पनाह
पनाह
हिंदू मुसलमान के झगड़े अब दंगे का रूप ले चुके थे
मामा जी की सर कटी लाश और मामी का खून से सना हुआ बुर्का देख कर चीख-चीख कर रोने का मन हो रहा था।
इतना सब कुछ अचानक देख कर मैं एकदम से सन्न रह गयी समझ नहीं आ रहा था क्या करूं।
मैं उस समय बाथरूम में ना छुपी होती तो शायद मैं भी मारी जाती। घर के बाकी सदस्यों का कुछ पता नहीं चल पा रहा था। शाम तक मैं बाथरूम में ही बन्द थी। किसी तरह शाम को वहां से छुप छुपा कर निकली।
दिमाग में बस वहीं की तस्वीरें, मार काट ही घूम रही थी, चारों तरफ हाहाकार मचा हुआ था।
मेरे समझ में यह नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूं कहां जाऊं इसी तरह में छुपते-छुपाते वहां से निकल पड़ी और एक घर के छोटे से गार्डन में अपने आप को छुपा लिया।
रात के 12:00 बज रहे थे, प्यास से बुरा हाल हो रहा था।घर के बाहर एक टोटी दिखी जैसे ही उठ कर पानी पीने के लिए गयी मुझे एक परछाई सी दिखी, मैं डर गई फिर लगा कुछ और होगा, अभी थोड़ा ही पानी पिया होगा मेरे ऊपर एक तेज रोशनी पड़ी और सामने से आवाज आई
"कौन है वहाँ... बोलो नहीं तो बंदूक है मेरे पास"
मैं हड़बड़ाहट में कुछ बोल भी नहीं पा रही थी, मैं सिर्फ "पानी"
ही बोल पाई।
"कहाँ जाना है कौन हो आप ?"
आवाज में तीखापन था। मैं डर से और सुबह से कुछ भी न खाने की वजह से बेहोश हो गयी।
करीब आधे घंटे बाद होश आया तो मेरे सामने एक 20 या 22 साल का लड़का बैठा था।
मैं उठ कर बैठ गई। मेरे कपड़ों से वह समझ गया कि मैं एक मुसलमान की लड़की हूँ।
"घबराओ मत आप यहाँ सुरक्षित हो"
उसका यह बोलना मेरी घबराहट को कम नहीं बल्कि और बढ़ा रहा था।
मन में अजीब से सवाल उठ खड़े हो रहे थे। घर के दीवार पर लगा हनुमान जी का फोटो देख मैं समझ गयी थी कि मैं एक हिन्दू के घर पर हूँ।
"रात के 1:00 बज रहे हैं अब आप निश्चिंत होकर सो जाइए सुबह बात करते हैं"।
लेकिन मुझे उसके बातों पर भरोसा नहीं हो रहा था पता नहीं बाहर से दरवाजा बंद कर दे और कुछ और लोगों को बुला ले पता नहीं मेरे साथ क्या करें सब ऐसे ही सवाल मेरे जेहन में गूंज रहे थे। मैं वहाँ से भाग जाना चाहती थी लेकिन बाहर का माहौल पता नहीं कितना खराब हो, पता नहीं कितने लोगों का सामना करना पड़े कम से कम यहां एक ही था। हिम्मत कर के रुकना ही ठीक समझा। मैं उस लड़के से हिम्मत कर के बोली
"आप अपने कमरे में सो जाइए मैं बाहर सोफे पर सो जाती हूं"
कम से कम कमरे में बंद तो नहीं होंगे, बाहर आज़ाद तो रहेंगे ऐसा मैंने सोचा।
वह मान जाता है और कमरे में सोने चला जाता है। और मैं सोफे पर आ जाती हूं।
आंखों में नींद नहीं थी बार-बार वही दृश्य आंखों के सामने नाच रहा था पता नहीं कब आंख लगी सुबह जब आंख खुली तो वह लड़का किचन में था। मैं घर के बाहर वाले माहौल से अनजान थी पता नहीं बाहर क्या खौफनाक मंजर चल रहा होगा पता नहीं कितने लोग काट मार कर जला दिए गए थे।
"चाय पीयोगी चाय मेरे तरफ सरकाते हुए हुए बोला देखिए बाहर बहुत मार काट चल रही है आप अंदर सुरक्षित हो जब तक कोई आपका इंतजाम नहीं हो जाता आप बाहर जाने की मत सोचना। जैसे ही कुछ होगा जहां आप कहेंगे हम आप को छोड़ आएंगे"।
