Poonam Aggarwal

Inspirational

4.8  

Poonam Aggarwal

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जीवनसाथी vs . जीवनमालिक

जीवनसाथी vs . जीवनमालिक

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              दर्पण के सामने बैठी सिया खुद को निहार रही थी । आसमानी रंग की शिफॉन की साड़ी , गले में मोतियों की माला , कानों में मैचिंग इयररिंग्स और हाथों में पतली - पतली सोने की चूड़ियां पहने हुए सिया बिल्कुल आसमान से उतरी हुई परी के समान लग रही थी । माथे पर छोटी सी बिंदी लगाते ही उसका सौंदर्य जैसे खिल उठा। सिया एक मल्टीनेशनल कंपनी में सीईओ के पद पर कार्यरत 25 वर्षीय आधुनिक विचारों वाली किंतु माता-पिता के नियंत्रण में पली एक मितभाषिणी युवती थी। बचपन से ही वह कुशाग्र बुद्धि की बालिका रही थी। प्रत्येक कक्षा में अव्वल आने के कारण वह सहपाठियों वह शिक्षकों की प्रिय थी। पिता ने सिया व उसके छोटे भाई को पढ़ाने लिखाने में कभी कोई कसर नहीं छोड़ी। बच्चों को योग्यता अनुसार मनपसंद विषय चुनकर आगे पढ़ने के लिए सदा कोशिश किया । उनका मानना था कि बेटा हो या बेटी एक पिता की पूरी जिम्मेदारी है कि उन्हें शिक्षित कर अपने पैरों पर खड़ा करें जिससे वे जीवन संघर्ष में विजयी हों । 

तो आज सज - सँवर कर सिया के तैयार होने का प्रयोजन यह था कि उसे लड़के वाले देखने आ रहे थे। सिया के रूप गुण की चर्चा उसके पिता के एक मित्र ने अपने किसी अन्य उद्योगपति मित्र के समक्ष की जो अपने बड़े बेटे के लिए योग्य लड़की तलाश रहे थे। सुनते ही उन्होंने लड़की देखने का कार्यक्रम बना लिया । समय पर लड़के वाले आ गए। लड़का जिसका नाम वेदांत था अपने माता-पिता व एक अन्य चचेरे भाई के साथ सिया को देखने आया था। चमचमाती मर्सिडीज ए एम जी से घर के बाहर आ कर रुकी महँगे ब्रांडेड कपड़े व सेंट की भीनी भीनी महक से घर में रौनक सी आ गई थी।माँ रसोई घर में मेहमानों की आवभगत की तैयारी में लगी थी। रसोईघर से आती स्वादिष्ट व्यंजनों की सुगंध व मेहमानों की चकाचौंध भरी लकदक किसी शुभ सूचना का संकेत दे रही थी।

                   माँ के साथ सिया हाथों में चाय की ट्रे था में ड्राइंग रूम में प्रवेश करती है । लंबी छरहरी काया वाली आकर्षक सिया को देखते ही सब ठगे से रह जाते हैं। दोनों पक्ष के लोग आपस में एक दूसरे के परिवारों की जानकारी प्राप्त कर रहे थे। सिया और वेदांत की एक आध बार नज़र मिली पर सिया ने नजरें झुका लीं । वेदांत का छोटा भाई उसे चिकोटी काट कर मुस्कुरा रहा था और उसका चचेरा भाई सारे वातावरण को खामोशी से निहार रहा था। तभी वेदांत की माँ जो कि कीमती साड़ी और ज़ेवरों से सुसज्जित थीं सिया की ओर उन्मुख होकर उसकी पसंद नापसंद, उसकी शिक्षा , और घर गृहस्थी के विषय में उससे पूछताछ करने लगीं । सिया से बात करके उनके चेहरे पर संतुष्टि के भाव तैर गए और वे वेदांत से बोली बेटा अब तुम भी कुछ बात कर लो।

         वेदांत तो जैसे इसी प्रतीक्षा में था। सिया की हॉबीज़ , घूमने फिरने की पसंदीदा जगहों और खाने-पीने की आदतों के बारे में बातचीत करने के बाद वह मुद्दे की बात पर आ गया। वह बोला , "सिया जी अब आप अपनी नौकरी से इस्तीफ़ा देने की तैयारी कर लीजिए।" सिया ने प्रश्नवाचक निगाहों से उसकी ओर देखकर पूछा, " क्यों भला? " वेदांत मुस्कुरा कर बोला , " देखिए हम दोनों एक दूसरे को पसंद हैं तो समझिए कि शादी होना लगभग तय है और शादी के बाद तो आप नौकरी करेंगी नहीं । " जी ? " सिया ने प्रश्न किया ।

" जी , भला शादी के बाद आपको नौकरी करने की ज़रूरत ? डैड का इतना बड़ा कारोबार है , हमारी अच्छी ख़ासी आमदनी है । आप तो बस घर में रह कर घर सम्भालियेगा । " वेदांत ने जैसे अपना निर्णय सुना दिया ।

" लेकिन मेरी ज़िंदगी भर की पढ़ाई , मेरा करियर , आज मैं जानी मानी कम्पनी में जिस मक़ाम पर हूँ वहाँ तक पहुंचने के लिए मैंने जो मेहनत की है उसका क्या ? उसे ऐसे कैसे छोड़ दूँ ? सिया ने प्रश्न किया । अब तक सब लोगों का ध्यान इन दोनों की बातों पर केंद्रित हो चुका था । वेदांत की माँ सिया को समझाने के अन्दाज़ में बोलीं , " बेटी हमारे यहाँ किसी चीज़ की कमी नहीं है अगर तुम रोज़ नई साड़ी और नए ज़ेवर भी पहनोगी तब भी हमें कोई फ़र्क नहीं पड़ेगा । "

