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Poonam Aggarwal

Inspirational

4  

Poonam Aggarwal

Inspirational

ओरा

ओरा

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यह कहानी गर्भ में ही कन्या भ्रूण - हत्या जैसे जघन्य अपराध के कारण पीडिताओं और उनके परिवार के लोगों की मनःस्थिति का चित्रण करती है और साथ ही संघर्ष की प्रेरणा देती है ..........

           "अरी सुन ........... तुझे पता है गीतू को फिर से दिन चढ़ रहे हैं ।" फोन पर माँ ने दिव्या को बताया । " हम्म " दिव्या ने संक्षिप्त सी प्रतिक्रिया दी । " अरी क्या हुआ , तुझे खुशी ना हुई क्या ? " माँ ने दिव्या से पूछा । " मेरे खुश होने से क्या होगा माँ ? गीतू के ससुराल वालों का खुश होना ज़रूरी है ।" ये कह कर दिव्या ने फ़ोन काट दिया ।

                  दिव्या और गीतिका ( गीतू ) सगी बहनें थीं । दोनों विवाहित थीं और अपनी - अपनी गृहस्थी में रमी हुईं थीं दिव्या गीतिका से पांच साल बड़ी थी और दो पुत्र उसे सन्तान रूप में प्राप्त हुए थे । गीतिका की एक बेटी थी । बस यहीं से कहानी में नया मोड़ आता है । गीतिका की बेटी छः वर्ष की हो चुकी थी पर अभी उसे दूसरा बच्चा नहीं हुआ था । गीतिका पूर्ण रूप से स्वस्थ थी और हर एक - डेढ़ साल के अन्तर पर गर्भ भी धारण करती थी , किन्तु गर्भधारण के चार महीनों के पश्चात बच्चे का लिंग पता करने के लिए अल्ट्रासाउंड कराया जाता और गर्भ में कन्या का पता चलते ही उस पर मानसिक दबाव बना कर उसका गर्भपात करवा दिया जाता ।

             पिछले तीन बार से यही दोहराया जा रहा था । साढ़े - तीन ,चार महीनों तक गीतिका गर्भधारण करके रहती और गर्भ में कन्या - भ्रूण का पता चलते ही तालिबानी हुक्म के अनुसार उसका गर्भपात करा दिया जाता । वजह थी गीतिका के पति और उसके सास - ससुर की बेटे की ख्वाहिश ।दिव्या को उसके माँ - बाप हमेशा अबॉर्शन के बाद ही सूचना देते थे पर अबकी बार स्थिति कुछ भिन्न थी । पिछले अबॉर्शन के समय अधिक रक्त - स्राव के कारण गीतिका की हालत गम्भीर हो गई थी और डॉक्टरों ने साफ़ कह दिया था कि अगर अगली बार अबॉर्शन का रिस्क लेंगे तो गीतिका की जान को भी खतरा हो सकता है ।

                        इसलिए अबकी बार मां - बाबूजी दोनों के मन गीतिका को लेकर चिंतित थे ।बेटी की ससुराल में दखलंदाजी करना भी उन्हें जंचता नहीं था । ऐसे में करें तो क्या करें ? मन बेटी की चिंता और सामाजिक मर्यादा के दो पाटों के बीच पिसा जा रहा था । धीरे धीरे साढ़े तीन महीने का समय भी व्यतीत हो गया । इस बीच माँ ने उसे पुत्र उत्तपत्ति के लिए न जाने कहाँ - कहाँ के गंण्डे - ताबीज़ , भभूति और गुरु जी के आश्रम से प्रसाद भी लाकर खिलाया । पर भ्रूण के लिंग - निर्धारण में गुणसूत्रों ( क्रोमोसोम्स ) के इस खेल में ये सब आडम्बर मिथ्या प्रमाणित होने थे , सो हुए । गीतिका की अल्ट्रासाउंड की रिपोर्ट में कन्या - भ्रूण की पुष्टि हुई ।

