पापा की कड़वी सीख..
पापा की कड़वी सीख..
सुबह सोते हुए बेटे राकेश को उसके पिता संजय ने उठाते हुए आवाज लगाई कि आज दुकान पर नहीं जाना है.
बिस्तर छोड़ते हुए बेटे ने अलसाई आंखो से कहा कि "पापा अभी तो सुबह के सात बजे है. नौ बजे दुकान खोलने का समय है कुछ देर बाद चलेगें."
बेटे की बात सुनते हुए संजय ने अपने बेटे को जबरन पानी की छींटे मारते हुए उठाया और कहा बेटा दुकान खोलने का समय सुबह नौ बजे का जरूर है, लेकिन हम लोगों को दुकान खोलने से पहले दुकान के लिए बहुत सी तैयारी करना पड़ती है, इस कारण दो घंटे पहले जाकर दुकान पर पहुंच जाते है जो सामान कम है उसकी भरपाई भी हो जाती है.राकेश बिस्तर छोड़कर सीधे वाॅशरूम पहुंचता है.
संजय की एक किराना की दुकान पास में ही बने कांपलेक्स में है. संजय का छोटा सा परिवार है एवं परिवार में पत्नि राखी, बेटा राकेश व बेटी नैना है. बेटी का विवाह एक वर्ष पहले ही किया हैत्र
अब परिवार में तीन लोग ही रह रहे है. पिता संजय दिन भर केवल एक ही बात सोचते रहते है कि उनके बेटे राकेश को बहुत कुछ सीखा दे ताकि जीवन में आने वाले हर उतार चढ़ाव को समझ सकें.
इसको लेकर वह रोजाना दुकान जल्दी खोलने की बात करते है. आज सुबह इस बात को लेकर संजय को उठा रहे है.
संजय एक बात हर व्यक्ति से करते है कि उनके पिता रामचंद्र जी ने हमेशा उन्हे समाज की उंच नीच एवं व्यापार की बारीकियां सिखाई है. उनके जाने के बाद अब अकेला महसूस करता हूं.
राकेश वाॅस रूम से आता है तो संजय कहते है कि एक सप्ताह बाद राखी का सीजन आने वाला है व उसके लिए जो सामग्री है अभी खरीदी कर लो, बाद में सामान भी नहीं मिलेगा व दाम भी बढ़ जाएगें.
पंद्रह दिन बाद राकेश अपने पिता से कहता है..
"पापा आपने सही कहा था यदि उस समय सामान नहीं खरीदते तो दुकान पर ग्राहकी के लिए सामान नहीं रहता. ग्राहक भी वापस जाते. दुकान का नाम खराब हो जाता."
राकेश को उसके पापा संजय ने बातचीत ही बातचीत में व्यापार की बारीकियों के साथ समाज की बारीकियां समझाते हुए कहा कि बेटा यह वो समाज है जो उगते सूरज को प्रणाम करता है.
हमको हमेशा तेज तर्रार के साथ ईमानदार बने रहना होगा तभी जाकर समाज हमे समझेगा.
पापा ने राकेश को यह भी समझाते हुए कहा कि..
व्यापार में हमेशा ईमानदारी रखो..
बुरी नियत से लेन देन मत करो..
जिसका पैसा लिया उसे वापस करों..
यदि आपको पैसा लेना है और वो परेशान है तो उसे दिलासा दो..
किसी गरीब की हंसी मत उड़ाओं, उसको ईश्वर ने गरीब बनाया है.
तुम्हे उसकी हंसी उड़ाने का कोई हक नहीं है..
अपने पापा की बात सुनकर राकेश सोचता है कि भले ही पापा कुछ कड़क स्वर में बाते समझातें है लेकिन बाद में समझ में आती है कि धरातल पर ही जिन्दगी होती है, आसमां में उड़ने से कुछ नहीं मिलता.
