प्रियम श्रीवास्तव

Inspirational

4.9  

प्रियम श्रीवास्तव

Inspirational

मेरी लेखनी और कहानी

मेरी लेखनी और कहानी

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मैं जानता हूँ कि मैं क्यूँ लिखता हूँ और ये सच्चाई है कि मैं लिखता हूँ और खूब लिखता हूँ, और मेरी लेखनी की कहानी है, जो मैं दिन-ब-दिन महसूस करता हूँ और ये मुझे सबसे ज्यादा प्यारी है। बस, ये कोरे 'कागज़' देखे नहीं जाते, ये बिन 'स्याही' के पन्ने एक अजीब सी हलचल पैदा करती है मेरे अंतर्मन में, मेरी 'आत्मा' को झकझोर देती है। मुझसे यूँ देखे नहीं जाते ये खालीपन, और मैं इनसे ही अपना अकेलापन बाँट लेता हूँ और ये कोरे 'काग़ज़, ही मेरे हमदम है और मेरे पक्के साथी भी मेरे ख़यालों का आईना है ये, जहाँ मैं खुद को देख पाता हूँ और अपनी लेखनी से इन्हें और खुद को सँवारने की कोशिश करता हूँ। मेरा अकेलापन, मेरी अनकही बातें, मेरे अनसुने और अधूरे जज़्बात हैं ये, मेरे अनछुए पहलू हैं ये जिसके छूने के एहसास भर से मुझे आनंदमयी कर देता है, और मेरे ज़ज़्बात को फिर से जगा देता है।


इन कोरे 'कागज़' पे जो नीले रंग के 'स्याही', जब अपनी जादू बिखेरती है वो जादू मेरे सपने को हक़ीक़त में जोड़ने का काम करती है, मेरे हँसते आँखों से बिखरते आँसू है, ये मेरे और मेरे जैसे तमाम सोच रखने वाले के दर्द है, ये मेरा प्यार इनके प्रति। एक यही तो है जिन पे मैं पूरी तरह आज़ाद हूँ, इनपर न कोई रोक है, न कोई टोकने वाला औऱ न कोई कशमकश और न कोई जद्दोजहद।


मेरे ख़यालों का आईना है ये, जहाँ मैं खुद को देख पाता हूँ और अपनी लेखनी से इन्हें और खुद को सँवारने की कोशिश करता हूँ। मेरा अकेलापन, मेरी अनकही बातें, मेरे अनसुने और अधूरे जज़्बात हैं ये, मेरे अनछुए पहलू हैं ये जिसके छूने के एहसास भर से मुझे आनंदमयी कर देता है, और मेरे ज़ज़्बात को फिर से जगा देता है।


एक मेरी लेखनी ही है जहाँ मैं अपने ज़ज़्बातों के लौ से, अपनी बातों से, अपनी दिल को बात और अपनेपन से कोरे कागज़ पे रंग भरता हूँ। कभी बारिश के टपकते हुए निश्छल और पारदर्शी प्यार वाली बूंदे तो कभी बचपन की वो सारी हसीन बातें, जो यादों के दायरे में है और जो याद नहीं उसे यादों के दायरे में लाने की कोशिशें और समेटने की इच्छा।


ये एक ऐसे साथी है जो कुछ तुक्ष बातें लिखने पे भी नहीं बोलते है और चुपचाप मेरी सारी बातें अपने आप में दबा लेते है और सहन कर लेते है, ठीक वैसे ही जैसे बचपन में हमारी सारी माँगें माँ और पापा सहन कर लेते थे चाहे वो माँग कितना भी बड़ा क्यूँ ना हो। जो स्नेह बचपन में मिला ठीक वही स्नेह आज भी मिल रहा है इन कागज़ों से, जिसमें मुझे अपनेपन की आहट सुनाई देती है, जो बहुत हीं खास बनाती है।


ये कोरे कागज़ के ख़ाली पन्ने कुछ बोलते नहीं पर अपने हर एक दर्द को मुझसे बयान कर देती है। और कभी कभी बस मेरी बातों को सुन के अपनेआप में दबा लेते यहीं, और कैद कर लेते यहीं खुद में। ये मेरी बातों से न तो विचलित होते और ना हीं परेशान।


