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माँ

माँ

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उस समाज में महत्वाकांक्षी होना आसान नहीं था जहाँ लोग सोचते थे, लड़कियां एक बोझ है।

हरियाणा के करनाल गाँव में रहने वाली ऋतू राठी का आज बारहवीं कक्षा का आज नतीज़े आने वाले थे और वो उनका तीन महीने से इंतजार कर रही थी। दोपहर के एक-दो बजे तक नतीज़े सभी के सामने आ गए, ऋतू भी बहुत अच्छे नम्बरों से पास हुई।

उसकी माँ का एक सपना था कि वह पायलट बने। वो तो नहीं बन पायी लेकिन वो अपनी बेटी को बनाना चाहाती थी।

आज उन्हें नतीजे देखकर विश्वास हो गया कि वह उसका सपना उनकी बेटी एक दिन पूरा कर देगी।

ऋतू के माँ-बाप ने कभी भी लड़का-लड़की में फर्क नहीं किया। ऋतू का दो भाई भी थे। उनके लिए तीनों ही एक सामान थे। वह ऋतू को भी उतनी ही तवजु देते थे जितनी अपनी बेटों को। रिश्तेदारो ने ऋतू के पिताजी को बहुत समझाया कि बेटी ने बारहवीं पास कर ली है अब उसके हाथ जल्दी पीले कर दो। लेकिन माँ का सपना था और ऋतू का भी, उसके आगे उसे दिन-रात कुछ नहीं दिखता था।

पायलट बनने के लिए ऋतू को उसके माँ-पिताजी ने विदेश भेजने का फैसला किया। रिश्तेदारो ने फिर एक बार समझाया विदेश से लड़की मुँह काला करा कर लायेगी। मत भेजो विदेश पढ़ने, शादी कर दो, घर-गृहस्थी सम्भाले। यही अच्छी लड़कियों के गुण होते हैं। लड़कियां घर में अच्छी लगती है, बाहर विदेश में गुल-छर्रे उड़ाते हुए नहीं।

परन्तु ऋतू के माँ-बाप ने अपने रिश्तेदारों की एक ना सुनी। उन्होंने अपनी बेटी को उसका सपना पूरा करने के लिए विदेश भेज दिया। जाते वक्त माँ ने बेटी को एक सीख दी, कहा - उनकी बेटी उनका विश्वास है, उन्हें अपने विश्वास पर विश्वास है की वो उनका विश्वास कभी नहीं तोड़ेगी।

ऋतू आगे की पढ़ाई करने के लिए अमेरिका जाने पड़ा। ऋतू के माँ-बाप को रिश्तेदारों खूब खरी-खोठि सुनाई। अब तो लड़की को भूल जाओ। लड़की तो हाथ से गयी। अब ना वापस आएगी।

ऋतू के पिताजी ने उसकी पढ़ाई के लिए अपनी खानदानी ज़मीन भी गिरवीं रख दी। उसकी शादी के लिए जो पैसा जोड़ा था, वो भी उसकी पढ़ाई में लगा दिया। ऋतू के माँ-बाप कर्ज़े में डूब गए।

रिश्तेदारों के ताने देते हमनें तो पहले ही बहुत समझाया था, लेकिन तब तो हमारी बातें बेकार की लग रही थी। ज़मीन भी हाथ से गयी, पैसा भी और लड़की भी।

हालात उस समय और बदतर हो गये जब उसकी मां की ब्रेन हैमरेज की वज़ह से मौत हो गई।

जबकि उसके पिता की स्थिति बहुत दयनीय हो गयी थी। परिवार ऋण पर जीवित था।

जब ऋतू अपनी पढ़ाई पूरी करके एक- डेढ़ साल बाद वापस आयी, तब उसके हाथ में उसकी मां का हाथ नहीं था, लेकिन उनकी सिखायी सीखें जरूर थी। ऋतू ने हार नहीं मानी और भारत आने के बाद अपना घर चलाने के लिए छोटी-सी नोकरी की और उसके साथ-साथ मैंने प्रतिदिन सात घंटे अध्ययन किया।

"अंत में, ऋतू को  सह-पायलट बनने के लिए एयरलाइन से एक प्रस्ताव भी मिला!"

आज ऋतू की माँ जहाँ कहीं भी होंगी, अपनी बेटी को यूं ऊँचा उड़ता देख बहुत खुश होती होंगी।

अगले चार वर्षों में ऋतू ने एक महीने में लगभग साठ उड़ाने भरी और अंततः कैप्टन के लिए पदोन्नत हो गयी।

इस दौरान वह अपने पति से भी मिलीं। आज उनकी दो साल की बेटी है और इसके साथ वह तीन मिलियन ग्राहकों के साथ यू-ट्यूब चैनल भी चलाती हैं।

उसके पिता आज हर साक्षात्कार में बताते हैं कि उनकी बेटी - एक कप्तान है। उन्हें बहुत गर्व महसूस होता है कि उनकी बेटी ने यह सच कर के दिखया की आकाश की कोई सीमा नहीं होती हैं।

ऋतू ने अपने एक साक्षात्कार में कहती हैं कि - "मैं तब से नौकरी पाने के लिए संघर्ष कर रही थी जब कोई पद खाली नहीं था।"

आज ऋतू की माँ की सीख, उनके विचार जो उसके सफल करियर का शुरुआती बिंदु बन गया। 



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