पैसा बोलता है
पैसा बोलता है
रामगढ़ गांव वो शोले वाला नहीं। हमारा वाला। अलग ही किस्म का है। मस्त मिजाज वाला। लोग अपने आप में मस्त रहने वाले। यहां के ठाकुर जालिम सिंह का सिक्का दूर दूर तक चलता है। कहने को चाहे देश में लोकतंत्र आये सालों गुजर गये मगर गांव में राज तो आज भी ठाकुर साहब का ही चलता है।
गांव के लाला किरोड़ीमल। बहुत नेकदिल और मिलनसार। हिसाब किताब के एकदम पक्के। अपनी पत्नी को भी अगर उधार दें तो कुछ सोना गिरवी रखेंगे फिर पैसा देंगे। ब्याज का पूरा हिसाब लगायेंगे। पैसा छोड़ नहीं सकते।
पंडित सत्यनारायण "नारद"। यथा नाम तथा गुण। इधर की बात उधर करने में महारत हासिल थी उसको। ठाकुर जालिम सिंह की मिजाज पुर्सी कर अपना काम निकलवाने में सफल होते थे हर बार। ठाकुर और भगवान जी का डर दिखाकर अपना सिक्का चला रखा था उसने।
बाकी सब आम आदमी। अपनी मेहनत मजदूरी करते। कमाते खाते। खेती करते और अपना गुजर बसर करते। गांव में भाईचारा भी खूब था। अगर किसी और गांव के व्यक्ति से झगड़ हो जाये तो पूरा गांव एक हो जाता लेकिन अगर गांव के किन्हीं दो या ज्यादा व्यक्तियों के मध्य झगड़ा हो जाता तो गांव भी दो गुटों में बंट जाता था।
सेठ किरोड़ीमल ने लोगों को खूब सारा रुपया उधार दे रखा था। पिछले कई सालों से प्रकृति की ऐसी मार पड़ी कि खेतों में कुछ पैदा नहीं हुआ। लगान चुकाना भी भारी काम था। खाने को दाने ही नहीं थे। सेठ किरोड़ीमल ने संवेदनशीलता दिखाते हुए खूब पैसा उधार दिया। लेकिन लोग चुका नहीं पाये। इसलिए मजबूरी के कारण उनकी जमीन सेठ कारोडीमल के स्वामित्व में चली गई। अब वही किसान सेठ किरोड़ीमल के खेतों में मजदूरी करने लगे। इस प्रकार किरोड़ीमल ने हजार डेढ़ हजार बीघा भूमि बना ली थी। अब वह खुद भी जमींदार टाइप का बन गया था।
सेठ जी की शादी को दस साल हो गए थे लेकिन उनके कोई संतान नहीं थी। सेठजी सुबह सुबह जंगल में नित्य कर्म के लिए जाते थे। तब "स्वच्छ भारत अभियान" का दूर दूर तक नामोनिशान नहीं था। था तो केवल " नैसर्गिक खाद डालो अभियान" ही था। लोग सुबह लोटा लेकर जाते और खेतों को खाद पानी देकर आते थे । सेठजी एक दिन खाद पानी देकर के आ रहे थे कि उसे किसी बहुत छोटे बच्चे के रोने की आवाज सुनाई दी। वे अनुमान के अनुसार आवाज की दिशा में चल दिए। पास में एक मेड़ के किनारे झाड़ियों में से आवाज आ रही थी। सेठ जी जब वहां पहुंचे तो देखा कि एक नवजात बालक एक चादर में लिपटा हुआ पड़ा है और अपनी पूरी ताकत से रो रहा है। उसके शरीर से अभी तक रक्त भी साफ नहीं किया था किसी ने। ऐसा लगता था कि किसी कुंवारी कन्या ने अपनी इज्जत बचाने के नाम पर एक मासूम को "कर्ण" बनने के लिए छोड़ दिया।
सेठजी की ममता जाग उठी। भगवान ने कोई बच्चा नहीं दिया था उनको इसलिए उन्होंने इसे भगवान की देन समझ कर उठा लिया और अपनी छाती से चिपका लिया। बच्चे को किसी का स्पर्श महसूस हुआ तो उसने रोना बंद कर दिया। रोते रोते वह थक भी चुका था इसलिए सो भी गया। सेठजी चुपचाप घर आ गए और सेठानी लक्ष्मी को वह बच्चा दे दिया। लक्ष्मी को तो जैसे सारी दुनिया मिल गई थी। उसने उसे अपने सीने से लगा लिया।
लक्ष्मी ने उसे नहलाया , दूध पिलाया और सुला दिया। वह उसे अपने बच्चे की तरह पालने लगी। थोड़े दिनों बाद लक्ष्मी ने सेठ किरोड़ीमल को एक खुशखबरी सुना दी कि वह पेट से है। कहते हैं कि ईश्वर जब देता है तो छप्पर फाड़कर देता है। अब लक्ष्मी अपने बच्चे के सपने देखने लगी। रामू, हां यही नाम रखा था सेठजी ने उसका, के प्रति लगाव कम हो रहा था लक्ष्मी का। ठीक नौ माह बाद एक सुंदर सा बच्चा पैदा हुआ जिसका नाम रखा गया समीर। अब दोनों बच्चे एक साथ पल बढ़ रहे थे। रामू की खुराक में भेदभाव होने लगा। रामू को स्कूल भेजना उचित नहीं समझा गया और छोटी उम्र में ही उस पर घर के कामों का बोझ डाल दिया गया।
