नौ रसों की देवी "धर्मपत्नी"

नौ रसों की देवी "धर्मपत्नी"

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नमस्कार,


हम कमल नारायण। एक पति, एक पिता और साथ ही एक बैंक कर्मचारी। जी हाँ यही पहचान है हमारी। जब मेरी शादी हुई थी, सब दोस्त मुझे चिढ़ाते थे कि कमल अब तो तू खिलने वाला है। बड़ा ही बेहूदा मज़ाक लगता था हमें, पर हाँ शादी के बाद तो सभी फलते-फूलते और खिलते ही है तो लो जी हम भी खिल गये। लेकिन अपने नाम को सार्थक करते हुए खिले। कमल एक खिला हुआ कमल जो देखने में खिलखिलाता बहुत सुंदर दिखता है पर उसमें किसी भी प्रकार की खुशबू नहीं होती। हमारी जीवन गाथा भी कुछ ऐसी ही हो गयी, पर कमाल की बात ये थी कि हमारी जीवनसाथी का नाम खुशबू है।


हमने सोचा चलो कमल के पास अपनी खुशबू नहीं होती तो भगवान ने दया कर के हमें एक सुंदर सी खुशबू दे दी है जो हमारे जीवन को महकाएगी, पर जनाब जो हम सोचते है वो होता कहाँ है और जो नहीं सोचते वो तो यकीनन होता है। तो आईये आपको रूबरू कराते है अपनी खुशबू जी से, जिन्हे हमने "रसों की देवी" का नाम दिया है। नौ रस, पढ़ा है ना आपने हिंदी में? तो आईये आज उन रसों का उल्लेख हमारी धर्मपत्नी में देखिये।


शादी के बाद रोज आईने के सामने घँटो बन सँवर कर हमारे सामने आती, थोड़ा शरमाती, सकुचाती "सुनो जी" कह कर बुलाती तो ऐसा लगता मानो श्रृँगार रस की वर्षा हो रही हो। बात बात में हँसती, मुस्कराती। कभी-कभी तो ठहाके तक लगा जाती। कपिल का शो देख कर हँसती तो मानों लगता घर में कोई पागल आ गया हो। बत्तीसी काढ़े जोर जोर का हँसना आज भी नहीं भूलता मुझे। बड़ी मज़ाकिया थी हमारी खुशबू जी और हमें उनमें हास्य रस की अनुभूति भी होने लगी।


फिर दौर आया हमारी पत्नी की गर्भावस्था का। मूड स्विंग के बारें में बहुत बार सुना था पर भैया प्रेगनेंसी के दौरान तो हमारी पत्नी जी ने हद कर दिया था। बात बात पर इमोशनल हो जाती थीं और जिद करने में तो माहिर हो चुकी थी। रास्ते चलते जीव जन्तु भी दिख जाए तो इनके करूणा का रस छलक ही जाता था और तब ही हमें भी पता चला कि ये खींसे निपोर कर हँसने वाली देवी करूणामयी भी है।


पर ये क्या हुआ अचानक, हम तो जैसे घबरा ही गये। ये करूणामयी देवी अचानक से माँ काली और रौद्र रूपी दुर्गा कैसे बन गयी? वो क्या हुआ कि हमारी माता जी आई थीं कुछ दिनों के लिए जब खुशबू जी का सातवां महीना चल रहा था। तब बातों बातों में माता जी कह गयी कि "हमारा कमल तो खिलने की जगह मुरझाते जा रहा है। काश हमने वो दूर वाली जीजी की बात मान ली होती और कमल का रिश्ता उनकी दूर की दीदी की बेटी के साथ कर दिया होता, तो आज दान दहेज भी खूब मिला होता और वो संस्कारी गाँव की लड़की कमल की सेवा भी करती"


माँ की बात सुन हमने तो दाँतो तले ऊँगलिया दबा ली। ये क्या कह दिया! माँ ने हमारी पत्नी के अंदर दबा क्रोध आज बाहर आने को मचल पड़ा। तमतमाता लाल चेहरा, बड़ी बड़ी घूरती आँखे। बाबा रे! इतना ही काफी था सब समझने के लिए। हमने माँ को ले जाकर झट से पास के मंदिर पर पहुँचा दिया जहाँ कीर्तन चल रहा था। वरना आज इनकी तू तू मैं मैं तो तय ही थी। घर आते ही रौद्र रस दिखने लगा "आपकी माँ को मुझमें खोट ही नजर आते है। क्यों कराई शादी? गाँव की तो खुद भी है, पर क्यों नहीं करती पापा जी की सेवा? कभी यहाँ तो कभी बड़े भैया के घर घूमती रहती है" जैसे तैसे शांत कराया मोहतरमा को। आखिर बच्चे की सेहत का भी तो ख्याल था हमें, पर ये क्या क्रोध रह रह कर बढ़ते जा रहा था और अब वीर रस की उत्पति हो चुकी थी "देख लूँगी मैं सबको, पापा ने इतना कुछ दिया पर अभी भी दहेज में कमी नज़र आ रही है। दहेज लेना जुर्म है पता नहीं क्या आप सबको। सबको हवालात की हवा खाने का शौक है क्या"


हमारा भी माथा जरा टनक गया और जरा सा वीर रस और रौद्र रस का मिश्रण हम में भी समा गया। हमने आवाज जरा ऊँची की और कह दिया- "बस करो, कुछ भी कहे जा रही हो। माना कि माँ ने सही नहीं कहा पर तुम कौन सी सही बात बोल रही हो”


