priya gupta

Drama

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priya gupta

Drama

मैंने हसती खेलती जिंदगी में बहुत कुछ देखा है

मैंने हसती खेलती जिंदगी में बहुत कुछ देखा है

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लोग लब्जों को तो सुन लेते हैं, लोग बातो को भी सुन लेते है पर खामोशी का उनको भनक भी नहीं लगती मैंने उस चुप्पी को दुःख, परेशान, और उदास देखा है,जो कुछ कह नहीं पाते मैंने इंसान के इस बढ़ती हुईं कमी को देखा है। 

कुछ लोग ऐसे होते है जो कि, अपने मतलब के लिए हाथ मिलाते है फिर वो दो चार दस दिन साथ निभाते है औरफिर मतलब पूरा होते ही अपना दोनों हाथ छुड़ा लेते है,  और फिर वो दूसरे की तरफ हाथ बढ़ाएंगेबड़ी-बड़ी बाते सुनाएंगे, वो थोड़े पल के लिए अपनी तारीफे पाएंगे, मैंने ऐसे लोगो को नीचे गिरते देखा है ।मां- पापा, दादा- दादी, चाचा- चाची, भाई- बहन ये सब रिश्ते जब पास होते है तो ज्यादा "राश" नहीं आते हैं।

हम उनसे वो हमसे रोज कितना लड़ते- झगड़ते हैहर एक बात के लिए एक दूसरे को कितना कुछ कह जाते है। हर छोटी छोटी बात के लिए सच में, आपस में उल्टे सीधे नाम से चीढाते हैंये सब शायद बहुतों के साथ होता है।

बस क्यूँकि ये रिश्ते हमारे साथ में रहते हैं लेकिन कब क्या हो जाए वक्त को, हम सब में से कोई नहीं जानता जब कोई अपना खाश हमें छोड़ चांद के पास चला जाता है ।इस बुरे वक्त को हमने बहुत पास से देखा हैऔर तो कुछ जानबूज कर परिवार को खो बैठते हैं, 

लेकिन बाद में ऐसे लोगो को, परिवार की सच्ची अहमियत जान करके पछताते हुए देखा है । सच में जिन्दगी के काफी पड़ाव से निकली मैं,  कितना सब कुछ बदलता देखा है ।कितने साथी बदलते गये।

 कितने लोग बदलते गए, कितना कुछ जो हमेशा के लिए लगता था अपना। मैंने उसे पल भर में ख़तम होते देखा है मैंने इस संकट की घड़ी में मजबूर गरीबों को रोते बिलखते देखा है, अच्छे को बुरा होते देखा है बुरे जो अच्छा होते देखा है। 

गैरों को अपना और अपनों को गैर बनता देखा है, हमने खुद इन सबसे बहुत कुछ सीखा है, मैंने खुद को नासमझ से समझदार बनते देखा है, मैंने हसती खेलती जिंदगी में बहुत कुछ देखा है।


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