रामू अब दस साल का हो गया था। एक दिन वह अपना काम निबटा कर जंगल से आ रहा था कि गांव के पास कुछ लड़के एक पिल्ले पर पत्थर बरसा रहे थे। वह पिल्ला बुरी तरह चिल्ला रहा था। रामू को पिल्ले पर दया आ गई। उसने उन लड़कों को डांट कर भगा दिया। पिल्ले को गोद में उठाया और अपने साथ ले आया। घर आकर पता चला कि वह पिल्ला नहीं पिल्ली है। रामू ने उसका नाम बसंती रंग दिया।
इस जमाने में लोगों के नाम भी हैसियत के अनुसार होते हैं। हम जब छोटे थे तो हमने यह कहावत सुनी थी
माया तेरे तीन नाम।
परस्या परसू परसराम। ।
अब इसका मतलब समझाते हैं। जब कोई आदमी दीन हीन हो, फटेहाल हो , गरीब गुरबा हो तो उसका नाम "परसराम" होने पर भी लोग उसे परस्या कह कर बुलाते हैं और उसकी गरीबी , बेबसी का मजाक उड़ाते हैं। जब उसकी स्थिति थोड़ी ठीक हो जाती है तो वह परस्या से परसू बन जाता है। अब लोग उसका उपहास उड़ाना बंद कर देते हैं और जब वह पूरा संपन्न बन जाता है तो फिर वह परसराम जो कि उसका असली नाम है , पुकारा जाने लगता है। और यदि वह और बड़ा आदमी बन जाता है तो उसके नाम के आगे सेठ, पंडित, ठाकुर , आदि आदर सूचक शब्द लग जाते हैं और पीछे चौधरी या साहब जैसे परम आदरणीय शब्दों से नवाज दिया जाता है।
रामू को लोग "राम्या" कहकर चिढ़ाते थे। उपहास उड़ाते थे। लेकिन रामू को हकीकत पता चल चुकी थी कि वह एक अनाथ बालक है जो सेठजी की छत्रछाया में पल रहा है। उसके दिमाग में सेठजी और लक्ष्मी के प्रति आदर भाव और बढ़ गया। उसने सोचा कि ऊपरवाले ने तो मुझे पैदा कर दिया। पता नहीं वो कौन है जिसने मुझे पैदा करके मरने के लिए छोड़ दिया लेकिन सेठजी ने मुझे एक नया जीवन दिया है। इसलिए मेरे तो भगवान ये सेठजी ही हैं। और तब से वह सेठ और सेठानी की एक तरह से पूजा करने लगा।
जब रामू पिल्ली लेकर आया तो लक्ष्मी को बहुत गुस्सा आया था लेकिन वह यह सोचकर खामोश हो गई कि यदि इस पिल्ली से इसे खुशी मिलती है तो यही सही। गांव के लोग रामू और उसकी पिल्ली बसंती जो धीरे-धीरे बड़ हो रही थी, का खूब मज़ाक उड़ाते थे। एक कहावत है कि गरीब की जोरू सबकी भाभी। रामू तो खुद अनाथ ऊपर से एक अनाथ पिल्ली। इसलिए सब लोग उसका भरपूर मजाक उड़ाते और आनंद मनाते। रामू की यह खासियत थी कि उसने कभी किसी बात का बुरा नहीं माना। सेठजी का पुत्र समीर उसे अक्सर चिढ़ाता रहता था। मारता पीटता भी था लेकिन रामू ने कभी शिकायत नहीं की। रामू निष्फिक्र होकर अपनी जिंदगी जी रहा था।
समीर इकलौता पुत्र होने के कारण उद्दंडी और जिद्दी हो गया था। एक दिन समीर ऊपर ऊंची रखी कोई चीज उतारना चाहता था लेकिन उसके हाथ वहां तक पहुंच नहीं रहे थे। उसने टेबल पर स्टूल रखा और चढ़ गया। जैसे ही उसने वो चीज उतारी इतने में उसका बैलेंस बिगड़ गया और धड़ाम से नीचे आ गिरा
स्टूल , टेबल और काफी सारा सामान टूट गया। समीर के दो दांत भी टूट गये थे। आवाज सुनकर सेठजी भी आ गये। रामू ने सारा दोष अपने ऊपर ले लिया और समीर को बचा दिया। सेठजी का गुस्सा सातवें आसमान पर था इसलिए उन्होंने रामू को मारने के लिहाज से बेंत उठाई। वो बेंत मारते इससे पहले लक्ष्मी बोली कि कोई बात नहीं , बच्चा है। बच्चे तो तोड़ फोड़ करते ही रहते हैं।
