मर्यादा का अतिरेक
मर्यादा का अतिरेक
किसी भी समाज, संस्था अथवा राष्ट्र में मर्यादा अथवा नियमों का होना आवश्यक होता है जो कि समाज, संस्था अथवा राष्ट्र की व्यवस्थाओं को सुचारु रूप से चलाने में सहयोग प्रदान करता है। किसी भी भ्रम, संदेह अथवा असमंजस की स्थिति में स्थापित मर्यादायें अथवा नियम हमें स्पष्ट दृष्टी प्रदान करते है जिससे कि हम समाज, संस्था अथवा राष्ट्र के हित में निर्णय ले सकें। अतः एक जिम्मेदार नागरिक होने के नाते यह हमारा धर्म है कि हम समाज में स्थापित मर्यादाओं का पूर्णतः पालन करें।
परंतु जैसा कि चाणक्य नीति में कहा गया है कि “अति सर्वत्र वर्जयेत” यानि कि किसी भी बात मे अति सर्वदा हानिकारक ही होता है, और यही बात मर्यादा पर भी लागू होता है। मर्यादा का जब अतिरेक हो जाएगा तब वह मर्यादा न रहकर कारागार बन जाएगी। मर्यादा को घर बनाइये कारागार नहीं। घर की मर्यादा स्वेच्छा से स्वीकृत मर्यादा है जिसमे बंधन और मुक्ति में सामंजस्य है जबकि कारागार की मर्यादा में सिर्फ बंधन है।
समाज, संस्था अथवा राष्ट्र में नवाचार एवं रचनात्मकता (इनोवेशन & क्रिएटिविटी) को फलित करने के लिए बंधन नहीं बल्कि स्वतंत्रता चाहिए। ध्यान रहे हर नवाचार को प्रारम्भ में दुःसाहस की दृष्टी से ही देखा गया है क्योंकि हर नवाचार पूर्वत स्थापित मर्यादाओ को तोड़ने का कार्य करती है । मर्यादा हमें ज्यादा सुरक्षा प्रदान करता है परंतु मर्यादा के साथ बंधन भी जुड़ा होता है जो कि नवाचार एवं रचनात्मकता की गति को कम कर देता है। ध्यान रहे कि कोई भी समाज, देश या कंपनी ज्यादा समय तक जीवित नहीं रह सकता अगर वह अपने आप को इनोवेट और रिनोवेट न करती रहे। रोमन का महान साम्राज्य और कोडेक जैसी विशाल कंपनी इस बात के उदाहरण है कि यदि समय के माँग को समझते हुये खुद में बदलाव नहीं किए गए तो एक दिन कंपनी देश या समाज के रूप मे हम भी अपना अस्तित्व खो देंगे।
जैसा कि हम जानते है कि सिर्फ बदलाव ही स्थायी है, अतः सकारात्मक बदलाव के माध्यम से ही हम अपने अस्तित्व को बचा पायेंगे। कहने का तात्पर्य है कि बदलाव जरूरी है और बदलाव हमेशा रचनात्मकता और नवाचार से ही संभव है। अतः हमें मर्यादायें बनाते समय इस बात का विशेष ध्यान रखना होगा कि कहीं मर्यादा का अतिरेक न हो क्योंकि, हमारे द्वारा बनाये जाने वाली नई मर्यादा, समाज, संस्था अथवा राष्ट्र में होने वाले नवाचार की गति को मंदित कर सकता है।
