Ankur Chaudhary

Drama Thriller Crime Action

4.7  

Ankur Chaudhary

Drama Thriller Crime Action

मनोवृत्ति

मनोवृत्ति

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"आगे बहुत भीड़ है, मैंने बोला था आज नहीं चलते पर तुम तो उतावली थी सुबह से मायके जाने के लिए" मयंक ने गुस्से में बोला।

"शादी के दिन से देख रही हूँ, मुँह फूला है तुम्हारा" स्वाति ने पलटकर जवाब दिया

"अपने पिताजी से पूछो, मुझसे क्या पूछती हो"

तभी अचानक कुछ लोग गाडी के पास आ गए और उन्हें बोला की आगे रास्ता बंद है पीछे से जाओ। मयंक ने गाडी रोकी और घुमाने ही वाला था के कुछ लड़के गाडी में झाँकने लगे और स्वाति की तरफ देखकर अश्लील इशारे करने लगे|

तभी उनकी टोली में से एक आदमी आया, जो नेता सामान प्रतीत होता था और बोला

"आगे नागरिकता बिल के विरोध में रैली है, आप यहीं रुको या वापिस निकल लो"

मयंक गुस्से में गाडी पीछे करने लगा, शादी के दिन से ही उसका मूड खराब था।

"अबे अब्दुल जल्दी इधर है, माल है एक गाडी में"

"छोड़ रेहमान, इधर बहुत मीडिया है, मेरा इंटरव्यू आने वाला है आजतक पर। माल का क्या घंटा करूँगा मैं।"

"तू बस इंटरव्यू में पड़े रह।"

उस नेता ने कुछ और दोस्तों को फ़ोन करके गाडी के पास बुला लिया करीब बीस लोग इकठ्ठा हो गए थे जो हंस हंस कर नागरिकता बिल और सरकार के खिलाफ नारे बाजी कर रहे थे और ध्यान सबका मयंक की वैगन र पर ही था।

स्वाति ने साड़ी से अपना मुँह ढक लिया।

"ये देखिये एक नव विवाहित दंपत्ति भी बिल के विरोध में रैली में आये हैं" एक रिपोर्टर ने कैमरा में कहा।

मयंक और स्वाति गाडी के बहार खड़े ही हुए थे जब रिपोर्टर उनके पास पंहुचा।

"क्या आपको लगता है ये बिल असंवैधानिक है?" रिपोर्टर ने स्वाति से पूछा।

"क्या ?" स्वाति ने अचंभित होकर पूछा। उसे भनक भी नहीं थी नागरिकता बिल की और न ही वो रिपोर्टर का सवाल सही से सुन पायी थी। 

"देखिये, दिल्ली की जनता कितनी जागरूक है, ये मानते हैं की ये बिल भारतीय संविधान के खिलाफ है।"

"अरे भैया पर मैंने तो कुछ बोला ही नहीं" स्वाति चिल्लाई पर तब तक रिपोर्टर जा चुका था।

"आप लोगो का यहां रुकना सही नहीं है, आप यहां से निकल लें" एक पुलिस वाले ने उन्हें सलाह दी पर मयंक वहीँ खड़ा रहा, भीड़ अब आगे आ चुकी थी और गाडी निकालने की जगह नहीं बची थी।

"आपको शर्म नहीं आती देश जल रहा है और आप हनीमून मना रहे हो" रैली में एक बुजुर्ग आदमी उनपर गुस्सा करते हुए बोला, स्वाति के हाथो की मेहँदी अभी तक भी लाल थी।

"यार रैली में आना सफल हो गया, थोड़ा रुक तो जरा जी भर के देख तो लूँ" किसी और ने रैली मैं चिल्लाया।

"रुक रुक थोड़ा मजा करते हैं।"

एक नौजवान लड़का जिसके हाथ में जलती हुई मसाल थी उनकी गाडी के पास आकर खड़ा हो गया।

"मैंने बोला था मुझे वैगन र नहीं, हौंडा सिटी चाइये, पर तुम्हारे पिताजी नहीं सुनी, अब देखो" मयंक ने गुस्से से स्वाति को बोला। मयंक और स्वाति अपने आस पास के माहौल को भूलकर पति पत्नी की लड़ाई में व्यस्त थे। 

