पर परीक्षा होनी थी।


मैंने 20 मई को दिल्ली का ट्रेन का टिकट बुक किया। समय नज़दीक आ गया। 26 मई को शाम को बैग पैक किया और दीदी से बात की और अगले दिन मैं दिल्ली कैंट पहुँचा। दिल्ली में मेरा पुराना परिवार रहता है जिनसे पहले संपर्क नहीं था, एक दो साल पहले संपर्क हुआ तो मैं उनके घर चला गया। ट्रेन रात को 11 बजे की थी। रात को तय समय पर मैं स्टेशन पहुँच गया। मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि हम दोनों भाई बहन इतनी जल्दी मिलने वाले हैं। 2 दिन बीत गए, ट्रेन 4 घंटे देरी से चल रही थी, मेरा इंतजार बढ़ता जा रहा था। आखिर ट्रेन 30 मई की सुबह 4:30 बजे अगरतला पहुँच ही गई।


पहुँच कर दीदी को मैसेज किया, उन्होंने 6 बजे तक आने का बोला, उनके तरफ इतनी सुबह ओटो नहीं मिलता तो मैं स्टेशन के बाहर सीढियों पर बैठ कर दीदी का इंतजार करने लगा। कुछ ही देर में दीदी मुझे लेने आ गई। हम दोनों  पहली बार मिले, एक दूसरे से मिलकर बहुत खुश हुए। उसके बाद हम दोनों घर आ गए। दीदी यहाँ पर बाँस और टिन के बन घर में किराए पर रहती थी। 11:30 बजे दीदी खाना लेकर आ गई। खाना उनकी आंटी मतलब मकान मालकिन ने बनाया था। खाने में दाल, मशरूम की सब्जी, फ्राई किए हुए आलू, रोटी और सलाद था। अंकल (मकान मालिक) और आंटी से मिला। शाम को दीदी के कमरे के पास रहने वाली एक लड़की चाय लेकर आई। वो टूटी फूटी हिन्दी में बात कर रही थी, आस पास के भी लोग मुझसे मिलने आए। आज के दिन का पता ही नहीं चला कब पूरा हो गया।


अगले दिन 31 मई को दीदी अपनी  क्लास चली गई। मैंने भी दिन में पढ़ाई की। शाम को दीदी क्लास से जल्दी घर आ गई। 7-8 दिन बाद उनकी भी परीक्षा शुरू होने वाली थी तो उनको भी छुट्टी मिल गई। शाम को हम घूमने गए। एक रेस्ट्रो पर हमने चाय पी, वहाँ पर दीदी की सहेलियां भी आ गई।


अगले दिन परीक्षा थी और बारिश हो रही थी। थोड़ी देर में बारिश तेज हो गई, ऐसा लग रहा था कि मैं आज परीक्षा नहीं दे पाऊँगा। पर दीदी साथ थी, उन्होंने मेरा आत्मविश्वास बढाया। दीदी को बताया तो बोली कि परेशान मत हो भाई। बारिश हो रही थी, फिर भी 10 मिनट में हम एग्जाम सेंटर पहुँच गए। अंदर एंट्री होने तक दीदी मेरे साथ थी, बहुत ख्याल रखा उन्होंने मेरा। 9 बजे एंट्री हुई, मैंने दीदी को परीक्षा के बाद बाहर मिलने का बोला। 11:30 बजे पहला सेशन समाप्त हुआ। दीदी मेरा बाहर खाना लेकर इंतजार कर रही थी। खाना आंटी ने बनाया था। हम एक पेड़ के नीचे बैठ गए और खाना खाने लगे और बातें करने लगे। हल्की हल्की बारिश हो रही थी और मौसम भी सुहाना था। आज परीक्षा ना होती और ऐसा ही मौसम रहता तो हम घूमने जाते। थोड़ी देर बाद 2 बजे से दूसरे सेशन की एंट्री शुरू हो गई। मैं अंदर चला गया और दीदी को बता दिया था कि मैं गेट के बाहर आपका इंतजार करूँगा। दूसरा सेशन भी समाप्त हुआ। मैं बाहर आया तो दीदी दिखाई नहीं दी। मैं बाहर ही इंतजार करने लगा। 5 मिनट बाद दीदी आ गई। फिर हम पैदल ही घर की तरफ चल पड़े और घूमते हुए घर पहुँच गए।


