क्या तुझे भी इश्क है? (भाग-1)
क्या तुझे भी इश्क है? (भाग-1)
भाग-1। बड़बड़ाहट एक्सप्रेस!
अपनी अनूठी कनपुरिया भाषा के लिए जाना जाने वाले शहर कानपुर में अभी सुबह के सात बज रहे हैं। छोटी इमारतों की छतों पर भी सूरज अब दस्तक दे चुका है। दीपावली आने वाली है इस वजह से सुबह-सुबह का मौसम थोड़ा ठंडा भी है और सुहावना भी। लेकिन इतनी सुबह अपनी भारतीय संस्कृति को अपने अंदर समाकर रखने वाली शिवाक्षी की माँ रिक्शे से मंदिर जाकर अपने घर की तरफ आ रही हैं। शिवाक्षी का घर शहर की संकड़ी गली के एक छोर पर बना है। घर गली की चढाई वाली जगह पर बना है जिस वजह से रिक्शेवाले को भी घर तक पहुँचने के लिए खड़े होकर पैडल मारने पड़ते हैं। आज भी ऐसा ही हो रहा है। उसकी माँ घर तक रिक्शे से पहुँचने के इरादे से उतरने का नाम नहीं ले रही है। वैसे भी उतरे क्यों उन्होंने घर तक छोड़ने के बीस रूपये जो दिए हैं! आखिरकार जैसे तैसे करके रिक्शेवाले ने अपने रिक्शे को उसके घर तक पहुंचाया और जिसके बाद रिक्शे वाले ने शिवाक्षी की माँ को उतरने के लिए कहा-तनिक उतरो तो....
-उतर रही हूँ भाई साहेब.... इतनी जल्दी काहे की है तुमको।
उन्होंने बड़बड़ाते हुए कहा और उतर गई। रिक्शे वाले ने कुछ भी कहना मुनासिब नहीं समझा। वो रिक्शे को लेकर फिर से स्टैंड की तरफ चल दिया क्योंकि अभी सुबह का वक्त था। ऐसे में वो दिन चढ़ने तक घर चलाने लायक पैसे कमा सकता था। शिवाक्षी की माँ अनुपमा घर के अंदर पहुँच गईं।
-अरे आरोही ज़रा चाय बना दो.... तेरी माँ का कोई भरोसा नहीं क्या पता कान्हा जी को घर ही लेकर आ जाए....
शिवाक्षी के पापा राम रत्न जी ने अपनी छोटी बेटी आरोही की आवाज दी।
-हम ज़िंदा हैं। आ गए हैं। आप ज़रा महरानी जी को उठाकर लेकर आएँगे तो हम भी चाय बनायेंगे।
उसकी माँ ने लिविंग रूम में चप्पलों को खोलते हुए कहा।
-अरे तो गर्म काहे को हो रही हो। उसे जगाने की का जरूरत है। तनिक सोने दो ना।
-कब तक सोएगी वो। क्या बारह घंटे की रात भी कम पड़ जाती है उसके लिए। बूढी हो चली हूँ। सोचा था औलाद बड़ी हो जाएगी तो कुछ सहारा हो जाएगा.... पर हुआ क्या? पच्चीस बरस की हो गई है लेकिन अब तक अक्ल नहीं आई। रात को देर रात तक फोन पर टिक टिक करती रहती है.... लेकिन कभी ये नहीं सोचती की वक्त पर उठकर तनिक हमें भी सहारा दे दे। एक नम्बर की आलसी औलाद दी है भगवान ने हमें। कर्म ही फूट गये हमारे तो।
-मम्मा अब सुबह-सुबह मत शुरू हो जाओ तुम.... दी काम नहीं करती है तो मैं क्या करूँ.... मैं बना लाती हूँ तुम आराम करो।
आरोही ने कहा और वो किचन की तरफ जाने लगी।
-रुक जाओ। तुम उसको जगाकर लाओ। हम बनाते हैं।
उन्होंने कहा और वो किचन की तरफ चल दी। इधर आरोही सीढ़ियों से होकर ऊपर जाती है। शिवाक्षी का कमरा सेकिंड फ्लोर पर था। आरोही ने उसके कमरे के दरवाजे को खोला और दूर से ही कहा।
-दी....
-ह्म्म्म।
उसने कम्बल के अंदर से जवाब दिया।
-दी वो मम्मा आपको नीचे बुला रही हैं। बोल रही हैं अब खड़ी हो जाओ। बहुत देर तक सो चुकी।
-काहे परेशान कर रही हो टुनटुन? तनिक सोने दो ना। उम्म्म।
उसने अंगडाई ली और उसके बाद में फिर से लेट गई।
-दी.... आप समझ क्यों नहीं रही हो। मम्मा का पारा हाई है। वो मुझे भी डांट रही हैं।
-उनका हमेशा ही रहता है। तुम ज्यादा ध्यान मत दो। कहने को भजन कीर्तन करती हैं। पर गुस्सा काबू में नहीं रहता। बस दिखावा है सब। उम्म्म्म.... तुम जाओ मुझे सोने दो।
उसने फिर से कहा और उसके बाद वो लेट गई।
-हे भगवान.... । ! अब वो दी के बहाने मुझे भी डांटेगी।
वो बुदबुदाई और उसके बाद नीचे आ गई। उसने सीढ़ियों से ही आवाज दी।
-मम्मा वो दी बोल रही हैं कुछ देर और सोयेंगी।
-क्या.... कितनी बार कहा है जल्दी उठ जाया करो.... । सूरज निकल आया है। आठ बजने वाले हैं। इतनी देर तक कौन सोता है? ऐ शिवाक्षी के पापा ज़रा उसे जगाकर ले आओ। वरना हम पहले ही बोल देते हैं.... हम जब गये तो उसको कूट देंगे.... बिगाड़ रखा है। कुछ भी बोलने नहीं देते हैं।
उन्होंने गुस्से में कहा और उसके बाद किचन से बाहर आईं।
-अरे। तुम कैसी बातें कर रही हो। आज सन्डे है। सोने दो ना बेचारी को। तुम्हें कौन सा काम करवाना है उससे.... ?