दर असल उसने संपूर्ण घटना छुप के देखी थी और रामू के त्याग को देखकर वह गदगद हो गई। उसने सेठजी को यह बात बताई तो सेठजी भी बहुत सोच में पड़ गये। अगले दिन से रामू उनका बेटा बन गया। अब वे उसे बहुत प्यार करने लगे।
रामू अब गबरू जवान बनने की ओर अग्रसर था। चिंता फिकर कोई थी नहीं और सेठजी तथा सेठानी ने उसे पुत्र मान लिया था इसलिए उसका भोजन भी पौष्टिक हो गया था। रूप रंग निखर रहा था। शरीर मजबूत तो था ही और सौंदर्य में वह कामदेव सरीखा लगता था। गांव की छोरियां मन ही मन उसे चाहने लगी। पर वह किसी पर भी ध्यान नहीं देता था।
ठाकुर जालिम सिंह की एक बेटी थी बेला। बला की खूबसूरत। मेनका भी कहीं नहीं टिके उसके सामने। एक दिन गांव में मेला लगा था। बेला पालकी में सवार होकर मेला देखने गई। पालकी में चारों ओर पर्दे लग रहे थे इसलिए बेला को कोई देख नहीं सकता था लेकिन बेला सबको देख सकती थीं। बेला ने एक खूबसूरत नौजवान रामू को देखा। पहली नजर में ही वह उसे दिल दे बैठी। पर्दे के पीछे से वह उसे अपलक निहारती रही। मेला वेला सब भूल गई थी बेला।
गांव की गलियों में फिर से उसका सामना रामू से हो गया। आपकी बार बेला ने पर्दे में से अपना मुंह बाहर निकाला। रामू ने उसे देखा और देखता ही रह गया। बदली में से जैसे चांद निकल रहा हो। बेला ने पालकी रुकवाई और उसमें से उतर कर रामू के पास आई। रामू का हाथ अपने हाथ में ले लिया और कहने लगी
" मेले वाले दिन आपको देखा था। एक सैकंड भी आपकी सूरत हमारी आंखों से हटती नहीं है। ख्वाबों में भी आप ही आते हो। ये तो बताओ , मेरे क्या लगते हो "?
रामू अचानक इस व्यवहार से घबरा गया और उसने कहा " राजकुमारी जी, मैं तो सेठ किरोड़ीमल का नौकर हूं। आपके काबिल नहीं। कृपया मुझे माफ़ कीजिए"
बेला इतनी जल्दी हार मानने वाली नहीं थी। उसने आगे बढ़कर रामू को एक चुंबन दिया और कहा कि हम आपको पा के ही रहेंगे। हां , कल शाम को ठीक सात बजे मंदिर पर आ जाना।
फिर मुलाकातों का सिलसिला शुरू हो गया। सेठजी का लड़का समीर भी बेला को चाहता था। एक दिन समीर ने दोनों को प्रेम लीला करते देख लिया। उसने आव देखा ना ताव। रामू पर हंटर बरसाने शुरू कर दिये। रामू जान बचाने के लिए गांव की ओर भागा। लेकिन समीर ने पीछा नहीं छोड़ा। रामू अपने घर आ गया लेकिन समीर उसे मारता चला गया। लक्ष्मी ने कारण पूछा लेकिन समीर ने उसे भी धक्का दे दिया। अब लक्ष्मी को क्रोध आ गया और वह बंदूक उठा लाई और दो गोली समीर में ठोक दी। समीर वहीं पर ढेर हो गया।
सब कुछ अचानक हो गया। किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था। पुलिस लक्ष्मी को पकड़ कर ले गई। अब सेठजी ने रामू को अपना वारिस मान लिया। उधर बेला ने ठाकुर जालिम सिंह को राजी कर लिया और रामू तथा बेला की शादी हो गई।
अब रामू की स्थिति बदल गई। अब वह सेठ किरोड़ीमल का पुत्र तो था ही साथ में ठाकुर जालिम सिंह का इकलौता दामाद और वारिस भी था। अब लोग उसे रामू कहकर नहीं बुलाते बल्कि सेठ रामनाथ कहकर बुलाते थे। रामू की कुतिया अब पूरे गांव की सबसे आदरणीय देवी बन गई थी। सब लोग उसे खिलाने के लिए कुछ ना कुछ सामान लेकर आते थे। बसंती ने छ: पिल्लों को जन्म दिया। इन पिल्लों को गोदी में लेने के लिए गांव के मर्दों और औरतों में टॉस से निर्णय किया जाता था। वही बसंती जिसे सब लोग दुत्कारते थे अब सबकी आंखों के तारा बन गई। सेठ रामनाथ और बेला का नाम अति आदर के साथ लिया जाने लगा।
इसलिए नाम का उच्चारण उसकी हैसियत के अनुसार होता है। यही सीख हमको इस कहानी से मिलती है।
