पहरा
पहरा
वे दोनों एक मकान में छिपे थे। जिसकी छत पर आसमान टंगा था। जिसको तीनों ओर से स्लेटी रंग की दीवार ने घेर रखा था। चौथी तरफ दीवार में जड़ा कोई दरवाज़ा हुआ करता था शायद…जहाँ अब एक छोटा-सा कैक्टस अपनी छोटी-छोटी कँटीली बाहें फैलाये मानो पहरेदारी पर खड़ा था। चारों तरफ ठिठुरन थी.... एक स्याह ठिठुरन। जेनी पीटर का सर अपनी गोद में लिए उसकी स्वप्निल आँखों में डूबता हुआ चाँद देख रही थी। पीटर की साँसें थम रहीं थीं। उसके कपडे गीले थे,आँखें सूख रही थीं। जेनी ने हैरानी से पूछा, "तुम भीगे कैसे पीटर? यहाँ तो बरसों हुए बादलों को बरसे..."बरसे थे जेनी....बादल बरसे थे बीती रात सिर्फ मेरी देह पर"
"पीटर तुम बीमार हो, तुम्हारा भीगना ठीक नहीं।"
"जानता हूँ जेनी ये तुम्हारा प्रेम है जो मुझे भीगने नहीं देना चाहता...बचाये रखना चाहता है। पर अब कोई दुःख, कोई पीड़ा मुझे भिगो नहीं पायेंगे। ये भीगना, मेरा आखिरी भीगना है"
ऐसा क्यों कह रहे हो पीटर। अभी हमें बहुत सी बारिशें मह्सूस करनी हैं..बारिश की आखिरी बूँद संजोनी है एक दूसरे की हथेली में…अगले सावन तक के लिए।"
"मैं तुमसे कुछ कहना चाहता हूँ जेनी पर मेरे हलक़ में कुछ चिपका जाता है। न निगलते बनता है ,न उगलते बनता है"
"मैं तुम्हें सुन सकती हूँ पीटर। प्रेम लफ़्ज़ों का मोहताज नहीं। अचानक सन्नाटे को चीरती आवाज़ें हवा में एक घेरा बनाने लगती हैं… " ढूँढो उन्हें यहीं कहीं होंगे दोनों !!!बच न जाने पायें!!! "
पहरेदारी में खड़ा कैक्टस अपनी बाहें और फैला देता है। "मुझे बहुत डर लग रहा है पीटर! ये रात ढलती क्यों नहीं! "
"बस कुछ पल और जेनी ! मेरा हाथ थामे रखना। "
"हम्म्म्म…… "
पीटर के हाथ बर्फ की सिल्ली की तरह जमकर नीले पड़ने लगते हैं। जेनी पीटर के हाथों को अपनी हथेलियों में भरकर रगड़ने लगती है।"मेरे पाँव ठंडे हो रहे हैं जेनी…!!"
जेनी अपने एक पाँव में पहना फटा जूता निकालती है। अपने पीटर को पहनाना जो था।
पर पीटर कहीं नहीं है। सिर्फ एक आवाज़ अब भी गूँज रही है......."बस! कुछ पल और जेनी…बस कुछ पल और………