न्यवान राजा
न्यवान राजा
पुराने जमाने की बात है। काशी में वीरबाहु नामक एक राजा राज्य करता था। वह अपनी प्रजा को बहुत प्यार करता था। उसके न्याय की चारों तरफ धूम थी। वीरबाहु की रानी का नाम सुमति था। वह बहुत सुंदर थी। अपने माता-पिता की इकलौती पुत्री होने के कारण अधिक लाड़ प्यार ने उसे घमंडी बना दिया था। सरदी के दिन थे। एक दिन रानी अपनी सखियों के साथ गंगा स्नान करने गई। कड़ाके की सरदी पड़ रही थी। स्नान करके लौटते समय रानी के हाथ-पैर ठिठुरने लगे। उसने इधर-उधर देखा, तो एक छोटी-सी झोपड़ी दिखाई दी। रानी ने अपनी सखियों से कहा, "आओ, इस झोपड़ी को जलाकर तापें।"
एक सहेली ने कहा, "महारानी! यह किसी गरीब की झोपड़ी है, इसे जलाना ठीक नहीं।" रानी ने कहा, “चार तिनकों की झोपड़ी है, जल जाएगी तो क्या? नई बनवा देंगे।"
देखते ही देखते झोपड़ी में आग लगा दी गई। हाथ-पाँव तापकर रानी अपनी सखियाँ के साथ राजमहल में लौट आई। वह झोपड़ी एक गरीब ब्राह्मण की थी। जब उस गरीब को पता चला कि रानी ने तापने के लिए उसकी झोपड़ी जला डाली है, तो वह बहुत दुखी हुआ और फ़रियाद लेकर राजा वीरबाहु के पास पहुँचा। राजा को यह जानकर बहुत दुख हुआ कि महारानी सुमति ने एक गरीब ब्राह्मण की झोपड़ी जला दी।
राजा ने महारानी को बुलाया और कहा, "तुमने यह क्या किया? एक गरीब की झोपड़ी जला डाली? क्या तुम्हे यह शोभा देता है?"
रानी सुमति ने तुनककर जवाब दिया, "चार तिनकों की झोपड़ी के लिए इतना तूफ़ान? जला दी तो क्या हुआ? नई बनवा दूंगी।"
राजा ने शांत स्वर में कहा, "रानी, यह मत भूलो कि तुम राजा वीरबाहु की पत्नी हो। तुमने गरीब का घर जलाकर उसे अनाथ बना दिया है। तुम्हें इस गलती का दंड भोगना ही पड़ेगा, तभी उस गरीब के साथ न्याय होगा। तुम्हें उसकी झोपड़ी फिर से बनानी होगी और वह भी अपनी मेहनत से! जब तक तुम अपनी मेहनत से वह झोपड़ी नहीं बना दोगी, तब तक तुम इस महल में नहीं रह सकतीं।"
रानी का सारा घमंड चूर-चूर हो गया। अब वह अपनी भूल पर पछताने लगी। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करें? आखिर उसने कमर कसी और जंगल में से लकड़ियाँ बीन- बीनकर बेचने लगी। सरदी गरमी और बरसात की परवाह किए बिना उसने एक वर्ष तक जी तोड़ परिश्रम किया। जो पैसे मिलते, उनमें से आधे पैसे बचाती और आधे में अपना खर्चा चलाती। बचे पैसों से उसने झोपड़ी तैयार करवा दी। अब उसे समझ में आया कि गरीबी क्या होती है और चार तिनकों की झोपड़ी बनाना गरीब के लिए कितना कठिन होता है। उसने गरीब ब्राह्मण से क्षमा माँगी। अब रानी का मन सरल हो गया था। महाराज वीरबाहु महारानी के परिश्रम और पश्चाताप को देखकर प्रसन्न हुए और वे महारानी को आदर सहित महल में ले आए।
