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"Tri" ShiV"

Drama Classics

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"Tri" ShiV"

Drama Classics

मुहब्बत की महक

मुहब्बत की महक

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सुहाग की सेज पर बैठी "कशिश" अपने मांजी की गहराईयों में हुई खोई थी। पूरा कमरा रोशनी और खुशबू दार फूलों से सजा हुआ था। खिड़की से आता, हल्की हल्की ठंडी हवा का झोका, उसके दुप्पटे से अठखेलियां कर रहा था। उसने अपने भारी भरकम शरारे को संभाला और खिड़की के पास जा खड़ी हुई। वह दुल्हन बनी बेहद ही खूबसूरत और हसीन लग रही थी लेकिन उसकी आंखो की उदासी उसे पछतावे की आग में झोंक रही थी। 

आयाज ने कमरे मे कदम रखा तो वह सहम गई, बुत बनी रह गई। आयाज ने एक नजर अपनी हसीन दिलकश दुल्हन कशिश पर डाली। जो किसी गहरे समंदर सी शांत, अपने ख्यालों में गुम खिड़की के पास खड़ी थी, कशिश ने मन ही मन सोचा 

 उसका शौहर आयाज भी बाकी सब लोगो के जैसे उसे भला बुरा कहेगा। उसके किरदार पर उंगली उठाएगा, उसके किरदार को बदगुमानी और बदचलनी का नमूना करेगा मगर अयाज ने ऐसा कुछ नही किया, उसने कशिश को एक लफ्ज़ तक नही कहा। और खामोशी से उसे देखता रह गया,  

अक्सर लफ़्ज़ दर्द देते है मगर कभी कभी खामोशी ऐसा दर्द देती है की जो काम लफ्ज़ नही करते वह खामोशी कर देती है।

उस्मान खान की बड़ी हवेली जितनी बड़ी थी उतना ही बड़ा पूरे खानदान उनका रुतबा था, उनके दो बेटे हुए , बड़ा बेटा जहीर जिसने खानदानी बिज़नेस को ना अपना कर, अपनी बीवी रुकसाना और दोनो बेटो को साथ लेकर लंदन में जा बसा, वह एक बार क्या गया फिर कभी लौट कर नहीं आया। उस्मान साहब आखिरी सांस तक उसका इंतजार करते रहे और अपनी आंखे मूंद गए। छोटे बेटे कबीर ने अपने खानदानी बिज़नेस को संभाला और बुलंदी पर ले गया। उसने रुकसाना की चचाजाद बहन जरीन से निकाह कर लिया, और अपनी खुशनुमा जिंदगी गुजारने लगा। उस्मान साहब की सबसे छोटी बेटी थी मोमिन जिसका निकाह लखनऊ के एक नवाब खानदान में हुआ था। मोमिन अपने दोनो भाईयो से बेपन्हा मुहब्बत रखती थी। इसलिए पहली बार जहीर अपनी फैमली को लेकर मोमिन के निकाह में शरीक हुए, वक्त हवा के पंख लगा कर आगे बढ़ता चला गया, और साल दर साल बीतते गए,

जब कशिश पैदा हुई तो मोमिन ने उसका हाथ अपने बड़े लड़के आयाज के लिए मांगा ,मगर जरीन ने यह कह कर बात टाल दी 

" आयाज बेहद ही शरीफ़ और नेक किरदार वाला लड़का है मगर अभी दोनो बच्चे है, जब बड़े हो जायेगे तब सोचेंगे " 

ज़रीन को बेटे की ख्वाहिश थी मगर तक़दीर को उसकी ख्वाहिश पर कोई तरस नहीं आया। जिसके चलते जरीन बेगम अक्सर उदास रहने लगी। कबीर ने उसे समझाया की 

" खुदा नहीं चाहते की हमारे दिल में जो मुहब्बत हमारी कशिश के लिए है वो किसी दूसरे बच्चे के हिस्से में जाए, ज़रीन यह भी तो जरूरी नहीं कि जो इज़्जत, जो मुहब्बत, बेटा दे वो बेटी नहीं दे सकती। हमारी कशिश हमारे लिए बेटा भी और बेटी भी। और एक रोज तुम्हे कशिश की वालिदा होने पर गुमान होगा "

कशिश दोनो के दिल का टुकड़ा बन गई, दिन हफ्ते, हफ्ते महीनो और महीने साल में तब्दील हुए और फिर वक्त ने ऐसी करवट बदली की उस्मान खान की हवेली में ऐसा तूफान आया जो पूरे घर के सकून को तबाह कर गया।

" बेगम ! कहां हो आज में आपके लिए बहुत बड़ी ख़बर लेकर आया हूं " कबीर उस्मान खान ने हवेली में कदम रखते हुए ज़रीन बेगम को पुकारा। 

