लॉक्डाउन
लॉक्डाउन


बात उन दिनो की है जब हर कोई अपने बच्चे को या तो डॉक्टर बनाना पसन्द करता था या फिर इंजीनियर !
बारहवीं की परीक्षा प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण करने के उपरान्त मुझे भी इंजीनियर बनने के लिए अपने घर को छोड़ना पड़ा।
अपने स्नातक स्तर ( अभियन्ता ) की पढ़ाई करने के दौरान मैंने भी मज़ाक वश उस समय नर्सिंग (इंजेक्शन लगाने का कोर्स) जो की मात्र १४ दिन का था अपने शाहिद दोस्त के साथ सीख लिया था ।।
वर्ष २०१२ से अब तक उस प्रयोगात्मक का परीक्षण नहीं कर पाया, और होता भी भला क्यूँ ? पढ़ाई पूरी करने के बाद मैं सरकारी नौकरी में पूरी तरह से व्यस्त हो गया और धन कमाने के साथ साथ समाज में थोड़ा बहुत अपना नाम कमाने में लग गया, किंतु मन ये ही सोचता रहा की शायद ही कोई ऐसा अवसर आएगा जहाँ मेरी इस विषय( नर्सिंग) में ज़रूरत महसूस हो पाएगी।
यक़ीन मानो कोई भी पढ़ायी बेकार नहीं जाती ।
आज इक्कीसवी सदी में मेरा शहर ख़ुर्जा (बुलन्दशहर) पूरी तरह से लॉक्डाउन है !
पूरी तरह से सीज़ !
सारे प्राईवेट डॉक्टरों की दुकानें बंद !
एकाएक घर में ही ऐसी विपत्ति आन पड़ी की पिताजी को इंजेक्शन लगना था सभी जगह कोशिश कर ली पर कोई लौ उजाले की जलती हुई ना दिखी ! फिर अंत में मैंने अपने काँपते हुए हाथों से इंजेक्शन लिया और साहस करते हुए पिताजी के पास गया और सफलपूर्वक उस कार्य को अंजाम दिया। घर में सभी भौचक्के थे, लाज़िम भी था किसी को इस छिपे हुए हुनर का पता जो ना था। ख़ैर उस रात आँखो में आँसू भी थे और खुद पर गर्व भी।