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Jyoti Sharma

Drama

3  

Jyoti Sharma

Drama

मैं भी मंज़िल पाऊंगी

मैं भी मंज़िल पाऊंगी

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प्रेरणा के पति का स्थानांतरण कुल्लू हो गया था। उन्हें जो मकान किराए पर मिला उसमें पहली मंजिल पर मकान मालकिन, ऊपर की मंजिल पर तीन मकान थे। जिसमें दो किराएदार पहले से ही रहते थे। पहले मकान में रजनी, दूसरे मकान में आशा दीदी व तीसरा मकान प्रेरणा ने ले लिया था। रजनी अपने पति व दो छोटे-छोटे बच्चों के साथ रहती थी। आशा दीदी की एक बेटी सुहानी उनके साथ रहती थी व दूसरी बेटी पूर्वी उच्च शिक्षा ग्रहण करने के लिए दिल्ली गई थी। उनके पति का स्वर्गवास बहुत पहले हो चुका था जब उनकी बेटियां बहुत छोटी थीं। सभी लोग आपस में मिलजुल कर प्रेमभाव से एक परिवार की तरह रहते थे। प्रेरणा का स्वागत भी उन्होंने अपने परिवार की छोटी बहू की तरह किया था। जल्द ही प्रेरणा के रिश्ते सबके साथ गहरे होते चले गए। रजनी व प्रेरणा हमउम्र थीं तो दोनों में बहुत ज्यादा ही नजदीकी हो गई। आशा दीदी एक सरकारी स्कूल में अध्यापिका थीं तो वह व्यस्त रहती थीं।आशा दीदी के घर में एक और लड़की रहती थी- "रीता"।वह प्रेरणा के लिए एक रहस्य में व्यक्तित्व थी। उसके जीवन का कोई ढका छुपा हिस्सा ऐसा था जिसे वह लोगों के समक्ष नहीं लाना चाहती थी इसलिए वह किसी के भी समक्ष आने से कतराती थी। रीता 20 वर्ष की लड़की थी परंतु वह अन्य लड़कियों से बिल्कुल भिन्न थी। जहां इस उम्र में लड़कियों में एक चुलबुलापन और मासूमियत होती है वहीं उसके चेहरे पर बहुत गंभीरता थी। आंखों में जवानी की चमक की जगह एक शुन्यता थी। आंखों में विराने जैसी चुप्पी पसरी रहती थी। चेहरे पर अपरिवर्तित एकाकीपन के भाव के अतिरिक्त कोई अन्य भाव आता जाता ना था।

जब कभी भी प्रेरणा आशा दीदी के घर जाती तो रीता एक कोने में दबी छुपकी, चुपके से अपने आंखों की कनखियों से उसे घूरती रहती। प्रेरणा को वह किसी अनसुलझी पहेली की तरह लगती। उसके चेहरे की उदासी, मायूसी और असहजता प्रेरणा को बरबस ही उसकी ओर खींचती थी। प्रेरणा को रीता से एक अंजाना सा जुड़ाव महसूस होता लेकिन जब कभी भी वह आशा दीदी या किसी अन्य से रीता के बारे में जानना चाहती तो वह जैसे बात पलट ही दिया करते या टाल जाया करते। जितना ज्यादा सब इन प्रश्नों से बचने का प्रयास करते उतना ही प्रेरणा के मन में इनका उत्तर जानने की चाह बढ़ती जाती।

प्रेरणा और रजनी के रिश्ते में काफी मधुरता थी तो 1 दिन प्रेरणा नहीं बातों ही बातों में रजनी से रीता कि बीते हुए समय के बारे में पूछ ही लिया। एक पल के लिए रजनी चुप होकर कुछ सोचने लगी फिर बोली रीता की कहानी में ऐसा कुछ मनोरंजक नहीं जो तुम जानना चाहो परंतु खैर यदि तुम जानना ही चाहती हो तो सुनो ! ऐसा कहकर वह उसकी व्यथा कथा बताती चली गई और कहानी सुनते- सुनते प्रेरणा का ह्रदय टूटता ही चला गया और उसकी आंखों को आंसुओं से भर गए।

