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Seema Sharma

Inspirational

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Seema Sharma

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रामराज्य

रामराज्य

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रामराज्य सुनते ही मन में छवि घूम जाती है, एक ऐसे राज्य व देश की, जहाँ केवल खुशियाँ ही खुशियाँ हों,

कोई दुखी न हो, बेफिक्री हो निश्चिंत रहने की कि हम कहीं जाएँ तो दरवाज़े खुले छोड़कर जा सकें, किसी चोरी का डर न हो, रास्ते में लूटपाट का भय न हो और भ्रष्टाचार का तो नामोनिशान ही न हो।

हम रामराज्य के लिए भगवान् श्रीराम! जैसा राजा तो चाहते हैं लेकिन स्वयं भगवान् राम की नीतियों का पालन नहीं करना चाहते, हम राम को तो मर्यादा में बाँधे रहना चाहते हैं लेकिन स्वयं अमर्यादित और उच्छंखल जीवन चाहते हैं, हम वो राम चाहते हैं जो अपने पिता का वचन निभाने के लिए वनवास के लिए चले जाएँ , लेकिन हम स्वतंत्रता चाहते हैं अपने जनक व जननी को वृद्धाश्रम में छोड़ने या घर से बाहर निकाल कर सड़कों पर भटकने देने की। हम राम चाहते हैं कि पत्थर की शिला बनी अहिल्या वापस अहिल्या बन जाए लेकिन अहिल्यायों को हम पत्थर बना देने की स्वच्छंदता चाहते हैं। भाई तो हमें राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न जैसे चाहते हैं जैसा चाहिए लेकिन हम राम नहीं बनना चाहते हैं और न ही लक्ष्मण, शत्रुघ्न और भरत जैसे। हम उस धोबी की तरह सीता पर लांछन तो लगाने की स्वतंत्रता चाहते हैं परंतु उस पर विश्वास रूपी फूल चढ़ा कर अपना विश्वास नहीं जता सकते। पराई स्त्री पर नज़र डालने वाले रावण का प्रत्येक दशहरे पर पुतला तो जलाते हैं परंतु स्वयं किसी सीता को अपवित्र करने की ताक में रहते हैं।

 क्या ऐसे ही आता है रामराज्य? क्या कर्तव्य केवल राम के हैं? प्रजा के नहीं?

 अगर सचमुच में रामराज्य चाहिए तो सबसे पहले स्वयं को मर्यादा में रखना होगा। वचनों के मूल्यों को समझना होगा, लक्ष्मण सा देवर बनना होगा, किसी भी स्त्री की रक्षा के लिए जटायु की तरह अपना धर्म निभाना होगा,

अंगद के पाँव सा मजबूत बनना होगा और पराई स्त्री पर नज़र डालने वाले रावण की लंका को जलाने के लिए हनुमान जैसा बनना होगा, दूरियों को मिटाने के लिए नल और नील जैसा पुल बनाने वाला बनना होगा।

वो धोबी नहीं बनना जिसके कारण सीता को अग्निपरीक्षा देनी पड़ी। रावण भी नहीं बनना जिसने केवल अपने अभिमान के लिए न केवल सीता के अपहरण का पाप किया अपितु अपनी सोने की लंका भी जला दी। राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न जैसे जीवन मूल्यों को अपनाइए ताकि हर जगह रामराज्य हो, न केवल भारत में अपितु पूरे विश्व में।

 अंत में रामनवमी के इस पावन अवसर पर बस यही कहूँगी कि

  हवाओं में राम, सितारों में राम,

  ह्रदय मेरे राम, कण-कण में राम,

  फूलों में राम, बहारों में राम

  हर रोम-रोम बसे मेरे राम,

  हर दिल पे लिख दो मेरे राम का नाम

  हर ज़ुबाँ से निकले मेरे राम का नाम

  हवाओं में राम, सितारों में राम...

  जब-जब आई धूप जीवन में,

  जब जले पाँव, तपती रेत में,

  तब- तब छाई राम नाम की

  छाँव तरूवर सी इस जीवन में,

  राम नाम की महिमा इतनी,

  पार लगा दे वो, डोले कहीं जो

  भँवर में नैया तुम्हारी,

  इतना विशाल मेरे राम का नाम,

  अमृत सा है मेरे राम का नाम

  हवाओं में राम, सितारों में राम।


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