राहुल का संघर्ष
राहुल का संघर्ष
मैं सरकारी स्कूल का एक अध्यापक हूँ। आज आपको सच्ची और प्रेरणात्मक कहानी से रूबरू करवाता हूँ। मेरी पाठशाला में एक राहुल नाम का लड़का पढ़ता था। राहुल के दो छोटे भाई बहन भी उसी स्कूल में पढ़ते थे। राहुल पढ़ने लिखने में थोड़ा कमजोर था लेकिन स्कूल के बाकी कार्यों में बहुत सहयोगात्मक रुख रखता था। उसके पिता कई बार पाठशाला से होकर गुजरते थे तो हमेशा मेरे साथ बात होती थी। वे कहते थे गुरुजी कुछ भी हो जाए पर मेरे बेटे को रोटी के लायक जरूर कर देना। जैसे कैसे राहुल ने 5वीं की पढ़ाई पूरी की और छठी की पढ़ाई के लिए उच्चतर पाठशाला में दाखिला लिया। लेकिन अचानक सामाजिक रहन-सहन में परिवर्तन आया और हम लोग कोरोना काल के एक बुरे दौर से भी गुजरे।
इसी काल में अचानक राहुल के पिताजी को एक दिन साँस की दिक्कत महसूस हुई। घर की स्थिति बहुत दयनीय थी। राहुल के पिताजी बाजा बजाने का काम करते थे और उसी से उनके घर का पालन पोषण होता था। अचानक ज्यादा तबीयत खराब होने के बाद एक दिन राहुल के पिता इस दुनिया से चल बसे। मानो जिंदगी ठहर सी गई हो। इस क्षति से पूरे परिवार को एक बड़ा धक्का लगा। इस हृदय घातक चोट से संभलना पूरे परिवार के लिए बहुत ही मुश्किल कार्य था। मानो दुखों का पहाड़ गिर गया हो। राहुल घर का सबसे बड़ा बेटा था। अब सारी जिम्मेदारी राहुल के कंधों पर थी। मां के आँसुओं को पोंछने की जिम्मेदारी भी राहुल के कंधों पर थी।
लेकिन नन्हे कंधों ने ना ही हार मानी और ना ही अपने पिता के सपनों को चूर होने दिया। उसने अपने गांव की ही बाजा पार्टी के साथ मिलकर ढोल बजाना सीख लिया। उसके संघर्ष ने उसे जीने की नई राह दिखाई आजकल राहुल दसवीं कक्षा में पढ़ता है और साथ में अपने हुनर से अपने परिवार का भरण पोषण भी कर रहा है। इस समाज में न जाने कितने बच्चे राहुल की तरह छोटी उम्र में बड़ी जिम्मेदारियों के बोझ तले दब जाते हैं कुचले जाते हैं। उन्हें अपने जीवन के इन क्षणों के आनंद का एहसास ही नहीं होता। अचरज जी ही वे जीने लग जाते हैं अपने छोटे भाई बहनों और रिश्ते नातों को खुश प्रसन्न करने के लिए। गाहे-बगाहे में राहुल ने यह भी साबित कर दिया कि पढ़ाई के साथ-साथ हमारा टैलेंट या हमारे हाथ का हुनर हमें रोजगार की ओर ले जाता है।
सचमुच राहुल के संघर्ष को मेरा नमन है।