राजकुमारी

राजकुमारी

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आँगन में एक कुआँ खोदा गया। कुएँ के पास एक मेंढकी रहने लगी। वह पूरे-पूरे दिन कुएँ की मुंडेर की छाया में बैठी रहती, और जब कोई आता-जाता तो एक ओर को कूदकर पुरानी बाल्टी के नीचे छिप जाती।

एक बार कोल्या पानी लेने कुएँ के पास आया और उसने महसूस किया कि बाल्टी की ओर कोई उछला है। पहले तो कोल्या डर गया, मगर फिर उसने एक ईंट उठाई और दबे पाँव बाल्टी की ओर बढ़ने लगा। वह दबे पाँव चलकर बाल्टी तक आया, पैर से बाल्टी को उलट दिया और ज़मीन पर बैठी मेंढकी को देखा। मेंढकी को भागने के लिए जगह ही नहीं थी, वह ज़मीन से चिपक गई और बिना पलक झपकाए, एकटक अपनी बड़ी-बड़ी दुखी आँखों से कोल्या को देखती रही।

कोल्या ने ईंट वाला हाथ नीचे कर लिया। अचानक उसे एक परीकथा याद आ गई। उस परीकथा में यह बताया गया था कि कैसे राजकुमार ईवान ने जवान राजकुमारी को बचाया था, जिसे दुष्ट जादूगर ने मेंढकी में बदल दिया था। कोल्या ने अपनी जगह पर ही पैर पटके और हौले से बोला:

 “डर मत।”

कुछ देर खड़ा रहा और फिर उसने पूछा: “क्या तू राजकुमारी है ?”

मेंढकी उसी तरह अपनी काली-काली, गोल-गोल आँखों से उसकी ओर देखती रही और फ़ौरन अपनी ठोढ़ी के नीचे की सफ़ेद थैली हिलाने लगी, जैसे कुछ कहने की कोशिश कर रही हो।

“और तेरा जादू कब ख़त्म होगा ?” कोल्या ने पूछा।

मेंढ़की ने फिर से अपनी सफ़ेद थैली हिलाई।

“ठीक है, चुप रह,” कोल्या ने कहा। “जब मैं बड़ा हो जाऊँगा, तब मुझे सारी बात बताना और तब तक इस कुएँ के पास रहना या फिर ये, इस पोर्च के नीचे।”

कोल्या ने ईंट फेंक दी, कुएँ से पानी निकाला, घर जाने के लिए मुड़ा और जैसे जम गया। ठीक उसी जगह, जहाँ मेंढकी बैठी थी, उसके सामने एक लड़की खड़ी थी। वह कोल्या से कुछ ही छोटी थी, गोरी-गोरी, तीखी नाक वाली, छोटी लाल ड्रेस में और हाथ में छोटी-सी बाल्टी पकड़े थी। कोल्या ने जल्दी से लड़की के आसपास की ज़मीन पर नज़र दौड़ाई : मेंढ़की नहीं थी।

“तूने, क्या, अपना जादू ख़त्म कर लिया ?” कोल्या ने पूछा।

“कब ?” लड़की अचरज से बोली।

“क्या, कब ? अभी-अभी।”

“नहीं, मैंने बस कपड़े बदले हैं, सफ़र के बाद।”

“अच्छे कपड़े बदले हैं !” कोल्या ने अपनी बात आगे बढ़ाई। “अब हमें क्या करना चाहिए ?”

“कुछ नहीं, मुझे पानी लेने दे,” लड़की ने जवाब दिया।

कोल्या एक और को हट गया और उसने पूछा: “और तू कहाँ की राजकुमारी है ?”

“मालूम नहीं,” लड़की ने जवाब दिया।

उसने पानी निकाला और गेट की ओर चल पड़ी।

“तू कहाँ चली ?” कोल्या चिल्लाया।

“घर,” लड़की ने जवाब दिया। “अब हम यहाँ रहते हैं, ये, पास ही में। आज ही आए हैं, फर्श धोना है।”

असावधानी से रास्ते में बाल्टी से पानी छलकाते हुए वह धीरे-धी फ़ाटक से बाहर निकल गई।


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