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हसी के गुलदस्ते

Inspirational

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हसी के गुलदस्ते

Inspirational

" मौसम की तरह परिवर्तन "

" मौसम की तरह परिवर्तन "

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वर्तमान परिवेश में सास बहु का रिश्ता अत्यंत संवेदनशील हो गया है। नए ज़माने की बहु और पुराने ख़यालात की सास का आपस में ताल मेल बिठाना आज के समय का एक अहम् समस्या है। आज की कहानी इन्ही दोनों के आपसी संबंधों की कहानी है :-


एक सास हमेशा अपने बहु को टोकती रहती जल्दी उठा करो, पूजा पाठ किया करो, ऐसे मत बैठो, ये मत पहनो, ऐसे बात मत किया करो इत्यादि कई बातें। अब बहु भी कहाँ पीछे ईंट का जवाब पत्थर से देती - मांजी मैं कोई अनपढ़ ,गंवार और गांव की भोली भाली लड़की नहीं हूँ एम बी ए किया है मैंने ,अच्छा बुरा क्या है मैं खुद जानती हूँ।  ये जो पुराने ज़माने का राग अलाप मेरे पास मत किया कीजिए।  इस तरह आये दिन दोनों में तू तू मैं मैं होती रहती दोनों का जीना दुश्वार हो गया था।

इन्ही दिनों एक महात्मा उसी शहर में प्रवचन देने पधारे हुए थे। बहु को जैसे ही पता चला उनसे मिलने पहुँच गयी और अपनी समस्या महात्मा जी को बताई और कहा कोई ऐसी युक्ति बताइए कि मेरी सास का व्यवहार मेरे प्रति परिवर्तित हो जाये। महात्मा ने एक बोतल पानी मंगवाया और बहु को देते हुए कहा की ये एक मंत्र से सिद्ध किया हुआ जल है और जैसे ही आपकी सास आपको कुछ बोले आप इस जल को मुंह में भर लेना और एक हफ्ते बाद परिणाम बताना।


बहू महात्मा को धन्यवाद देकर खुश होकर वहां से चली गयी। घर पहुँचते ही सास ने तोप का गोला दागना शुरू कर दिया कि कहाँ से आ रही है महारानी जी इतना सज संवर कर सुबह सुबह कहाँ चल दी थी न पूछना न बताना संस्कार नाम की कोई चीज है भी कि नहीं ....

बहू जवाब देने के लिए मुंह खोलने ही वाली थी कि महात्मा की वो बात याद आ गयी कि बोलना कुछ नहीं है बस जल को मुंह में भर लेना है और उसने वैसा ही किया।  

थोड़ी देर तक बड़बड़ाती रही और जब कोई प्रतिक्रिया नहीं आयी तो अंत में वो खुद ही चुप हो गयी और इस तरह जब भी सास सुनाना शुरू करती बहू मुंह में बोतल का पानी भर लेती।  इस तरह एक हफ्ते गुजर गए और सास में आश्चर्यजनक परिवर्तन आना शुरू हो गया।  जो सास अपने पड़ोसियों से बहू की बुराई करते थकती नहीं थी उसने बहू के गुणगान करने शुरू कर दिए और अंततः बहू के समक्ष रो पड़ी कि बहू मैंने तुझे कितना भला बुरा कहा फिर भी तुम चुप रही, भगवान सबको तुझ जैसी बहू दे, मुझसे बहुत बड़ी ग़लती हो गयी थी तुझे पहचानने में और फिर फूट फूट कर रो पड़ी।  बहू ने कहा कि ग़लती मेरी थी जो मैं आपको हमेशा जवाब देती रहती थी।

अब बहुरानी ख़ुशी के मारे दोबारा महात्मा जी के पास आयी और कहा महात्मा जी आपके अभिमंत्रित जल से तो चमत्कार हो गया और हमारे संबंधों में सुधार हो गया।  लेकिन ये बताइए हमारे जीवन में ये " परिवर्तन " कैसे हुआ।

तब महात्मा जी ने कहा कि ये कोई अभिमंत्रित जल नहीं था ये तो बस "मौन " का चमत्कार है जब तक आपकी सास बोलती थी आप चुप रही इससे उनका दृष्टिकोण आपके प्रति बदल गया बस यही है चमत्कार।


कहानी का सार ये है कि यदि बोलना चाँदी है तो मौन स्वर्ण और दूसरा हम बोलकर किसी दूसरे को बदल नहीं सकते पहले स्वंय को बदलना होगा और परिवर्तन जीवन का अनंत क्रम है। जैसे पतझड़ के बाद सावन और सावन के बाद बसंत आता है ठीक इसी तरह हम सबको परिवर्तन को स्वीकार कर निरंतर आगे बढ़ना ही जीवन है।


  


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