            उस दिन मां और पापा दोनों दिव्या के घर आये । दोनों के चेहरे चिंता से पीले पड़े हुए थे और मन आँधी में टूटे हुए पत्तों के समान विचलित थे । उनके सामने रखी चाय कब की ठंडी हो चुकी थी । कमरे में पसरे हुए सन्नाटे को तोड़ते हुए दिव्या ने दोनों से पूछा , " अब क्या ? " माँ ने शून्य में ताकते हुए अनभिज्ञता की मुद्रा में हाथ हिलाया । दिव्या ने पिता की ओर देखकर पूछा , " पापा ? " उन्होंने ठंडी साँस ली और बोले , " बेटा , हम लड़की वाले हैं । उनके परिवार के मामले में नहीं बोल सकते आखिर हमने बेटी ब्याही है । " "बिल्कुल पापा , यही तो समझने की बात है कि आपने बेटी ब्याही है , बेची नहीं है जिसके साथ वो जानवरों जैसा सुलूक करें । उन्हें ये बात समझाइये । " दिव्या का चेहरा उत्तेजना से लाल हो रहा था । पापा ने प्रश्नवाचक दृष्टि से उसकी तरफ़ देखा ।

        दिव्या ने बोलना जारी रखा , " देखिए पापा , ये उन्हें भी मालूम है और हम सबको भी कि गर्भ में भ्रूण की लिंग जाँच कराना ग़ैर कानूनी है और उससे भी बड़ा अपराध वो ये करते आ रहे हैं कि अपनी बहू का जबरन गर्भपात करवाते हैं । इसके लिए उन्हें जेल भी हो सकती है । बस आप हिम्मत करके उनसे कहिये कि यदि आपने अब गीतू पर दबाव बना कर उसका अबॉर्शन करवाया तो आप तीनों को मैं पिता होने के नाते हथकड़ी लगवा दूंगा । आप सब जेल में चक्की पीसोगे और ये बच्ची तब भी इस दुनिया में आकर रहेगी । " पापा सकते में आकर दिव्या का मुँह ताक रहे थे । अब दिव्या ने उनके हाथ थाम कर नरम स्वर में कहा , " पापा अगर आज आपने यह कदम नहीं उठाया तो वे पत्थरदिल लोग गीतू को फिर गर्भपात के लिए विवश करेंगे और अगर उसे कुछ हो गया , जैसी कि डॉक्टरों ने चेतावनी दे ही रखी है , तो वे लोग अगले साल ही बच्चे पैदा करने की दूसरी मशीन ले आएंगे । यदि किसी को फ़र्क पड़ेगा तो वो होगी गीतू की बेटी जो इस अबोध उम्र में ही अपनी मां को खो देगी , और दूसरे होंगे आप दोनों जो अपनी बेटी को हमेशा के लिए गवाँ दोगे । दिव्या ने अपने पिता के हाथों में कम्पन को स्पष्ट रूप से महसूस किया । अबकी बार चोट उनके मर्म पर लगी थी क्योंकि पन्द्रह साल पहले वे अपने इकलौते बेटे को सड़क दुर्घटना में खो चुके थे ।

             पापा ने दिव्या की ओर देखा तो उनकी आँखों में दृढ़ निश्चय झलक रहा था । उन्होंने अपना सुनहरे फ्रेम का चश्मा उतार कर रुमाल से अपनी आँखों के कोरों को पोंछा और माँ से बोले , " चलो खड़ी हो जाओ अभी गीतू के घर चलना है । सबक सिखाते हैं उन लोगों को । " दिव्या के चेहरे पर मुस्कान खिल आई और वो माँ - बाबूजी को जाते हुए देख कर विदा करने के अंदाज़ में हाथ हिला रही थी ।

  आप सोच रहे होंगे गीतू का क्या हुआ ?

तो पिताजी ने जब उन कायरों को उनके अपराध का बोध कराया तो उनके होश ठिकाने आ गए । अब उन्होंने चुपचाप बहू की सेवा करने में ही भलाई समझी । समय आने पर गीतिका ने एक फ़रिश्ते जैसी मासूम और प्यारी बच्ची को जन्म दिया । गीतिका ने दिव्या से कहा , " दीदी , इस बच्ची का नाम आप ही रखिए । दिव्या ने मुस्कुराते हुए कहा , " इसका नाम है ओरा । " ओरा का क्या अर्थ है ?" गीतिका ने प्रश्न किया । " ओरा का अर्थ है दैवी शक्तियों का आभामण्डल , जो हर अंधकार को मिटा दे । " दिव्या ने उत्तर दिया । सबके चेहरों पर खुशी खिल गई ।

                  


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