" ऐसी कौन सी ख़बर लाए हो जो फुले नहीं समा रहे" बेगम ने कमरे मे आते हुए पूछा 

" ऐसी खबर लाया हु की आप भी सुनेगी तो खुशी से झूम उठेगी " 

" तो फिर बताइए ना क्यों इतना सस्पेंस बना रहे हो "

" ख़बर ये है की आज मोमिन का फोन आया था, अयाज डॉक्टर बन गया है और वो भी लंदन के एक बड़े हॉस्पिटल में उसे जॉब भी ऑफर हुई है। मोमिन कह रही थी की वह हमारी कशिश को अपने घर की बहु बनाना चाहती। अयाज के लंदन जाने से पहले निकाह चाहती है ताकि वह अयाज के साथ लंदन में जाकर रहे "

कबीर साहब की बात सुनकर जरीन को दिलीखुशी मिली, मोमिन तो बचपन से कशिश और अयाज के रिश्ते के बारे में सोचती थी। 

" ये तो बहुत की अच्छी खबर है, हमारी इकलौती बेटी को इतना अच्छा खानदान मिल रहा और क्या चाहिए और अयाज है भी बहुत प्यारा बच्चा। आपने क्या जवाब दिया " ज़रीन बेगम ने पूछा 

" हमने तो कह दिया की अपनी बेगम से सलाह मशवरा करने के बाद ही कुछ तय करेगे " कबीर उस्मान खान साहब ने कहा 

" खान साहब मैं क्या सोच रही थी की हफ्ते बाद कशिश का जन्मदिन है, मोमिन को बुला लेते है, और दोनो बच्चो का रिश्ता पक्का कर देंगे उस रोज"

" किसका रिश्ता मम्मी " कशिश जो दरवाजे पर अचानक आ गई थी, रिश्ते की बात पर उसने हैरानी से सवाल किया 

" अरे आओ कशिश बेटा ! बहुत ही सही वक्त पर आई हो तुम " जरीन बेगम ने उसे पास बुलाया तो कशिश उनके पास आई 

" आप दोनो किस के रिश्ते की बात कर रहे थे, " 

" बेटा ! तुम्हारी मोमिन फूफो का फोन आया था वह तुम्हे आयाज की दुल्हन बनाना चाहती है ! देखो अयाज बहुत ही सुलझा हुआ और समझदार लड़का है, में और तुम्हारे अब्बू चाहते है की तुम्हारे बर्थडे पर तुम दोनो की इंगेजमेंट करा दें, अयाज तुम्हे बचपन से पसंद करता आया आया है, और तुम्हारी फुफो तो तुम्हारे पैदा होते ही इस रिश्ते की ख्वाहिश लिए बैठी है "

अपनी सगाई की बात सुनकर जैसे कशिश की जान हलक में ही रह गई थी। उसके चेहरे की रंगत एक दम फीकी पड़ने लगी,  

" क्या हुआ बेटा ! क्या तुम खुश नहीं हो इस रिश्ते से ? तुम बचपन से एकदूसरे को अच्छे से जानते हो, एक दूसरे के अच्छे दोस्त हो ?" कबीर साहब ने बेटी के दिल का जायजा लेना चाहा 

" नही अब्बू ऐसी बात नहीं है" कशिश ने नजरे झुका ली, वह एकदम मायूस हो चली थी 

" कशिश ! एक अच्छा दोस्त अच्छा हमसफर बन सकता है, तुम्हारे ऊपर कोई दबाव नहीं है, सोच समझ के हमें बता देना " जरीन बेगम ने कशिश को समझाते हुए कहा

" और अगर कोई और बात है तो साफ साफ बता सकती हो, हमारे लिए तुम्हारी खुशी से बढ़कर कोई चीज नहीं, तुम खुल कर बता सकती हो "

" अब्बू अभी मैं शादी नही करना चाहती, " कशिश ने बात को टालने की कोशिश की 

" कोई खास वजह शादी न करने की " जरीन बेगम ने पूछा 

" मम्मी ! मैं आगे पढ़ना चाहती हूं, अपनी लाइफ में कुछ करना चाहती हूं " कशिश ने बात टालने की कोशिश की 

" हां तो अच्छी बात है तुम्हे जो करना है कर सकती हो, बस हम चाहते है की इगेजमैंट करा देते है, अयाज को भी तुम्हारी आगे की पढ़ाई से कोई दिक्कत नही है, " कबीर साहब ने बेटी को समझाया और बाहर चले गए 

" अम्मी मैने आपको पहले ही जुबेर के बारे में बताया था फिर आप क्यों ये सब कर रही है " कशिश ने अब्बू के जाते ही सवाल किया 