"मेरी लेखनी मेरी दुनिया और मेरे जज़्बात" ही मेरी कहानी है, बस इनसे शुरू हो के इनसे हीं खत्म होती है। ये ऐसे मित्र है जो हमारी आपस कि बात किसी को कभी बताते नहीं और न हीं किसी से कोई शिकायत करते। वो मेरी लिखी हर एक बात को अपनी अमानत समझते है और खुद में समेट कर रखते है। ये ऐसे मित्र है जो मेरे लिखे हुए हर एक शब्द के गवाह होते है और यही अपनापन हमें एक दूसरे के इतने करीब लाता है।


ये कभी भी रंगों से भेदभाव नहीं करते और नहीं धर्मों से। इनके कोई धर्म नहीं होते और ना हीं कोई अपना मज़हब। लेखनी ही इनका मज़हब है और सच्चाई ही इनका धर्म। ये हर एक रंग में रंग के खुद को रंग लेते है और एक प्यारा सा और खूबसूरत सन्देश देते है समाज को की हमें रंगों के आधार पे, मज़हब और धर्मों के नाम में कोई नहीं बाँट सकता। हर एक रंग में रंगने का अपना ही कुछ मज़ा है, जो हमें निश्छल प्रेम करने के लिए प्रेरित करते है और इससे हमारे अंदर सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। ये सब को एक नज़रिये से देखते हैं और कोई भेदभाव नहीं करते हैं!


एक ऐसा साथी जिस पे ना तो झूठ का तमगा लगता है और ना ही इनकी बातों को कोई दबा सकता है, क्योंकि ये हमेशा अपने संवेदनाओं को लिखता है और उनकी बातें कभी सुनी जाती है तो कभी अनसुनी की जाती है, उनके भावनाओं को समझने वाला कोई नहीं है और ये एक विलय है जो आने वाले समयों के लिए बहुत ही घातक साबित हो सकता है।


वो दिन आयेगा जब ये अपनी यादें लेकर बिखर जाएँगी और जब सारे सपने तिल-तिल करके टूट रहे होंगे और तब इनकी यादों को एक यादों के घरोंदे समझ के संजोया जायेगा।


कुछ कहानियाँ अभी भी है जो लिखी नहीं गयी है, जो अनसुलझी है तो कुछ अनकही भी। जब अनसुलझे पहलुओं को सुलझाया जायेगा तब ज़ज़्बात उभर के आएंगे और फिर कुछ लिखी हुई कहानियाँ यादें बनकर रह जायेगी जो जन्मों-जन्मांतर तक याद रखी जायेगी। आज मेरे बहुत सारे किस्से लिखने बाकी है, बहुत सारे कहानियाँ बनने बाकी है, और बहुत सारे सुनने भी बाकी है, जो मेरे जाने के बाद भी कहे और सुने जायेंगे। कुछ तो ऐसे भी होंगे जो इस भीड़ में गुम हो जायेगी तो कुछ अपनेपन की याद दिलाएगी, उन लोगों को भी जो कभी इसकी क़द्र नहीं किये थे।


इन सभी बातों के बीच एक बात हमेशा झकझोर देगी और यही याद दिलायेगी कि था एक लिखने वाला नादान और पागल जो दुनिया को तो जीता ही था, पर प्यार इससे (लेखनी) कर बैठा और उनके लिए जीने लगा और उसके लिये लिखने लगा था! इन पन्नों में उसकी बातें थी, उसके प्यार थे, ज़ज़्बात थे, उसके सपने थे और उसके हक़ीक़त भी। ये पन्ने उसके लिए सिर्फ कोरे कागज़ भर ही नहीं था, वो उसमें रंग भरता था अपने भावनाओं से, अपने सोच से, अपने प्यार से, और गली-मोहल्ले, चौक-चौराहे, साथी-संघाती कहीं भी शुरू हो जाता था अपने चंद लफ्ज़ों के साथ। कभी हमसफ़र की बातें किया करता था तो कभी इश्क़ और मुहब्बत की बातें। पर उसकी हर बातों में, सच्चाई थी, हर एक शब्द गवाह थे उसके, यही थी उसकी कहानी।


अंत में मैं बस यही कहना चाहता हूँ की-


बस आप सुनो अपनी आवाज़ को-

आप सुनो अपने ज़ज़्बात को-

ये ज़िन्दगी है-जीने के लिए,

समझो, लिखो और जी लो अपने आज को!


धन्यवाद!!


---प्रियम श्रीवास्तव



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