मिलोगे फिर कभी
मिलोगे फिर कभी
कभी-कभी ज़िंदगी में कुछ मुलाक़ातें बहुत ख़ास होती हैं...
ऐसी, जो हमें बदल देती हैं...
जो दिल में मोहब्बत बो देती हैं — बिन इजाज़त, बिन वजह।
वो पहली नज़र की ख़ामोशी,
वो अनकही बातों की गर्माहट,
और फिर, धीरे-धीरे किसी बेनाम एहसास में खो जाना...
लेकिन मोहब्बत हमेशा इज़हार नहीं माँगती।
कभी-कभी मोहब्बत बस महसूस की जाती है —
चुपचाप, दूर रहकर,
बिना किसी उम्मीद के।
"मिलोगे फिर कभी" एक अधूरी सी कहानी नहीं,
बल्कि एक मुकम्मल एहसास है —
जिसमें कोई अल्फ़ाज़ नहीं,
बस एक खामोश वादा है…
कि शायद
…
मिलोगे फिर कभी।