उसकी बातों मैं मुझे कुछ कुछ सच्चाई नजर आ रही थी लगा कि मैं सुरक्षित हूं। लेकिन कब तक यह दिमाग में प्रश्न बार-बार आ रहा था करीब 2 घंटे बाद किसी ने बाहर दरवाजा खटखटाया मैं एकदम से चौक गई उसने मुझे अंदर छुप जाने को बोला जब तक मैं ना बोलूं बाहर मत आना और दरवाजा खोलने चला जाता है। बाहर उसका दोस्त था जो उसी के साथ अंदर आता है और बाहर के किस्सा को बताने लगता है कहां लूटपाट हुई कहां आगजनी हुई कितने लोगों को जला दिया गया यही सब है अपने दोस्तों को बताया जा रहा था वह बहुत ही निश्चिंत होकर बता रहा था कि कितने मुसलमानों को जिंदा जला दिया गया उनकी औरतों से बदसलूकी किया गया घरों को लूट लिया गया बहुत ही खुशी खुशी से हुआ बता रहा था यह सब सुनकर मेरी रूह कांप गई और और मैं डर गई कहीं इसे मेरे बारे में मालूम हो गया तो यह बाहर जाकर और लोगों को बताएगा फिर मेरा क्या होगा। इसी बीच उसका दोस्त कुछ देर बाद बाहर चला जाता है यह बोल कर मैं कुछ देर बाद फिर आऊंगा उसके चले जाने के बाद जब मैं बाहर आई मेरे मन में कई तरह के प्रश्न चल रहे थे वह मेरी मनोभावों को सहज ही समझ रहा था और बोला अभी बाहर का माहौल ठीक नहीं है अभी आपको अंदर ही रहना होगा।
मैंने अपना संदेह जाहिर किया "अगर आपके दोस्त को मेरे बारे में मालूम हो गया तो मेरा क्या होगा?"
"तुम उसकी चिंता मत करो मैं उसे संभाल लूंगा। मैं उसको सब सच-सच बता दूंगा मेरा दोस्त है मैं उसे जानता हूं वह मान जाएगा"
लेकिन पता नहीं क्यों मेरे मन में विश्वास नहीं हो रहा था मुझे उसके ऊपर बिल्कुल विश्वास नहीं था जिस प्रकार वाह मुसलमानों के बारे में बोल कर गया था। शाम को उसका दोस्त फिर आता है इस बार वह मुझे अपने दोस्त से मिलवा देता है और सारी बातें बता देता है उसका दोस्त उससे साइड में आने को बोलता है और कहता है
"पगला गए हो? क्या अनर्थ कर रहे हो बाहर लोगों को पता चलेगा तो तुम्हारा घर भी फूंक देंगे। जानते हो मुसलमानों ने गोधरा में ट्रेन की एक बोगी में आग लगा दिया पता नहीं कितने हिंदू जलकर राख हो गए इन सब से बदला लेने का अच्छा मौका है लड़की है कहीं भाग भी नहीं पाएगी"
दोस्त के काफी समझाने के बाद भी वह लड़का मेरे साथ बुरा करने को कह रहा था और बोला कि हमारे हिंदू घर की लड़की अगर इस तरह मुसलमान के घर होती तो क्या वह लोग छोड़ देते कभी नहीं छोड़ते तुम गलतफहमी में जी रहे हो लोगों के साथ ऐसा ही करना चाहिए मेरी बात मानो इसके साथ भी वही करते हैं।
यह भाग भी नहीं पाएगी।
"इसे कुछ नहीं होने दूंगा अपने जीते जी और जहां तक तुम्हारी बात है खबरदार अगर तुम किसी बाहर वाले को बताते हो तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा मैं अपने जीते जी इस लड़की को कुछ नहीं होने दूंगा बेहतर होगा कि तुम भी ऐसे ख्याल मन से निकाल दो"