ऊँची आवाज वो सह ना पायी और थर थर कर कँपकँपा गयी। आवाज भी हकलाने लगी और आँखे भी नम हो गयी। हम समझ गये कि इनमें भय का संचार हो गया है और ये भयानक रस को महसूस कर रही है। हम झट से उनकी तरफ पहुँचे और हाथ बढ़ा कर उन्हे बाहों में भर कर चुप कराना चाहा पर ये क्या उन्होने तो हमारा हाथ ही झटक दिया। हमने सोचा शायद फिर से मूड स्विंग का झमेला होगा तो हम फिर जरा करीब गये और वो लगी कहने कि "घिन आती है मुझे ससुराल वालों की सोच पर। वो बहू को बेटी बना ही नहीं सकते। हमेशा बस अपना ही सोचते है। घिन है ऐसी नकारात्मक सोच पर”


हम समझ गये विभत्स (घृणा) रस का संचार पूरी तरह से उनमें समा चुका है और अब कुछ भी कहने का कोई फायदा नहीं है। हमने उनकी दवाईयाँ, खाना लेकर उनके पास गये और उदासी भरे स्वर में बोले "खुशबू जी, आप खाना लो वरना बच्चा भी भूखा रह जायेगा और आप भी" बस फिर क्या था उसी वक्त विभत्स रस की जगह अद्भुत (आश्चर्य) रस समा गया उनमें। वो टुकुर टुकुर हमें देखने लगी और हमने चुपचाप उन्हें खिला दिया और शांति से सुला दिया। अब ये मोह उनके लिए था या बच्चे के लिए ये समझ नहीं आया हमें आज तक।


पर ये क्या वो उठकर आ कर हमारे पास बैठ गयी और हमें बाहों में भर कर कहा "प्रेगनेंसी है ना, मूड स्विंग तो हो ही जाता है। माफ करना" हमने आश्चर्य से उनकी तरफ देखा पर इतना ही नहीं, अभी तो एक और चौंकाने वाली बात कह गयी वो" आप मम्मी जी को लेते आईये। तकरीबन दो घंटे होने आए है। उन्हे भी भूख लगी होगी। हाँ वो कुछ भी कह जाती है पर बड़े लोगों का हाथ सिर पर बना रहे तो अच्छा लगता है। जाईये जल्दी ले आईये फिर मैं आप दोनो के लिए खाना लगाती हूँ” तो भई इस बार हम भी अद्भुत रस का शिकार हो गये अपनी पत्नी जी को देख कर।


खैर बात बिगड़ते बिगड़ते सँवर गयी और खुशी खुशी हम माँ को घर ले आए। खुशबू जी ने खाना परोसा प्यार से और माँ ने भी खाने की तारीफ की ये सोच कर कि खाना खुशबू ने बनाया है (वैसे बनाया तो हमने ही था पर हमने खुशबू को आँखे मटका कर समझा दिया कि भाग्यवान अब कुछ ना कहना। माँ को उनकी खुशी में खुश रहने दो।) हमारी भाग्यवान में शांति रस का संचार हो चुका था और उन्होने बिना कुछ कहे मुस्कुराते हुए माँ के पैर छू लिए और माँ ने प्यार से सिर पर हाथ फेर दिया। शांत रस का इससे बड़ा उदाहरण और कहाँ मिलेगा कि "दोनों के मन में ज्वाला दहक रही है जरूर, पर हमारे प्यार के सामने दोनो हुए पड़े है मजबूर"


हा हा हा... हमें तो बहुत खुशी हुई सब देख कर और फिर खुशियाँ दोगुनी, तिगुनी होती ही चली गयी जब हमारी बिटिया रानी गोद में आई। लेकिन ये तो हम सभी जानते है कि जब तक ज़िंदगी में रस ना हो ज़िंदगी नीरस लगती है तो लो भाई हमारी धर्मपत्नी में आए दिन मल्टीपल पर्सनालिटि डिसऑर्डर से पीड़ित इंसान की तरह बदलाव होने लगे। कभी अप्सरा बन जाती तो कभी रूद्रा बन जाती। माँ की ममता में कभी करूण रस झलकता तो बहू बनते ही वीर रस सवार हो जाता।


आज शादी को पूरे आठ साल बीत चुके है, पर हमारी मोहतरमा की आदतें वैसी की वैसी ही है। मूड स्विंग प्रेगनेंसी के वक्त होता है ये तो पता है, पर ज़िंदगी भर चलता रहता है ये नहीं पता था, तो जनाब इन्ही आदतों के कारण हम चुप रहना ही बेहतर समझते है और एक समझदार पति की मिसाल भी कायम करते है। बस यही कारण है कि हमने अपनी पत्नी को "रसों की देवी" का दर्जा दे दिया है।


यहाँ ज्यादातर पाठक महिला ही है तो प्रिय महिलाएँ बताईये क्या आपके पति को भी आप में रसों की देवी नज़र आती है? और अगर आती है तो क्या आपके पति हमारी तरह चुप रह कर समझदारी दिखाते है? नहीं दिखाते तो उन्हे भी ये कहानी पढ़ाईये और कहिये कि "ज़िंदगी में खट्टा मीठा रस ना हो तो ज़िंदगी नीरस हो जाती है”


तो चलिए मैं कमल नारायण आप सब से विदा लेता हूँ और अपनी पत्नी के पास जा कर मुआयना कर आता हूँ कि अभी वो कौन से रस में समाहित है। जी हाँ, देखना जरूरी है तभी तो हम खुद को भी उसके अनुरूप रंग पाएँगे। हर परिस्थिति में एक दूसरे का साथ निभाना ही तो पति पत्नी का पहला दायित्व है। 


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