TejVir Singh

Drama Inspirational

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TejVir Singh

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राधा का गाँव - कहानी –

राधा का गाँव - कहानी –

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भोला की शादी को आठ साल हो गये। लेकिन औलाद नहीं हुई। उसकी माँ पारो अपने बेटे की संतान का मुँह देखने को तरसती रही और आखिरकार चल बसी। बापू तो उसकी शादी के दो साल बाद ही मर गया था। गाँव देहात में अकाल मृत्यु एक आम बात है। जिसका मुख्य कारण है चिकित्सा का अभाव।गाँव के आसपास कोई अस्पताल नहीं। सबसे नज़दीक जो अस्पताल है वह भी करीब सात किलोमीटर है। वहाँ भी छोटा सा कस्बा है। गिनी चुनी सुविधायें हैं। गंभीर मामले वहाँ भी शहर को भेज दिये जाते हैं।

भोला ने औलाद पाने के लिये सब तरह के जुगाड़ कर डाले थे। टोना टोटका से लेकर दवा दारू तक। एक बार तो शहर भी दिखा लाया था। इससे अधिक उसकी सामर्थ्य नहीं थी। एक मामूली सा किसान था।सीमित संसाधन थे। जैसे तैसे गुजर बसर हो जाती थी।एक छोटा सा खेत का टुकड़ा था और एक बकरी थी। बस यही कुल संपत्ति थी।

माँ की मौत के बाद उसका रुझान ईश्वर के प्रति अधिक बढ़ गया था। गाँव के आसपास के सारे मंदिरों में ढोक दे आया था। इसके अलावा भी किसी ने कोई ऐसा मंदिर बताया जिसकी मान्यता बहुत चर्चित हो तो दोनों पति पत्नी वहाँ भी दर्शन कर आते।

आखिरकार ऊपरवाले ने उनकी गुहार सुन ली। उसकी पत्नी गर्भवती हुई। निर्धारित समय पर उसने एक सुंदर कन्या को जन्म दिया। लेकिन डॉक्टर ने बताया कि अब यह दूसरा बच्चा पैदा नहीं कर सकेगी। उन्होंने इसमें भी सहमति दे दी। हमारे लिये यही सब कुछ है। दोनों खुशी से फूले नहीं समाये। अपनी क्षमता से अधिक खर्चा करके उसका नामकरण संस्कार किया। पंडित जी ने पत्रिका देख गणना कर बच्ची का नाम राधा निकाला।

बच्ची की किलकारियों से घर में रौनक आ गयी। घर खुशहाली से भर गया। पति पत्नि दिन भर दोनों उसकी देख भाल में लगे रहते। दिन पंख लगा कर उड़ने लगे।

सुबह से ही पति,पत्नी,बेटी और बकरी को लेकर खेत पर निकल जाते। शाम को लौटते।

लेकिन मुसीबत उनका पीछा नहीं छोड़ रही थी। जैसे जैसे राधा बड़ी हुई तो पता चला कि वह चलने फिरने में असमर्थ है। फिर वैद्य, हक़ीम और डॉक्टरों के चक्कर और दवा दारू का खर्चा। पता चला कि राधा को पोलियो है। इलाज़ के बाद भी कोई गारंटी नहीं कि ठीक हो जाय। जन्म के समय से ही इसकी दवा देनी होती है। जिसकी जानकारी भोला को नहीं थी। उसी का खामियाजा राधा को भुगतना पड़ा। पर माँ बाप ने प्रयास तो भरपूर किये लेकिन राधा की तक़दीर साथ नहीं दे सकी।

जितने मुँह उतनी बातें। कोई बोलता कि यह तो लाइलाज़ बीमारी है। कोई झाड़ फ़ूँक की सलाह देता। कुछ औरतें पीठ पीछे यह भी बोल देने से नहीं चूकतीं कि ऐसी औलाद से तो बेऔलाद ही ठीक हैं। अब किस किस का मुँह पकड़ो। धीरे धीरे राधा के माँ बाप ने राधा को ऊपर वाले के भरोसे छोड़ दिया । माँ घर पर ही उसके पैरों पर तेल की मालिश करती रहती थी। मगर उससे भी कोई विशेष फ़ायदा होता नहीं दिख रहा था।

अब चूंकि राधा की उम्र स्कूल जाने की हो चुकी थी। अतः गाँव के स्कूल में ही नाम लिखा दिया। सबसे बड़ी समस्या यह थी कि रोज उसे गोद में स्कूल ले जाना और वापस लाना। पर क्या करें। मजबूरी थी। माँ बाप के जिगर का टुकड़ा थी।

शुरू में तो स्कूल में राधा को किसी ने कोई विशेष तवज्जो नहीं दी लेकिन जैसे जैसे उसकी प्रतिभा निखरती गयी, वह पूरे स्कूल की लाड़ली हो गयी। उसके शिक्षक और सहपाठी उसकी सीखने की क्षमता देख कर दंग थे। वह एक बार सुनी हुई बात को कंठस्थ कर लेती। इस स्कूल के इतिहास में इतना तेज़ दिमाग वाला बच्चा पहली बार आया था।

राधा पूरे गाँव में चर्चा का विषय बनी हुई थी। गाँव के प्रधान ने राधा की स्कूल फ़ीस माफ़ करा दी। अन्य खर्चे जैसे किताब कापी आदि के खर्चे की जिम्मेवारी खुद प्रधान ने ले ली।अब राधा को स्कूल लाने ले जाने की जिम्मेवारी भी उसके सहपाठियों ने ले ली थी।

