मौन सी दीवार

मौन सी दीवार

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हम एक किस्सागो, किस्सा सुनाना हमारा काम ! आज हम लेकर आए हैं एकदम नई कहानी.... आजकल की कहानी.... न राजा रानी की, न देवी देवता की .... किस्सा अपने डाक्टर चौधरी का.... एक्दम सच्चा किस्सा। इत्ती बड़ी नौकरी, इत्ती तनख्वाह, गाड़ी घोड़ा, चाहते तो दस नौकर चाकर रख लेते मगर रखा क्या... बताएँ ?

गाँव से अपने दो भाइयों को ले आए पढ़ाने लिखाने ! एक सगा भाई एक ममेरा ! रमा भाभी जब डाक्टर साहब से ब्याह कर के इस घर में आईं तो बड़ी नाराज.... जहाँ कंपनी के बाकी अफसरों की लुगाइयाँ साड़ी पर्स और सैंडल खरीदें, पार्टी कर के बीयर और वाइन पियें, रमा भाभी को सारे घर का खाना अपने हाथ से बनाना पड़े।

बाकी लोग जब बड़ी बड़ी गाड़ी, शोफ़र और कुत्ते घुमाएँ, डाक्टर साहब कंपनी से मिली उसी खटारा को खुद चला कर मरीज देखने जाएँ और छुट्टी वाले दिन तीनों भाई मुहल्ले भर से दाई नौकरों के बच्चे जमा कर के उनको पढ़ाने बैठ जाएँ। क्या पोस्ट क्या वेतनमान देख कर शादी की थी और ये क्या मिला है ? रमा भाभी ने तो रो-रो कर आँखें सुजा लीं, जोर-जोर से लड़ाई भी की और कोई बस नहीं चला तो रूठ कर मायके भी चली गईं पर डाक्टर साहब भी अपनी तरह के एक ही इंसान, न रूठे न चिल्लाए .... मगर अपनी बात पर कायम रहे।

अब कितने दिन मायके में बैठी रहतीं भला ? एक दिन माँ बाप ला के वापस पँहुचा गये। जब कोई दूसरा रास्ता ही नहीं सूझा तो इसी को नसीब मानना पड़ा और जो परिस्थितियों के साथ रहने की कोशिश करी तो डाक्टर साहब ने खूब मान देना शुरू कर दिया। मौका मिलते ही अपने हाथ से बना कर खाना खिलाते, प्यार से गाड़ी में ले जाकर सिनेमा थियेटर दिखाते और जितनी देर घर में रहते, रमा-रमा करते आगे पीछे घूमते रहते। वैसे ये सब अच्छा तो बहुत लगता था पर जब किसी के सिंगार, पटार और खटराग पर नजर पड़ती तो मन में हूक सी उठ जाती थी। पास में कुछ होता नहीं तो कोई बात नहीं मगर यहाँ तो सबकुछ होकर भी कुछ हाथ नहीं आया। इत्ती पढी-लिखी, सुन्दर समझदार वो मगर इन फूहड़ औरतों की बराबरी में कहीं नहीं ? पर कमी अगर अपने ही नसीब में हो तो दूसरों से शिकायत कर अपने आप को और छोटा क्यों बनाना ? अब जो डाक्टर साहब से भी कुछ नहीं कह सकतीं तो एक मौन सा लगा लिया अपने मन पर ! अकेले में रो रो कर भले घड़े भर दिये हों, दूसरों के सामने हँसतीं मुस्कुरातीं, अच्छी अच्छी बातें करतीं और सबकी मदद करने को हमेशा तैयार ! घर के काम काज, थोड़ी पढाई लिखाई और अपनी शौक के अनुसार कुछ औरतों और किशोर होते हुए बच्चों के साथ चलने वाली उनकी सांस्कृतिक गतिविधियाँ.... कभी आदिवासियों की समस्याओं पर कहानी लिखतीं तो कभी दूसरे ग्रह के वासी पर नाटक जमते... सब मिला कर, इतना व्यस्त कर लिया अपने आप को कि और किसी चीज पर ध्यान ही न जाए।

पर इस तरह हर समय अपने आप से लड़ाई करते रहने से जानते हैं क्या हुआ ? एक दर्द, एक मौन मानों उनकी आँखों में आकर बैठ गया। अब लीजिये .... छोटा सा सुन्दर सा चेहरा और हल्की उदासी से सजी दो धीर गंभीर आँखें.... और उपर से हर समय प्रेमी बने डाक्टर साहब... एकाएक ही जैसे मौसम बदल गया हो कि अब हर जगह, पार्टी और प्रोग्राम में उनको निमंत्रण मिलता, वो क्या कहते हैं, 'बेस्ट कपल', 'मेड फाॅर ईच अदर' से आगे जाकर 'मोस्ट गाॅर्जियस लेडी'' 'इन्सपिरेशन फाॅर ऑल' और न जाने क्या क्या..... अरे वही जो सब बड़े लोगों की पार्टी के चोंचले होते हैं ! अजीब सा था ये सबकुछ मगर इस मन का क्या करिये साहब, जैसे जैसे इज्जत मिलने लगी, जिंदगी में मजा आने लगा और फिर एक दिन ये खबर आई कि रमा भाभी की माँ की तबियत बहुत खराब है।

बड़ी बीमारी थी मगर डाक्टर साहब नहीं माने और दिल्ली बंबई भेजने के बजाय अपने साथ ले आए। यहाँ तीनों भाईयों ने मिल कर उनकी ऐसी देख भाल की कि वो कुछ ही दिनों में चंगी होकर खड़ी हो गईं। ऐसी बलैयाँ ले अपने इस बेटी दामाद की कि फिर तो कहाँ का दर्द और कैसा मौन ? बर्फ की तरह बह गई हर दीवार ! बस अब तो भगवान से यही अरेज है कि ऐसा पति अगले सात जन्म तक मिले, और हो सके तो उसके बाद के और सात जन्म में भी !


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