" आँटी जी बात नए कपड़ों और ज़ेवरों की नहीं है , बात है मेरी प्रतिभा , मेरे अस्तित्व और मेरी अपनी पहचान की ।" सिया को इतना मुखर होते देख वेदांत कुछ असहज हो गया उससे नियंत्रण न रखा गया और वह बोल ही पड़ा , " किस पहचान की बात कर रही हैं आप सिया जी ? औरत की असली पहचान उसके पति के सामाजिक रुतबे से होती है । श्रीमती शर्मा .... , श्रीमती पांडे ..... , श्रीमती शुक्ला ...... , बस यही होती है एक औरत की पहचान और हम कर तो रहे हैं आपकी हर ज़रूरत पूरी , पाल तो रहे हैं आपको उम्र भर के लिए । "

 छनाक ...... सिया के हाथों में पकड़ा हुआ शर्बत का गिलास ज़मीन पर गिर कर चूर चूर हो गया । वेदांत की इस संकीर्ण मानसिकता से आहत हुई सिया ने खड़े होकर तत्काल उत्तर दिया , " किसी पंछी के पँख कतर कर उसे पिंजरे में बंद करके दाना डालने को आप पालना कहते हैं ? अच्छा हुआ जो मुझे पहले ही आपकी इस संकीर्ण मानसिकता का परिचय मिल गया । । " हाथ जोड़कर सिया बोली , " माफ़ कीजियेगा मैं इस विवाह के लिए सहमत नहीं हूँ । " सिया की माँ बेटी से कुछ कहने को तत्पर हुईं पर उनके पति ने उन्हें इशारे से मना कर दिया ।


 सिया हाथ जोड़ मेहमानों से मौन विदाई ले कर जाने के लिए मुड़ी । मेहमानों ने भी आँखों आँखों में एक दूसरे के चलने को कहा और उठ खड़े हुए । लेकिन एक शख़्स जो इस सारे घटनाक्रम को चलचित्र की भाँति देख रहा था वह था वेदांत का चचेरा भाई पृथ्वी । वह अपने स्थान से उठ कर सिया के सामने पहुँचा और वहाँ उपस्थित सब लोगों से बोला , " मैं आप लोगों से कुछ कहना चाहता हूँ ।" सिया बोली , " मैंने इस रिश्ते के लिए अपना स्पष्ट निर्णय बता दिया है अब कुछ भी कहना व्यर्थ है ।" वेदांत और उसके माता पिता के चेहरों पर खीझ और चिढ़न प्रकट हुई ।

             

 पृथ्वी बोला , " सिया जी , मैं आपसे इस रिश्ते की नहीं अपितु कुछ और बात कह रहा हूँ । मैं एक डॉक्टर हूँ दो साल पहले मैंने प्रेक्टिस शुरू की है । यदि आपकी व आपके परिवार की सहमति हो तो मैं आपका जीवनसाथी बनना चाहूँगा । सब लोगों के चेहरों पर हैरानी के भाव उभरे ।वेदांत गुस्से से एक कदम आगे बढ़ा पर उसके माता पिता ने उसे रोक दिया । पृथ्वी ने फिर कहना आरम्भ किया , " आप सब कृपया यह न समझें कि वेदांत भाई की बात बिगड़ने का मैं लाभ उठा रहा हूँ । दरअसल मेरे परिवार वाले भी मेरे लिए लड़की तलाश कर रहे हैं पर मेरी पसंद सिया जी जैसी लड़की ही है जो पति के स्टेटस पर निर्भर हो कर ऐशोआराम की ज़िन्दगी बिताने पर नहीं बल्कि अपनी काबिलियत के दम स्वयं की पहचान बनाने में विश्वास रखती हो ताकि वक़्त पड़ने पर वो कन्धे से कन्धा मिला कर चले और देखिए किस्मत से ऐसी लड़की मुझे अचानक ही मिल गई । " फिर वह सिया के माता पिता से मुखातिब हो कर बोला , " अंकल आँटी जी मेरी माँ और पिताजी रिटायर्ड स्कूल प्रिंसिपल हैं और मेरी एक छोटी बहन है जो अभी पढ़ रही है । यदि आप आज्ञा दें तो मैं उन्हें लेकर यहाँ रिश्ते की बात करने उपस्थित हो जाऊँगा ।

 

  परिस्थिति के इस नाटकीय घटनाक्रम से सिया का परिवार हतप्रभ रह गया । " जी आप सब सोच - विचार कर आराम से जवाब दे दीजियेगा । आखिर जीवनसाथी चुनना पूरे जीवन का प्रश्न है । चलता हूँ सिया जी । " पृथ्वी जाने लगा । वेदांत और उसके परिवार वाले तो पहले ही वहाँ से जा चुके थे । सिया के पिता ने प्रश्नवाचक दृष्टि से सिया व उसकी माँ की तरफ़ देखा । सिया ने मुस्कुरा कर धीरे से हाँ में गर्दन हिलाई और माँ के गले लग गई । सिया के पिता ने पृथ्वी के हाथ थाम कर कहा , " बेटा अगले हफ़्ते अपने माता पिता को हमसे मिलाने ले आओ ।" पृथ्वी के चेहरे पर मुस्कान तैर गई । उसने सिया को देखा तो सिया ने शर्मा कर गर्दन झुका ली ।

                         

             


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