अगले 3 दिन हम और भी जगह घूमने गए और दीदी की भाभी और उनके बच्चों से भी मिला। सबसे मिलकर बहुत अच्छा लगा। वक़्त का पता ही नहीं चला कब गुजर गया। दीदी ने मेरा बहुत ख्याल रखा।


6 जून को दोपहर को मुझे वापस रवाना होना था। अभी कुछ दिन और दीदी के साथ बिताना चाहता था। पर उनकी भी परीक्षा थी तो उनको समय मिलना मुश्किल था और मेरी भी कल वापस दिल्ली आने की टिकट बुक थी। 7 जून को दीदी का जन्मदिन है। मैंने कल ही जन्मदिन मनाने का कार्यक्रम बना लिया। मैं मार्केट से केक ले आया। आंटी खाना बना रही थी। हमने केक काटा और दीदी का जन्मदिन मनाया। फिर हमने साथ में खाना खाया और बातें की। थोड़ी देर में दीदी की एक सहेली भी आ गई। दोपहर 12:30 बजे हम घर से निकले। फिर हम तीनों रेलवे स्टेशन पहुँचे। इतनी देर में एक बजे गया। एक घंटे बाद हम अलग होने वाले थे, पता नहीं कितने दिनों के लिए। हम स्टेशन पर बैठे रहे। थोड़ी देर में ट्रेन भी प्लेटफार्म पर आ गई। टाइम भी बहुत तेजी से और जल्दी-जल्दी निकल रहा था। टाइम 1:55 हो गया। बस 5 मिनट बाद हम अलग होने वाले थे। मैंने ट्रेन में अपनी सीट पर जाकर बैग रखा और दरवाज़े के पास बाहर आकर नीचे खड़ा हो गया। ठीक 2 बजे ट्रेन का सिग्नल हो गया और ट्रेन रवाना हुई। मैं दरवाज़े पर खड़ा था। हमने एक दूसरे को अलविदा कहा। हम एक दूसरे को देखते रहे। ट्रेन बहुत बहुत आगे आ गई, हमारा एक दूसरे को दिखना बंद हो गया। मैं अपनी सीट पर आकर बैठ गया और दीदी भी अपनी सहेली के साथ घर चली गई।


3 दिन बाद सुबह 4:30 बजे घर पहुँचा। दिन में आराम किया और शाम को दीदी से से बात की। मेरे को थोड़ी सर्दी हो गई रास्ते में आइसक्रीम खाने की वजह से, तो थोड़ा डांट रही थी मेरे को। फिर भी बहुत अच्छा लग रहा था मेरे को ये सब। कभी हमने सोचा नहीं था कि हम दोनों भाई बहन इतनी जल्दी मिल जायेंगे। इसमें जल्दी वाली कोई बात नहीं थी, हमारे रिश्ते को 5 साल हो गए, फिर भी इतनी जल्दी हम मिल ही गए। लोग सच ही कहते हैं कि पिछले जन्मों के रिश्ते इस जन्म में कहीं न कहीं मिल ही जाते हैं चाहे उनमें दूरियाँ कितनी भी क्यों ना हो। सच में दीदी ने मेरा एक बहन, साथी और माँ की तरह बहुत अच्छे से ख्याल रखा, फिर भी दीदी हर दिन मेरे को बोलती थी कि भाई मेरे को लग रहा है कि मैं आपका अच्छे से ख्याल नहीं रख पा रही हूँ। यह होती है बहन। मैं बहुत ख़ुश नसीब हूँ कि मुझे दुनिया की सबसे अच्छी बहन मिली।

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