" फिर से ये जुबेर! जिस लड़के के न खानदान का कुछ पता है और न ही किसी चीज का, उसके पीछे हम तुम्हे जिंदगी खराब करने नही देंगे, और मैंने तुम्हे पहले भी कहा था और अब भी कह रही हूं तुम्हारी शादी वही होगी जहां हम लोग चाहेगे, समझी तुम "

जरीन बेगम ने अपना फैसला सुना दिया, कशिश अपने होठों को दांतो तले भींचे खड़ी रही। वो मुहब्बत में इतनी अंधी हो चुकी थी की उसे अपने खानदान की भी फिक्र नहीं थी। जरीन बेगम ने कबीर को इस बात से दूर ही रखा और सगाई की तैयारी में मशगूल हो गई।

ईद के दिन मेहमानो का आना जाना हुआ, मोमिन अपनी पूरी फैमली के साथ पहुंची, दोनो बेटे अयाज, मिराज और छोटी बेटी सारा। तीनों बच्चों से मिलकर सब खुश थे। कशिश को सगाई के लिए लाया गया और आखिर कशिश ने बेमन सगाई की, पूरा खानदान इस रिश्ते से खुश था सिर्फ कशिश के।

" भाभी जल्द से जल्द हम निकाह कर के कशिश को अपने घर ले जाना चाहते है " मोमिन ने अपनी इच्छा बताते हुए कहा 

" जी बाजी, जहीर भाई से बात हो गई है वे लोग अगले जुम्मे को आ रहे है, बस इतवार को निकाह मुकम्मल कर देंगे" जरीन के जवाब से मोमिन ने इत्मीनान किया। 

सगाई का काम आसानी से निपटा सभी अपने अपने घर जा चुके थे कशिश ने रूम में पहुंच कर जुबेर को फोन किया 

" अगले इतवार को मेरा निकाह है, तुम्हे अब जो भी करना है वो एक हफ्ते के भीतर करना, में ये निकाह नहीं करना चाहती, में सिर्फ तुमसे मुहब्बत करती हूं " 

" मैं भी तुमसे बेइंतिहा मुहब्बत करता हूं जान, मगर तुम मेरी हालत तो जानती हो, जितनी सेलरी मिलती है उतनी घर पहुंचा देता हूं, अब तुम साथ रहोगी तो खर्चा भी बढ़ जायेगा, कैसे मुमकिन होगा " उधर से जुबेर ने अपना हाल बयां किया 

" उसकी फिक्र तुम मत करो मैं कुछ करती हूं। " 

इतना कह कर उसने बात खत्म की और अपने अगले कदम के बारे मे सोचने लगी। घर में शादी की तैयारी जोरों पर थी। सब मेहमानो का आना हो चुका था, कशिश के हाथो में मेंहदी लग चुकी थी, बाहर सभी खुशियों के गीत गाए जा रहे थे। 

" कल रात हमारी बेटी का निकाह हो जायेगा बेगम, वह कल अपने घर चली जायेगी फिर जाने कब मिलना होगा।" कबीर साहब ने अपने आंसुओ को छुपाते हुए कहा ,तो जरीन बेगम ने उनके साने पर सर रख दिया,  

" कहां चले अब आप " कबीर साहब के उठने पर जरीन ने पूछा।

" एक बार कशिश को मिल आऊ " 

" मैं भी साथ चलती हूं " 

जैसे ही कबीर साहब ने अपनी बेटी के कमरे का दरवाजा खोला, तो उनके पैरो तले जमीन खिसक गई थी ,कशिश अपने कमरे में नहीं होती, कबीर साहब घबरा कर दिल थामे रह गए, जरीन बेगम और वो दोनो पूरे घर में अपनी बेटी को ढूंढ चुके थे, लेकिन कशिश का कोई अता पता नहीं था।

" कल उसका निकाह है और बेटी का कुछ पता नहीं, अब जाने क्या अजाब बरसेगा इस घर पर " जरीन बेगम बेसुध सी हो गई 

" बेगम तुम खुद को संभालो, हम उसे कही से भी ढूंढ कर लायेंगे बस तुम हौसला रखो " 

इतना कह कर कबीर साहब और उनके बड़े भाई जाहिर और उनके दोनो लड़के सब मिलकर कशिश खोज में निकल पड़े, पूरे शहर की रात भर खाक छानने के बावजूद भी किसी को कशिश की खबर तक नहीं मिली। सुबह से शादी में आए मेहमान भी तरह तरह की बाते करने लगे थे, औरते एक दूसरे से ताना कसी करने लगी थी। 

" रात से होने वाली दुल्हन को किसी ने नहीं देखा, किसी से कुछ पूछो तो बात टाल दे रहे है, कुछ तो दाल में काला है " औरते तरह तरह की बाते बना रही थी 

"बड़े लोगो की बात ही कुछ और होती है, जाने क्या राज छुपाया जा रहा है "