"क्या ये लोग इस गाडी को आग लगाने वाले हैं" रिपोर्टर ने भीड़ में कुछ लोगो से पूछा, स्वाति के दिल की धड़कन रुक गयी। मयंक गाडी से दूर खड़ा टकटकी बांधकर उस लड़के को देखता रहा जिसके हाथ में मसाल थी।

लड़के ने देखा की स्वाति उसकी तरफ बढ़ रही है। रिपोर्टर के शब्द सुनकर लड़के की हिम्मत बढ़ गयी थी, आखिर उसके हाथ में जलती हुई आग थी और वो एक रैली का हिस्सा था

"ओह मैडम यहां क्या कर रही हो, आपके लिए खतरा है यहां" भीड़ के साथ लड़का भी हंस दिया।

"क्या करोगे तुम" स्वाति ने लड़के को घूरते हुए पूछा, लड़के को भीड़ के सामने बेइज्जती महसूस हुई, उसके अंदर का पुरुष जाग गया।

नागरिकता बिल को भूलकर सारी जनता तमाशा देखने के लिए तैयार थी। अब उन्हें रैली में आना सफल लग रहा था, कुछ तो मजेदार हुआ वरना रैली नीरस लग रही थी

"चुप चाप जाओ यहां से नहीं तो" लड़के ने स्वाति को थोड़ा सा धक्का दे दिया।

"नहीं तो क्या" स्वाति ने पूरी ताकत से लड़के के गाल पर एक थप्पड़ रसीद कर दिया। लड़का और उसके दोस्त गुस्से से आग बबूला हो गए। तभी मयंक ने आकर स्वाति की पीछे कर दिया।

रैली के आत्म सामान को ठेस पहुंच चुकी थी, ये देश के लिए कतई सही नहीं था।

अचानक से कुछ लोग कहीं से पेट्रोल ले कर आ गए और उनकी कार पर छिड़क दिया।

"अब आप क्या करेंगी ?" रिपोर्टर ने स्वाति से पूछा। स्वाति समझ नहीं पायी थी की रिपोर्टर का सवाल उसके लिए सवाल था या रैली में उन आवारा लड़कों के लिए खुला आमंत्रण।

आमंत्रण स्वाति से बदला लेने का। वो कोशिश तो करना चाहती थी पर मयंक ने उसका साथ नहीं दिया। मयंक ने स्वाति को कस के पकड़ा था शायद उसे गाडी उतनी प्यारी ना थी।

"करेंगे तो अब हम" लड़के ने चिल्लाकर जवाब दिया और इससे पहले की स्वाति कुछ बोल पाती गाडी में आग लगा दी। "नहीं चाहिए, नहीं चाहिए। नागरिकता बिल नहीं चाहिए" सारी भीड़ एक साथ बोली और आगे बढ़ गयी। आग की लपटें देख भीड़ को अपनी रैली का सही मकसद याद आ गया था। रैली अब सफल हो चुकी थी।

स्वाति जमीन पर बैठकर रोने लगी, मयंक जलती हुई कार को देखता रहा। "आपको लोगो के साथ ऐसा नहीं करना चाहिए था" पुलिस वाले ने आकर उनको बोला।

"उन लोगो ने मेरी कार जला दी और आप मुझे समझा रहे हो" स्वाति चिल्लाई।

"समझाइये इन्हे, भीड़ को उकसाने का केस दाल दूंगा" पुलिस वाला मयंक से बोला।

दो घंटे लगे रिपोर्ट लिखने में, गाड़ी की आग तब तक करीब करीब बूझ चुकी थी। पुलिस वाले ने दस हजार में रिपोर्ट लिखी, इन्शयोरेंस का मामला था।

मयंक और स्वाति ऑटो से घर की तरफ चल दिया। रैली वाले अपनी कार में बैठकर कबके जा चुके थे।


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