Vimla Jain

Tragedy Action Classics

4.7  

Vimla Jain

Tragedy Action Classics

मेरी बालवाड़ी स्कूल की यादें

मेरी बालवाड़ी स्कूल की यादें

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कभी-कभी पुरानी यादें ताजा हो जाती है।

उसमें जब ऐसा प्रसंग होता है तो जैसे आंखों के सामने पिक्चर चल रही हो।

 छोटे बच्चों के स्कूल में प्रोग्राम देखने गए तो मेरी बचपन की यादें ताजा हो गई

मेरा बचपन बहुत ही मस्ती से खेलते कूदते, लड़ते झगड़ते ,शैतानियां करते, पढ़ाई करते मस्ती से गुजरा ,फुल ऑफ़ मस्ती ।

आसपास में तीन घर थे जो कभी अलग लगे ही नहीं ऐसा लगता था सब एक दूसरे से जुड़े हुए हैं ।

हम लोग कभी सीधे रास्ते तो जाते ही नहीं थे 

हमेशा दीवारें फांद कर ही एक दूसरे के घर जाते थे एकदम बेफिक्र।

 हमारे मां जिनको मैं बाईजी जी बोलती हूं उनको कभी टेंशन नहीं रहता था कि उनके बच्चे कहां खेल रहे हैं।

 भूखे हैं ,खाना खाया, नहीं खाया, क्योंकि उनको पता होता था कि हमको कोई भूखा नहीं रहने देगा ।

हां शाम पड़े हम को घर पहुंच जाना पड़ता था रात होने से पहले ।

मैं अपने भाई बहनों में सबसे छोटी थी और सबकी चहेती भी थी ।

अपने स्कूल की यादों की एक घटना मुझे याद आती है। मैं कोई चार पांच साल की रही होगी तब मुझे बालवाड़ी स्कूल में डाला था ।

उसकी उसकी हेड टीचर सुमन देवी थे ।

मेरे साथ में बहुत सारे हमउम्र बच्चे पढ़ते थे ,उसमें से एक बच्चा जो मेरे पास है बैठता था वह बहुत ही शैतान था। 

शैतानी करके सारा दोष मुझ पर डाल देता था।

 उस दिन भी कुछ ऐसा ही हुआ, हमारे को क्लास में छोटी कैची से कागज के फूल काटने सिखा रहे थे, और हम बना रहे थे ।

उस बच्चे ने मुझे कैची से मारा मैंने उससे कैची छीन ली ,कैची मेरे हाथ में देख टीचर को लगा कि मैंने उसको मारा है। 

 उन्होंने मुझे पनिशमेंट दे दी, मैंने बहुत बोला पर वह मानी नहीं कि मेरी गलती नहीं है । मुझे स्कूल के पीछे रूम में बंद कर दिया,फिर स्कूल छूटा और उनको ध्यान नहीं रहा कि उन्होंने मुझे रूम में बंद करा है। वह बस आगे से लॉक मार के चली गई ।

बहुत देर तक जब कोई आवाज नहीं आई तब मैंने आवाज दी ,बहुत चिल्लाया पर कोई नहीं आया, तब मुझे समझ में नहीं आया क्या करूं।

 फिर मैंने देखा कि वह रूम की जो दीवार थी वह बांस की बनी हुई थी।

 फिर मैंने बहुत मुश्किल से उस दीवार को तोड़ा और बाहर निकल कर घर पहुंची ।

मैंने बाई जी को सारी बात बताई। 

उसी समय मेरे साथ में मैडम के घर गई , और उन मैडम को बहुत फटकारा। 

 उन टीचर ने और बाई जी ने मेरी हिम्मत की बहुत तारीफ करी ।

टीचर के बहुत कहने पर भी मेरी बाई जी नहीं मानी और दूसरे दिन उन्होंने मेरा एडमिशन एक दूसरी स्कूल सुशील बाल विद्यालय में करवा दिया ।

जहां मैं कक्षा 5 तक पढ़ी इस प्रसंग ने मुझे बहुत कुछ सिखाया।

 बचपन से ही यह सिखाया कि अपनी मदद आप करो ,

 हिम्मत ए मदद, मदद ए खुदा ,

मुसीबत के समय अपना धीरज मत खोवो।

 इस तरह मेरा बचपन बहुत सारी ढेर सारी मस्तियां और ढेर सारी शैतानों के साथ गुजरा। उसमें से यह प्रसंग है जो मुझे याद रह गया है।

 यादें तो बहुत है। पर आप लोगों से शेयर करने जैसी यह यादगार घटना है।


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