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abhay dwivedi

Drama

4  

abhay dwivedi

Drama

निस्वार्थ रिश्ता

निस्वार्थ रिश्ता

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आज इक ख़्याल ले बैठा हूँ,

दिल में इक सवाल ले बैठा हूँ,

मिरे सामने से होकर चले गए,

दिल जिन्हें निकाल दे बैठा हूँ,

दीद मिलाकर गए हैं मुझसे जो, 

निगाह में वो कमाल ले बैठा हूँ,

साया था या हक़ीक़त थी वो,

मै  ये एह तिमाल ले  बैठा हूँ ,

सर चढ़ा जूनूनए इश्क़ है मगर,

दिल बोला मैं बवाल ले बैठा हूँ,

ए.डी. की इस पेशकश के साथ ही तालियों की गड़गड़ाहट होने लगी . और इसी शोर के बीच से इक जवाब आता है इक मीठी सी आवाज़ के साथ ऐसी की सीधे दिल में उतर गयी और सब खामोश,

इश्क़ की बीमारी है,

गलती नहीं तुम्हारी है,

रोज़ मिलते हैं आशिक़,

पसरी यही महामारी है,

नाम प्रीत खूबसूरत सी चुलबुल तीखी बातें हाय ए.डी. के तो उड़ गए . वो पागल सा खिड़की पर बैठा चाँद से बातें कर रहा था हमेशा की तरह तभी अचानक से उसको प्रीत का जवाब याद आया और वो मुस्कुरा उठा और मन ही मन बोला हाँ पहले तो नहीं थी लेकिन अब बीमारी हो गयी है, 

फिर यूँहीं इक दिन फेसबुक चलाते चलाते अचानक इक प्रोफाइल पर ए.डी. की निगाह थम गयी और लबों पर तबस्सुम ऐसी थी जैसे की कोई सपना साकार सा हुआ हो. 

सपना ही तो था कल जिस प्रीत ने उसको जवाब देकर बीमारी दे दी, उसी की फ्रेंड रिक्वेस्ट भाईसाहब को आ गयी, 

वैसे तो जल्दी किसी की फ्रेंड रिक्वेस्ट एक्सेप्ट नहीं करते हैं लेकिन आज तो कोई देरी ना की झट से एक्सेप्ट कर तो ली, 

लेकिन भाईसाहब इंतज़ार कर रहे थे के उधर से कोई सन्देश आये तब बात आगे बढ़ाई जाए, 

दिल ने हाल बयाँ किया -

इक तो आये संदेश, 

कोई तो मिले आदेश, 

इंतजार -3 करता हूँ, 

बेशुमार -3 करता हूँ, 

तभी अचानक से संदेश वाले चिन्ह पर 1 लिखा हुआ आता है भाईसाहब झट से क्लिक करते हैं तो इक संदेश मिलता हैं, 

महफिल तो अच्छी सजाई थी, 

शायरी भी अच्छी बताई थी, 

मगर  यहाँ हो  मौन क्योँ, 

इधर से जवाब गया :-

अजनबी से वार्तालाप कहाँ से शुरू करूँ, 

ज़िन्दगी हैं बेहिसाब कहाँ से शुरू करूँ, 

उधर से जवाब आया, 

दिल की कोई बात बता दीजिये, 

जो आपका है अंदाज़ बता दीजिये, 

बस यूँ ही कुछ बात चलती रही, 

दोनों दिल में आशिकी पलती रही, 

बातों-2 में इक मरासिम बन गया, 

दो रूह इक जिस्म में पिघलती रही, 

फिर ए. डी. इक दिन बोला प्रीत शायद हमें मिल लेना चाहिए ये मेरा सोंचना है तुम क्या सोंचती हो इस बारे में, 

