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Puja Guru

Thriller

4.4  

Puja Guru

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"रहस्य"

"रहस्य"

3 mins
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गर्ल्स हॉस्टल के कमरा नंबर 13 में शोर मचा था, हर उन छुटियों की रातों की तरह जो सौम्य और पीहू ने 2 सालों में काटें थे। आज का विवाद था कल के पार्टी की तैयारी जो उनकी पूरी क्लास मनाने वाली थी सौम्य - ना , नहीं अच्छा नहीं लग रहा,यह पहनो  पीहू - मेरे पास कपड़े ही नहीं है सौम्य बिस्तर पर पड़े कपड़े के ढेर को देखती है। सौम्य - हाँ ,वही तो नहीं हैं पूरा ब्लॉक सर पर उठाने के बाद आखिर जंग खत्म हुई   सौम्य- चल बहन सो जाते हैं कल बहुत तैयारी करनी है 

बत्ती बंद कर दोनों अपने मोबाइल में लगी रहती हैं मोबाइल की रौशनी से उनकी आँखों चमक रही थीऔर चैट करती पीहू की ऑंखें मुस्कुरा रही थी" कल तुम अच्छे से तैयार होना ,दोनों कल आग लगायेंगे पार्टी मे" रोहन के तरफ से दिल का इमोजी आता है यही बातें करते पीहू की आंख लग जाती है

बिजली की जोर की गरज से पीहू अचनक से उठ जाती है, " बारिश ! अभी , अजीब है " " रूम मे अंधेरा होता हैं सौम्य सो रही होती है बहुत तेज़ बरसात हो रही होती हैं "पीहू अपने टेबल से बोतल उठा कर पानी पीती है और सोने से पहले एक बार अपना मोबाइल देखती है, उसमे सुबह के 8 बज रहे होते हैं" " 8 !अरे अब इसे क्या हुआ, वह टाइम ठीक करती हैं पर बार-बार वही आ जाता है" " बाहर तो अँधेरा है , वह खिड़की से देखती है और अभी  रात होती हैं"   मोबाइल बिगड़ गया , सुबह सौम्य से बात करुँगी " ज्यूँ ही वह अपनी ऑंखें बंद करने जाती है कोई जोर से दरवाजा पीटता है"  उसे बहुत अजीब और थोड़ा डर भी लगता है " "कौन हैं "कोई कुछ नहीं बोलता बस दरवाजा पीटता है वह फिर से पुकारती है "कौन है"   सौम्य - क्या हुआ पीहू कौन है खोलो ना दरवाजा पीहू - पता नहीं कोई बोल नहीं रहा "अरे यार डरपोक" यह कहते सौम्य उठ कर दरवाज़े के पास जाती है  । पीहू बैठी रहती है और तभी  सौम्य चीखती है- पीहू !

और दूसरे ही पल वह जमी पर खून से सनी पड़ी रहती हैं   उसकी एक आंख मे एक चाकू होता है  । पीहू बुरी तरह चीखती है और उसकी ऑंखें बड़ी हो जाती है  । दरवाजे के अंधियारी से हो दो काले साये आतें हैं और इसे पहले की वह सदमे से उभरती , उसके पेट मे चाकू होता है उस साए के बाल लम्बे थे वह गुर्राता बड़ी बेदर्दी से पूरा चाकू उसके पेट मे धकेलता जाता है   पीहू   के आँखों से आंसू बहते रहते हैं और वह उसे जोर से जकड़ी सौम्य को देखती रहती हैं पीहू को  पीछे धकेल वे जाने लगते हैं और उस दर्द मे वह धीमे-धीमे सांसे लेती उन्हें जाते देखती है  और अपनी ऑंखें मूँद लेती है

अचानक उसकी ऑंखें खुलती है और वह अपने बिस्तर पर होती है, सही सलामत ! सौम्य भी अपने बिस्तर पर सोती रहती  है पीहू  राहत की सांस लेती है "मुझे तो लगा सचमे मैं" तभी जोर की बिजली गिरती है और बाहर अँधेरा होता है उसकी धड़कन तेज़ हो जाती है  और  वह अपना मोबाइल उठाती हैं - "वहां 8 बज रहे थे"!


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