उधर जरीन का रो रो कर बुरा हाल था,  

कबीर साहब थक हार कर शहर के कब्रस्तान तक पहुंच गए, और उसी के गेट पर थक कर बैठ गए, तभी उन्हें किसी के रोने की आवाज सुनाई पड़ी, वे आवाज की तरफ पहुंचे तो कशिश एक पेड़ के नीचे बैठी हुई थी अपने अब्बू को देखकर वह और भी फुट फूट कर रोने लगी,

" अब्बू मुझे माफ कर दो प्लीज़, मेने आपका कहा नहीं माना, में बहुत बुरी हूं " कशिश अपने अब्बू के कंधे से लिपट गई और बीती रात की सारी घटना कहने लगी 

" कॉलेज में जुबेर से पहली बार मुलाकात हुई, और वो मुलाकात कब प्यार में बदल गई पता नही चला, लेकिन वो मेरी भूल थी मुहब्बत सिर्फ मेरी तरफ से थी उसके लिए कुछ भी नही, उसने मुझ से शादी करने का वादा किया ,और मैं बहुत खुश थी, मगर जब मैने उसे बताया कि मेरे घर वालो ने मेरा रिश्ता तय कर दिया है तो उसने और मैंने एक साथ रहने का प्लान बनाया, इस लिए मैं घर से अपने निकाह की ज्वेलरी और पैसे लेकर उसके पास पहुंची, उसने मुझसे सब सामान लेकर कहा की में उसका वहां उसके रूम में इंतजार करू, वो सुबह मुझे लेने आएगा, लेकिन सुबह वह नहीं आया, मैंने उसे फोन किया तो उसने फोन तक नही उठाया, और अब तक उसका कोई अता पता नहीं है अब्बू, मुझसे बहुत बड़ी भूल हो गई अब्बू " सब बाते सुन कर कबीर साहब हैरान थे, एक तरफ औलाद की मिलने की खुशी थी और दूसरी तरफ ये पछतावा था की उसकी बेटी ने इतना बड़ा कदम उठाया था। जिस से उसने धोखा खाया, उन्हे कशिश की आंखों में पछतावे के आंसू साफ दिखाई दे रहे थे ,कशिश को वे माफ़ तो कर चुके थे लेकिन दिल में अफसोस था की 

हम अपने बच्चो को मुहब्बत देते है उनकी हर ज़िद को पूरा करते है, उन्हे अच्छी से अच्छी तालीम देते है,

 हमारे बच्चे हम पर भरोसा करते है की हम उनकी हर जिद्द ख्वाहिश को पूरा करेगे ,मगर साथ ही साथ उनके भरोसे को सिर्फ एक ही मुद्दे पर नहीं जीत पाते खासकर बेटियो के मामले में, की वे अपनी जवानी की उम्र में अगर किसी से मुहब्बत करती हैं या किसी को पसंद करती है या कोई उसे पसंद करता है, तो लड़कियां इस मामले कभी अपने मां बाप को कोई इशारा या उनसे साफ साफ बात नही कर पाती, क्योंकि इससे उन्हें अपने परिवार के लिए खौफ रहता है, की कही उसे गलत तो नहीं समझा जायेगा,उसके इस काम के लिए उसके साथ ज्यादती तो नही की जाएगी और उसी खौफ के चलते अक्सर लड़किया कशिश के जैसे गलत राह का चुनाव कर लेती है और फिर पछतावे के सिवा कुछ नहीं बचता, और जिन्दगी भर के लिए उसके दामन पर बदकिरदार का दाग़ लग जाता है।

कशिश को खामोश देख कर आयाज ने उसके हाथो को अपने हाथ में लिया और कहा

" कशिश तुम्हारे अतीत में जो भी कुछ हुआ, उससे मेरी मोहब्बत में कोई तब्दीलीयां नहीं आएगी, मेरे लिए आज भी तुम वही कशिश हो जिसे में बचपन से चाहता आया हूं और हमेशा चाहता रहूंगा, "

आयाज की बातो में उसे सच्ची मुहब्बत की महक आ रही थी,  

कितनी गलत थी मैं, जो अपने घर वालो के फैसले पर यकीन न कर के एक ऐसे इंसान पर यकीन किया जिसने मुझे नही मेरी दौलत से मुहब्बत की, ऐसा जरूरी नहीं की हर लड़की के साथ ऐसा हो जैसा मेरे साथ हुआ, मगर ऐसा भी जरूरी नहीं की हर मुहब्बत सच्ची मुहब्बत हो, मुहब्बत करना कोई गुनाह नहीं है लेकिन वो मुहब्बत आंखे बंद कर के नही आंखे की जानी चाहिए। 

अयाज ने उसे अपनी बाहों में भर लिया, उसके आगोश में कशिश ने जिंदगी के


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