-अच्छा। ! यहाँ तो सो लेगी लेकिन ससुराल में। वहां कौन सोने देगा उसको। आदत बुरी बला है। एक बार लग गई तो कभी नहीं सुधरेगी। अभी से ही आदत डाल लेनी चाहिए उसको वर्ना दिक्कत होगी....
-कुछ दिक्कत नहीं होगी। वो सब मैनेज कर लेगी। यहाँ सोने दो उसको।
-हाँ। जब बाप ही ऐसा हो तो बेटियां तो होंगी हैं। इस तरह से तो हो ली उसकी शादी। आखिर कौन उससे शादी करेगा.... इतनी आलसी बीवी लेकर जाएगा तो कर्म ही फूट जाएंगे बेचारे के।
-यात्रीगण कृपया ध्यान दें! बड़बड़ाहट एक्सप्रेस रामरत्न मिश्रा जंक्शन के प्लेटफार्म नम्बर पांच पर पधार रही है। अत: सभी अपने-अपने सामान को उठा लें और ट्रेन में सवार होने के लिए तैयार हो जाएं। आपकी यात्रा मंगलमय हो हम यही आशा करते हैं! हा हा हा। काहे को सुबह सुबह बडबडा रही हो मम्मा.... सोने भी नहीं देती।
बिखरे बालों और आधी नींद में एक प्यारी सी मुस्कराहट लिए शिवाक्षी अपनी माँ से कहती है।
-हा हा हा। वैसे क्या नाम दिया है तूने अपनी माँ को। बड़बड़ाहट एक्सप्रेस। सच है ये.... ये ऐसी ही है । तू इसकी बातों पर ध्यान मत दिया कर बेटा। हा हा हा।
शिवाक्षी के पिताजी ने हँसते हुए कहा।
-हाँ-हाँ हंस लो। पूरा सर पर चढ़ा लो इसको। जिस दिन नाक कटवाएगी ना ये आपकी उस दिन पता चलेगा की मैं क्या कह रही थी.... ।
उन्होंने फिर से तंज कसा और किचन की तरफ जाने लगीं। हालाँकि गुस्से में उनका मुंह पूरा लाल हो चुका था। उन्हें शिवाक्षी की देर से उठने की आदत पसंद नहीं थी। वो लगातार उसको बुरा भला कह रही थीं।
-अनुपमा अब तुम फिर से शुरू हो गई न। मैंने बोला है हमारी दोनों बेटियां ऐसी नहीं हैं। तुम जाकर चाय बना लो।
उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा और फिर से सोफे पर बैठ गए।
-हाँ। मम्मा पापा सही कह रहे हैं। मैं वाशरूम जाकर आती हूँ.... आप तब तक चाय बना लो।
उसने मुस्काते हुए कहा जैसे कुछ हुआ ही न हो।
-आर्डर तो देखो कैसे दे रही है। ये।
-अरे। आर्डर नहीं है मम्मा। बस बोला है पिला दो। ना पिलाओ तो भी कोई बात नहीं।
उसने कहा और उसके बाद वो वाशरूम की तरफ जाने लगी। आरोही बिना कुछ बोले जाकर सोफे पर बैठ गई। उसके पिताजी भी सोफे पर बैठे शिवाक्षी को देख रहे थे। उन्हें अच्छे से पता था शिवाक्षी अपनी माँ की बातों को इतनी सीरियसली नहीं लेती है। वो मस्त है बस। वो उसको देखकर मुस्कुरा रहे थे तभी शिवाक्षी का फ़ोन बजा जो उसने कुछ देर पहले ही सोफे पर रख रखा था। उन्होंने स्क्रीन की तरफ देखा तो किसी Babu का कॉल आ रहा था। शिवाक्षी उस नाम के आगे एक हार्ट की ईमोजी बना रखी थी। उस ईमोजी और नाम को देखकर उनका दिमाग घूम सा गया आखिर उसकी जिन्दगी में ये बाबू कौन है। कहीं वो किसी के प्यार में तो नहीं है जिस वजह से वो इतनी देर तक सोती है? उनके दिमाग में ऐसे ही कई सारे सवाल कौंध रहे थे जिनके जवाब सिर्फ शिवाक्षी ही दे सकती थी।
क्रमश: