कुंद संवेदना
कुंद संवेदना


समंदर की ठंडी रेत पर हाथ पकड़ कर घूमने की उस, रोमान्टिक, मधुर कल्पना का अंत बहुत ही दिल हिला देने वाला हुआ।
हाथों में हाथ थाम कर उस बालू रेत पर, समंदर के किनारे, भोर के उस अलसाये सूरज के साथ साथ टहलते रहें। तुम मेरी इस कल्पना पर हँस रहे थे, पर मेरा मन रखने को, तुमने ये ट्रिप भी प्लान कर लिया। होटल भी ठीक समंदर के किनारे, सिर्फ एक रोड का फासला!!!!
इतना प्यार आया, तुम्हारे हर फैसले पर, कितने आर्गनाइज्ड हो तुम। तुम हमेशा ही फिजिकल कम्फर्ट का ध्यान रखते हो।
रात पहुंचे तो थक कर चूर थे। करीब 10 12 घंटे का सफर जो था।
खाना खा कर सो गए, सुबह उठते ही, चलो चलो का शोर मचा दिया था मैंने। अपने अपने नाईट सूट में दोनों निकल पड़े।
पैरों पर पानी लगते ही, समंदर छूने का रोमांच दोबारा हो गया। बच्चों की तरह, पैरों से पानी थपकती रही। कुछ और अंदर जाने पर लगा, आज ज्वार कुछ ज्यादा ही है। कार्तिक पूर्णिमा थी, शायद इसलिए। फिर भी हाथ थामे कुछ दूर टहल ही लिया जाए।
जरा अंदर चलो, डरो मत, तुम्हारा इसरार भी था।
चलो!!! डरती जरूर हूँ पानी से, तो क्या तुम जो हो, कुछ लाड़ दिखाते हुए कहा मैंने।
इसी बीच एक फ़ोटो खींचने वाला भी आ गया, बहुत पीछे ही पड़ रहा था।
बेकार ही बहस में उलझ रहे हो, कहा मैंने, कई पिक्चर तो तुम ले ही चुके हो। यहां आओ!!!
दोनों हाथ थाम कर चलने लगे, एक ऊंची सी लहर आती दिखी.........कस के थम लिया तुम्हारा हाथ ।
जाने कब और कैसे छूटा, तुम्हारा हाथ और मेरे पैरो के नीचे से ज़मीन, औंधे मुंह गिर पड़ी। कई कोशिश की मैंने उठने की और पैर जमाने की। बेकार...बस बहती ही चली गई आंख नाक मुंह मे ढेर सा खारा पानी, लगा अब कुछ न हो सकेगा....लगा डूब रही हूँ, ख्याल फिर भी यही आया कि ये क्या करेंगे ?
शायद 5 मिनिट से भी कम समय हुआ होगा, मुझे छटपटाते कि किसी ने बाहें पकड़ी, गर्दन पकड़ी, और मुझे पानी से दूर रेत पर खींच लिया। जानती थी, ये तुम्ही होंगे....
न!!!
वो बहस करने वाला फ़ोटोग्राफ़र और एक 18 -19 साल का लड़का मुझे खींच लाए हैं, ऐसा तुमने बताया ।
अपने अस्त व्यस्त कपड़े ठीक, किये मैंने और नज़र उठा कर देखा , तुम तो 10-12 कदम दूर खड़े थे। मेरा मन पानी से बाहर निकल कर भी डूब गया। तो ये तुम न थे...
तुम हिले भी नहीं अपनी जगह से! मेरी उम्मीद थी भाग कर मेरे पास आओगे !!!
ऐसा नहीं हुआ ।
शायद घबरा कर जड़वत हो गए हैं। मैंने अपने मन को तसल्ली दी। मन मन भर मिट्टी से भरे कपड़े और उसी भार से दबा मन ले कर तुम्हारी तरफ बढ़ी । पैर उठ ही न रहे थे..<
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किसने निकाला?
वो फोटोग्राफर एंड आ बॉय, तुम्हारा जवाब था ,डरी सी अपने दिल की आवाज कानों में लिए, तुम्हारे पास आ कर खड़ी हुई कि अब, बस अब थाम लोगे, गले से लगा लोगे। तसल्ली दोगे कि, अब सब ठीक है।
तुम्हारी आँखों में ये क्या???? नाराज़गी???
क्यों, समझ न पाई।
मुझे क्या पता था तुम्हें समंदर का कोई तज़ुर्बा ही नहीं है, हम लोग तो दोस्तों के साथ आधा आधा मील तक अंदर गए हैं।
पैर जमा कर रखना चाहिए। इसका भी कायदा होता है, तरीका होता है। और भी जाने क्या क्या।
साफ लगा कि तुम embarrased feel कर रहे हो, कि किस बेवकूफ़ के साथ आ गया।
मैंने समंदर देखें हैं, साउथ के बीच और लंका के भी, सब पर गयी हूँ, नहाई भी हूँ।
कुछ लहर जबरदस्त थी, होल्ड नहीं कर पाई, कुछ डरी सी हल्की दबी आवाज थी मेरी। बेअसर। !!!!
मुड़ कर हम होटल आ गए, जो बस रोड क्रॉस कर के था, रिसेप्शन पर बताया गया कि बाहर सब रेत उतार कर आ जाइए, वहां शॉवर है।
उस शॉवर के नीचे रेत साफ करते हुए आँसू थम ही न रहे थे, शुक्र है तुमने कुछ न देखा। आंख, नाक कान बाल सब मे रेत थी मुझे करीब आधा घंटा लग गया।
सेविंग ग्रेस ,मेरे आँसू उस शॉवर में रेत के साथ धुलते गए।
यहां भी तुम्हारा प्रवचन जारी रहा, अपनी जानकारियों का, समंदर के बारे में।
एक बार, एक बार भी तुमने, झूठ मूठ को भी हाथ थाम कर न पूछा....चोट तो नहीं लगी?
जो पूछ लेते, तो दिखाती भी क्या, कि कहां लगी।
कमरे में आ गए, बाथरूम में मैंने अपने आप को नहीं रोका और जी भर कर आवाज के साथ रो ली।
दो दो सदमें एक साथ जो लगे।
खारे पानी से आंखें लाल हैं, कह कर बच गयी।
हां...तुमने पूछा भी कहाँ था कि क्यों लाल हैं।
तैयार हो जाओ लेक पर चलेंगे।
फिर पानी? मैं ट्रिप बिगाड़ना नहीं चाहती थी। चल दिये। दिन भर मन कुछ बुझा बुझा, सा था पर तुम पर जाहिर न होने दिया।
शाम को चाय के समय, बाहर बालकॉनी पर बैठ कर फिर समुन्दर देखा, तो मैंने धीरे से पूछा...जो सचमुच डूब जाती तो क्या करते?
तफसील से बताया कि क्या क्या करते, बस एक बार ये न कहा कि, कैसे डूब जाती...मैं तुझे डूबने ही न देता।
रात तक कई मानसिक चोट खा चुकी थी, खाना न खाया गया।
सोचा कि अब तुम मुझे होल्ड करोगे और मैं आश्वस्त सी तुम्हारे कंधे पर सिर रख कर सो जाऊंगी।
न !!!! तुमने 2 पेग लगाए और करवट बदल कर सो गए।
देर रात तक मैं उस भीगे तकिये से पूछती रही, ये प्यार है? तो ये मन को भी शरीर की तरह दुलराना क्यों नहीं सीखता।