कहावत भी है कि ईश्वर किसी को एक अंग से अपाहिज़ करता है तो उसके किसी दूसरे अंग को अधिक शक्तिशाली कर देता है। राधा के साथ भी यही हुआ था। वह पैरों से अपाहिज थी लेकिन उसका मस्तिष्क कंप्यूटर की तरह काम करता था। जैसे जैसे वह बड़ी हो रही थी, उसकी बुद्धि चातुर्य के किस्से भी चर्चित होते जा रहे थे। उसकी शिक्षा की प्रगति से उसका पूरा गाँव और आसपास के गाँव भी चकित थे।हर साल वह परीक्षा में प्रथम आती थी।

अब सभी गाँव वालों को उसकी दसवीं की परीक्षा के परिणाम का बेसब्री से इंतज़ार था। क्योंकि यह समूचे राज्य के स्कूलों की एक ही बोर्ड द्वारा संचालित परीक्षा होती है।अधिकाँश लोगों की मान्यता थी कि गाँव के स्कूल के पच्चीस तीस छात्रों के बीच प्रथम आना कोई बहुत बड़ी उपलब्धि नहीं है।प्रतिभा का असली मूल्यांकन तो राज्य स्तर की आगामी परीक्षा से ही होगा।

आखिरकार वह दिन भी आ गया जब दसवीं की राज्य स्तरीय परीक्षा का परिणाम घोषित हुआ।स्कूल के बच्चे शहर जाकर समाचार पत्र की प्रति भी ले आये। पूरा गाँव आँखें फाड़ फाड़ कर समाचार पत्र को देख रहा था। किसी को भी विश्वास नहीं हो रहा था। समाचार पत्र के मुख्य पृष्ठ पर राधा की फोटो छपी थी। राधा ने पूरे राज्य में प्रथम स्थान प्राप्त किया था। गणित में तो उसने सौ में से सौ अंक प्राप्त किये थे ।भोला के घर पर बधाई देने वालों का ताँता लगा हुआ था। दूर दूर से लोग राधा को बधाई देने आ रहे थे। कुछ लोग तो केवल राधा को देखने के लिये ही आ रहे थे। खास बात तो यह थी कि एक विकलांग बच्ची पूरे प्रदेश में अव्वल आई थी।

अगले सप्ताह स्कूल का वार्षिक समारोह था।स्कूल के प्रधानाचार्य और गाँव के प्रधान मुख्य अतिथि के तौर पर मुख्य मंत्री को आमंत्रित करने गये जिसे मुख्य मंत्री ने तुरंत स्वीकार कर लिया।

स्कूल के वार्षिक समारोह में माननीय मुख्य मंत्री जी ने राधा की इस उपलब्धि की भूरि भूरि प्रशंसा की।साथ ही यह भी घोषणा की कि राधा जब तक पढ़ना चाहे, उसकी शिक्षा का संपूर्ण खर्च सरकार उठायेगी।मु ख्य मंत्री जी ने प्रधानाचार्य के प्रयासों को भी सराहा तथा इस स्कूल को डिग्री कॉलेज बनाने की अनुमति प्रदान की।

अंत में राधा को सम्मानित करने हेतु मंच पर बुलाया गया। मुख्य मंत्री जी ने राधा को उपहार स्वरूप एक प्रमाण पत्र, पुष्पों का गुलदस्ता, अपनी जेब से निकाल कर एक कलम और राज्य सरकार की ओर से इक्यावन हज़ार का चैक प्रदान किया। मुख्य मंत्री जी ने राधा से यह भी पूछा कि वह भविष्य में क्या बनना चाहती है। राधा ने बताया कि वह डॉक्टर बन कर अपने ही गाँव के लोगों की सेवा करेगी। क्योंकि उसके गाँव में कोई अस्पताल नहीं है, मुख्य मंत्री जी ने राधा को आश्वस्त किया कि तुम्हारे इस नेक कार्य में सरकार पूरी सहायता करेगी।

मुख्य मंत्री जी का आभार प्रकट करते हुए राधा ने एक निवेदन करने की इच्छा जाहिर की।मुख्य मंत्री जी ने कहा,"राधा, आज तुम्हारा दिन है। जो जी चाहे माँग लो। यदि वह मेरी पॉवर में होगा तो अवश्य दूंगा।"

"जी मुझे मालूम है कि मेरी माँग आपके लिये बहुत तुच्छ है। आपने बिना माँगे ही मेरे लिये और मेरे गाँव के लिये बहुत कुछ किया है। माननीय आपने कई शहरों के नाम बदल दिये हैं।हमारे गाँव का नाम बहुत खराब है। सब गाँव वाले इससे नाखुश हैं। मैं चाहती हूँ कि आप हमारे गाँव का नाम भी बदल दें।"

समूचा पांडाल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। सभी गाँव वाले राधा की बुद्धिमता की प्रशंसा कर रहे थे।

मुख्य मंत्री जी ने कहा ,"मुझे तुम्हारी माँग स्वीकार है। अब तुम अपनी पसंद का कोई एक नाम भी बता दो।"

मंच के सामने बैठा अपार जन समुदाय दम साधे इस बात का बेचैनी से इंतज़ार कर रहा था कि राधा क्या नाम सुझायेगी। लोगों को यही एक कौतूहल जैसा लग रहा था कि उनके गाँव में पहली बार मुख्य मंत्री जी पधारे थे।

राधा ने बड़ी सादगी से नहले पर दहला मार दिया, "आदरणीय इसका निर्णय भी आप ही कीजिए।"

मुख्य मंत्री जी ने कुछ पल सोच कर मंच से घोषणा कर दी," आज से यह गाँव "राधा का गाँव" कहलायेगा।"



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