प्रीत ऑफलाइन हो गयी, ए. डी. परेशान हो गया और सोचने लगा की मैं क्या कोई गलत सवाल किया है सिर्फ इक मुलाक़ात ही तो मांगी थी, दरअसल प्रीत के साथ इक हादसा हो चुका था और जैसे ही ए डी का ये सवाल आया तो उसके 

ज़हन में वही मंज़र वही आवाज़ें जैसे ताज़ा हो गयी के कैसे उसको उसके ही स्कूल टीचर ने बुला कर बलात्कार की कोशिश की थी, अब दोनों तरफ अलग अलग मंज़र था, 

इक तरफ ए डी सवालों में उलझा था की उसने क्या गलत कहा और दूसरी तरफ प्रीत ख़ामोश अतीत से घिरी हुई मानो खुशियों की बारिश में कोई ख़लल पड़ गया हो, फिर अगले दिन प्रीत ने मैसेज किया और ये हादसा हूबहू उसको बताया. 

फिर खामोश हो गयी, इधर ए डी मानो सुन्न हो गया था और ख़ुद से ही सवाल पूँछ बैठा की शिक्षक कबसे ऐसा करने लगे उधर प्रीत ने अचानक से सवाल किया के कैसे भरोसा करूँ किसी पर या तुम पर के तुम ऐसा नहीं करोगे, 

ए डी सुन्न था क्या जवाब देता और ऑफलाइन हो गया, उसके सारे जवाब अपने वज़ूद को झाँक रहे थे,  

फिर कुछ देर बाद ए डी ने मेसेज किया मैं वैसा नहीं हूँ और फिर ऑफलाइन हो गया, 

फिर दो दिन बाद प्रीत का मैसेज आया की अच्छा कहाँ मिलना हैं, 

आखिर मिलना हुआ आज प्रीत पहले दिन से ज्यादा खूबसूरत तो थी मगर डर रही थी शायद अतीत के हादसों से मगर ए डी के आचरण में उससे कहीं भी कुछ गलत नज़र नहीं आया था, 

ख़ैर दोनों इक रेस्तरां में मिले चाय पी और चाय पीते पीते ए डी बोला की देखा ना मैं वैसा नहीं हूँ, प्रीत कुछ नहीं बोली और चुप रही और दोनों 2 घन्टे साथ रहे और चल दिए इस दौरान प्रीत ने इक बात पर गौर किया की ए डी जो की उसके साथ तो था मगर उसने उसको छूने या उसकी तरफ बढ़ने की कोशिश नहीं की वो तो सिर्फ इधर की बातों से उसको हंसाने की कोशिश कर रहा था मगर अतीत में जो हुआ था उससे प्रीत अभी बाहर नहीं आ पायी थी, लेकिन अब शायद उसे कोई मिल गया था, मगर वो हर क़दम फूंक फूंक कर ही रखना चाहती थी, 

ऐसे ही दोनों की काफी मुलाकातें होती रही और प्रीत माज़ी से बाहर आती रही, तभी इक दिन प्रीत बोली तुम मुझसे शादी करोगे, ये सुन के ए डी उसकी तरफ देखने लगा वो बोला क्या कहा शादी मगर अभी मेरी इतनी अच्छी तनख्वाह नहीं हैं के दो लोगों का खर्चा उठा सकूँ, प्रीत बोली तुम नयी नौकरी देख लो ना जिसमें ज़्यादा तनख्वाह हो, हाँ देख ही रहा हूँ मगर, 

मगर क्या प्रीत ने कहा और बोली मैं भी तो जॉब करती हूँ दोनों मिलकर संभालेंगे, 

ठीक हैं ए डी मुस्कुराया और दोनों अपने अपने घर चल दिए, 

आज दोनों इक साथ अपनी दुनिया सँवार रहे हैं और खुशहाल ज़िन्दगी जी रहे हैं, 

हर किसी को इक साथ चाहिए होता है और कुछ नहीं अक्सर क़दम बहक जाते हैं मगर उसको सँभालने वाला होना चाहिए फायदा उठाने वाला नहीं।


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