रीता के परिवार में उसकी मां व दो बड़े भाई थे। एक भाई विवाहित था व दूसरे की शादी होने वाली थी तभी एक दिन उसके पिताजी का स्वर्गवास हो गया रीता के पिताजी की चिता की आग अभी ठंडी भी नहीं हुई थी कि उसकी मां ने उसके चाचा से शादी कर ली। रीता उस समय सातवीं कक्षा में थी। कुछ समय पश्चात उसके छोटे भाई की भी शादी हो गई। दोनों भाई अपने अलग घर में जाकर रहने लगे और अपने अपने जीवन में व्यस्त हो गए। रीता अपने मां और चाचा के साथ रहने लगी।कुछ समय पश्चात उसकी मां पुनः गर्भवती हो गई और उसके छोटे भाई ने जन्म लिया। उसकी मां भी अपने बच्चे और अपने पति के साथ अपने परिवार में व्यस्त हो गई। रीता की तरफ किसी ने कोई ध्यान नहीं दिया। रीता दिनभर अपनी मां की सेवा करती, अपने चाचा को खाना बनाकर देती पशुओं के साथ काम करते-करते स्वयं पशु हो गई। एक आया और नौकर की तरह सारा दिन काम करती और बाकी का दिन एक कोने में पड़ी रहती।एक वक्त के बाद रीता उसके चाचा की आंखों में भी खटकने लगी तथा आनन-फानन में उन्होंने एक लड़का देखकर उसकी शादी कर दी तब रीता नौवीं कक्षा की परीक्षा की तैयारी कर रही थी। लड़का उम्र में 10 वर्ष बड़ा था। उस से छोटी उसकी दो बहनें भी थीं परंतु वो रीता से उम्र में बड़ी थीं। सास ससुर उनके साथ नहीं रहते थे।

वे पास ही के गांव में खेतों में बने अपने घर में रहते और कभी-कभार ही आते थे। अतः सारे घर की जिम्मेदारी उन्होंने गीता की कंधों पर डाल दी। नंदे सारा दिन बैठी-बैठी बतियाती रहतीं और रीता काम करती‌ रहती। उसके पति को भी रीता में कुछ खास दिलचस्पी नहीं लगती थी।वह सारा दिन घर के बाहर रहता और कभी-कभी तो रात को भी वापस नहीं आता। शादी वाले दिन से लेकर अब तक उसने रीता की तरफ़ देखा तक न था ना ही कभी उसका दुख-सुख जानने का प्रयास किया था। बस इतना था कि उसने कभी उसे पढ़ने से मना नहीं किया। कुछ समय के बाद ससुराल वालों का व्यवहार रीता की तरफ बदतर होता गया। रीता के पति ने खुलेआम उसे बता दिया कि वह किसी अन्य लड़की को चाहता है और उसने उससे मजबूरी में शादी की है। उसने रीता को कहा कि यदि वह चाहे तो उसे छोड़कर जा सकती है। वैसे भी उसका इस घर में कोई काम नहीं है। रीता ने यह बात जब अपनी मां को बताई तो उसकी मां उल्टा उसे समझाने लगी और कहने लगी कि शादी के बाद ससुराल ही स्त्रियों का घर होता है। अब कैसे भी करके उसे उस घर में ही निभानी है। उसकी मां कहने लगी धीरे-धीरे वक्त बीतने के साथ सब स्वयं ही अच्छा हो जाएगा।

उसे मायके आने की कोई जरूरत नहीं। रीता अंदर से बिल्कुल टूट चुकी थी वह सारा दिन बिना कुछ खाए-पिए अपने स्कूल में पड़ी रहती मानो उसने जीने की इच्छा ही छोड़ दी हो।आशा दीदी उसकी अध्यापिका थीं। वह कई दिनों तक रीता का इस प्रकार का व्यवहार देखती रहीं। 1 दिन रीता को अपने पास बुला कर सारी बात पूछी। रीता ने सारी बात रोते-रोते उन्हें बता दी। आशा दीदी ने उसके पति और परिवार वालों से भी बात करने का प्रयास किया पर उसका कोई नतीजा नहीं निकला। अतः उन्हें लगने लगा कि वो रीता को इस प्रकार मरने के लिए नहीं छोड़ सकतीं और उसे अपने साथ अपने घर लें आईं। आशा दीदी रीता से कहने लगीं कि अब से मैं सोचूंगीं कि मेरी तीन बेटियां हैं परंतु वे आर्थिक रूप से इतनी सक्षम नहीं थी कि रीता खर्च भी उठा सकें अतः वह उसे पढ़ने के लिए कॉलेज में न भेज पाईं परंतु उन्होंने उसे प्राइवेट अपनी पढ़ाई जारी रखने के लिए कहा और जैसे तैसे 12वीं कक्षा की परीक्षा दिलवा दी हालांकि रीता पढ़ना नहीं चाहती थी। उसका मन हर तरफ से पूरी तरह टूट चुका था और वह तो जीने की इच्छा ही छोड़ चुकी थी।

