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Tanvi Gupta

Inspirational

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Tanvi Gupta

Inspirational

प्रारब्ध

प्रारब्ध

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एक व्यक्ति हमेशा ईश्वर के नाम का जाप किया करता था। धीरे धीरे वह काफी बुजुर्ग हो चला था इसीलिए एक कमरे में ही पड़ा रहता था।जब भी उसे शौच, स्नान आदि के लिये जाना होता था; वह अपने बेटों को आवाज लगाता था और बेटे ले जाते थे।

धीरे-धीरे कुछ दिन बाद बेटे को कई बार आवाज लगाने के बाद भी कभी-कभी आते और देर रात तो नहीं भी आते थे। इस दौरान वे कभी-कभी गंदे बिस्तर पर ही रात बिता दिया करते थे।अब और ज्यादा बुढ़ापा होने के कारण उन्हें कम दिखाई देने लगा था, एक दिन रात को निवृत्त होने के लिये जैसे ही उन्होंने आवाज लगायी, तुरन्त एक लड़का आता है और बड़े ही कोमल स्पर्श के साथ उनको निवृत्त करवा कर बिस्तर पर लेटा जाता है। अब ये रोज का नियम हो गया।


 रात उनको शक हो जाता है कि, पहले तो बेटों को रात में कई बार आवाज लगाने पर भी नहीं आते थे। लेकिन ये तो आवाज लगाते ही दूसरे क्षण आ जाता है और बड़े कोमल स्पर्श से सब निवृत्त करवा देता है।एक रात वह व्यक्ति उसका हाथ पकड़ लेता है और पूछता है कि "सच बता तू कौन है ? मेरे बेटे तो ऐसे नही हैं।"


अभी अंधेरे कमरे में एक अलौकिक उजाला हुआ और उस लड़के रूपी ईश्वर ने अपना वास्तविक रूप दिखाया।


वह व्यक्ति रोते हुये कहता है : "हे प्रभु आप स्वयं मेरे निवृत्ती के कार्य कर रहे है। यदि मुझसे इतने प्रसन्न हो तो मुक्ति ही दे दो ना।"


प्रभु कहते है कि "जो आप भुगत रहे हैं वो आपके प्रारब्ध है। आप मेरे सच्चे साधक हैं; हर समय मेरा नाम जप करते हैं, इसलिये मैं आपके प्रारब्ध भी आपकी सच्ची साधना के कारण स्वयं कटवा रहा हूँ ।"


व्यक्ति कहता है कि "क्या मेरे प्रारब्ध आपकी कृपा से भी बड़े है; क्या आपकी कृपा, मेरे प्रारब्ध नहीं काट सकती है।"


प्रभु कहते है कि, "मेरी कृपा सर्वोपरि है; ये अवश्य आपके प्रारब्ध काट सकती है; लेकिन फिर अगले जन्म में आपको ये प्रारब्ध भुगतने फिर से आना होगा। यही कर्म नियम है। इसलिए आपके प्रारब्ध मैं स्वयं अपने हाथों से कटवा कर इस जन्म-मरण से आपको मुक्ति देना चाहता हूँ।"


 ईश्वर कहते हैं: "प्रारब्ध तीन तरह के होते हैं  


मन्द~तीव्र ~ तथा ~तीव्रतम


मन्द प्रारब्ध मेरा नाम जपने से कट जाते हैं। तीव्र प्रारब्ध किसी सच्चे संत का संग करके श्रद्धा और विश्वास से मेरा नाम जपने पर कट जाते हैं।

पर तीव्रतम प्रारब्ध भुगतने ही पड़ते हैं चाहे अवतार होकर आओ।लेकिन जो हर समय श्रद्धा और विश्वास से मुझे जपते हैं; उनके प्रारब्ध मैं स्वयं साथ रहकर कटवाता हूँ और तीव्रता का अहसास नहीं होने देता हूँ।


प्रारब्ध पहले  रचा,  पीछे  रचा  शरीर।

तुलसी चिन्ता क्यों करे, भज ले श्री रघुबीर।।



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