काफी समझाने के बाद बहुत सारी बातें होने के बाद उसका दोस्त मान जाता है कि वह किसी से कुछ नहीं बताएगा और वह बाहर चला जाता है लेकिन मेरे मन में अभी भी यह प्रश्न था क्या मेरे साथ वह भी सुरक्षित है कहीं ऐसा तो नहीं कि कुछ देर बाद ही लोग आकर इस घर को ही फूंक दें। लेकिन वह आदमी जिसका मैं अभी तक नाम भी नहीं जानती थी बोला
"नहीं वह मेरा दोस्त है मैं उसे जानता हूँ और अगर किसी को बताता भी है तो जब तक मैं जिंदा हूं तुम्हें कुछ नहीं होने दूंगा"।
रात करीब 9:00 बजे दरवाजे पर दस्तक होती है हम दोनों ही चौक जाते हैं मुझे घर के अंदर छुप जाने को बोल कर दरवाजा खोलने के लिए चला जाता हैं बहुत उसका दोस्त था जो कि हम लोगों के लिए खाने पीने का सामान और कुछ लेडीज के कपड़े लेकर आया था बातों बातों में ही मालूम हुआ कि वह दोनों ही यूपी के रहने वाले हैं। और यहां पर प्राइवेट जॉब करते हैं। आज मुझे उस अजनबी के साथ 3 दिन बीत चुका था बाहर का भी मामला अब कुछ शांत था तो मैंने उसे अपने घर जो कि यूपी के शाहजहांपुर में था वहां छोड़ने की बात की इन्हें तीन-चार दिनों में मुझे उस आदमी से लगाव सा हो गया था। एक अपनापन सा हो गया था। उसके अंदर की बात तो मैं नहीं जानती लेकिन मेरे अंदर उसके प्रति एक आस्था सी हो गई थी।
दूसरे दिन दोपहर को वह मुझे मेरे घर छोड़ने के लिए अपने दोस्त को बता कर निकला मैं बुर्का छोड़कर कमीज सलवार पहन लिया शायद इसमें मैं सुरक्षित थी बस का लंबा सफर साथ में अजनबी का साथ और मन में ढेर सारी उलझन लेकर मैं अपने घर की तरफ चल पड़ी रास्ते में वह मेरा ध्यान ऐसे रखता है जैसे कोई आदमी अपनी नई नवेली दुल्हन का रखता है। रात का समय काफी देर तक मैं जगती रही लेकिन 2:00 बजे के बाद मेरी आंख लगने लगी और मैं उसके कंधों पर झूल जाया करती जैसे ही उसके कंधे पर मेरा सर पड़ा मैं उठ कर बैठ जाती थी। वह मेरे सर को अपने कंधे पर रख कर बोला सो जाइए काफी रात हो गई है ।
करीब दोपहर को मैं अपने घर के करीब पहुंच गई।
मैं उसे अपने घर ले जाना चाहती थी सबसे मिलवाना चाहती थी कि यही वह फरिश्ता है जिसके बदौलत मेरी जान बची है लेकिन वह मेरे घर आना नहीं चाहता था मुझे बाहर ही छोड़कर चला जाना चाहता था।
मैं अपने घर के बिल्कुल करीब आ गई थी दुपट्टे से अपने सर को और मुंह को ढक लिया था मेरा घर बिल्कुल मेरे सामने था और उस अजनबी को मुझसे दूर जाना था घर जाने की खुशी थी सामने घर देखकर मैं दौड़ते हुए घर के अंदर चली गई सब मुझे देखकर हैरान रह गए अपने ऊपर बीते हुए हर एक बात बताई और यह भी बताया कि वह एक फरिश्ता जो मेरा ध्यान रखा और मुझे मेरे घर तक छोड़ने आया है।
वह मुझे मेरे घर के बाहर छोड़कर जा चुका था। मेरे घर के लोग मेरे मम्मी पापा मेरे भाई बहन सब मेरे आंखों के सामने थे लेकिन मेरी आंखें तो उस अजनबी को ढूंढ रही थी जो शायद मेरे जीवन का एक हिस्सा बन गया था।
मैं उससे आखिरी बार कुछ कह भी नहीं पाई और वह चला गया था अचानक मैं अपनी बहन का हाथ पकड़कर बाहर की तरफ भागी लेकिन वह जा चुका था बिना कुछ बोले ही और ना ही मैं कुछ बोल पायी। मैं उसको शुक्रिया भी अदा नहीं कर पाई जाने कब मुलाकात हो उससे, नाम भी तो भी नहीं जानती थी उसका क्या कह कर शुक्रिया अदा करती।