रीता की कहानी ने प्रेरणा को बहुत दुखी कर दिया और उसने रीता का जीवन बदलने की ठानी और यह निश्चय किया कि जब तक रीता का जीवन परिवर्तित नहीं हो जाएगा मैं उसका साथ नहीं छोड़ूंगी। उसने धीरे-धीरे रीता से अपनी जान पहचान बनाई और हर जगह रीता को अपने साथ लेकर जाने लगी तांकि उसके विश्वास को फिर से दृढ़ कर सकेवह पिक्चर देखने जाया करती, साथ ही बाज़ार घूमने जाया करती वहां खाती पीती, घूमती। धीरे-धीरे प्रेरणा मेरी ताने अपनी एक अच्छी साथी,दोस्त, हमदर्द को ढूंढ लिया। वह प्रेरणा पर भरोसा करने लगी। प्रेरणा उसे अपने भविष्य को लेकर सजग होने के लिए कहती वह कहती कि उसे सरकारी नौकरी के लिए परीक्षाएं देने का प्रयास करना चाहिए। परंतु रीता का टूटा हुआ आत्मविश्वास उसे ऐसा करने के लिए प्रेरित नहीं करता था अतः वह हर बार इस सुझाव को टाल देती और प्रेरणा से कहती कि दीदी जैसा चल रहा है बस ठीक है मैं अपने जीवन में खुश हूं। एक दिल प्रेरणा ने रीता को बैठा लिया और उसे समझाने लगी। 

"देखो ! रीता--यह दुनिया है, यहां पर सभी प्रकार के लोग हैं किसी के आने या किसी के जाने से जीवन रुकता नहीं है। जीवन अपनी स्वाभाविक गति से चलता रहता है ईश्वर ने हमें यह अमूल्य जीवन तोहफे में दिया है। यह जीवन हमें ऐसे ही नहीं मिला है। ईश्वर जब किसी को जीवन देता है तो उसके पीछे कोई ना कोई उद्देश्य भी निर्धारित करता है और मनुष्य उसी उद्देश्य को पाने में अपना जीवन लगाता है और यही सार्थक भी है तुम्हें भी अपने जीवन में उस उद्देश्य को ढूंढना चाहिए जिस दिन तुम अपने जीवन में उद्देश्य को ढूंढ लोगी यकीन मानो तुम उस दिन अपने जीवन में खुशी को भी ढूंढ लोगी। कब तक तुम दूसरों के सहारे जिओगी कब तक लोग तुम्हें सहारा देंगे। अपना सहारा स्वयं बनना सीखो मैं आत्मनिर्भर बनना होगा। यह छोटी-छोटी खुशियां जो तुम आशा दीदी के साथ से पाती हो जो खुशियां तुम मेरे साथ पाती हो उन खुशियों को तुम्हें अपने जीवन में तलाशना होगा। रास्ते तो सिर्फ चलने के लिए होते हैं। यह रास्ते हमें किसी ना किसी मंजिल तक पहुंचाते हैं। कोई भी व्यक्ति उम्र भर रास्तों पर भटकता हुआ नहीं रह सकता। हर व्यक्ति के जीवन में कोई ना कोई मंजिल अवश्य ही होती है। जहां पहुंचकर हमारा जीवन संपूर्ण हो जाता है और हमें लगता है कि अब हमें कुछ और नहीं चाहिए। बस तुम्हें भी वही सार्थकता तलाश करनी होगी वही मंजिल तलाश करनी होगी।

प्रेरणा की बातें सुनने से रीता के ह्रदय में जैसे नये रक्त का संचार हुआ। उसकी नसों में एक अजीब सी सिहरन थी। वह एक नई प्रकार की स्फूर्ति को महसूस कर रही थी। सारा शरीर कांप रहा था और अंदर की भावनाएं मानो आंदोलन कर रही थीं। उसके अंदर का मरा हुआ विश्वास, ग्लानी, वेदना,‌और डर मानो बह जाना चाहते थे। वह फूट-फूट कर रोने लगी और चिल्लाने लगी.... मैं भी मंजिल पाऊंगी! दीदी..... मैं भी मंजिल पाऊंगी!... प्रेरणा ने जैसे उसे नए पंख दे दिए थे। अब वह आसमान में उड़ना चाहती थी। अब रुकने वाली नहीं थी। वह मंजिल की तरफ ऐसे बढ़ी कि उसने पीछे मुड़कर नहीं देखा। पढ़ने में प्रेरणा ने उसकी बहुत सहायता की। दिन-रात उसे मेहनत करवाती। 1 वर्ष के अंदर ही उसने बिजली विभाग में क्लर्क की नौकरी हासिल कर ली।उसकी खुशी का तो जैसे कोई ठिकाना ही नहीं था वह नाच रही थी झूम रही थी आज उसके चेहरे पर वह मासूमियत थी जो आज से पहले कभी नजर नहीं आई थी। उसका बचपना जैसे फिर से लौट आया था और स्वयं को आईने में देखकर प्रेरणा को पहली बार अहसास हुआ कि गर्व से भरी हुई मां कैसी होती है।


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