कसम
कसम
रमेश बाबू को रिटायरमेंट हुए ४ साल हो गया था। हर रोज़ सुबह पांच बजे उठना और फिर सभी काम निपटा के दिल्ली यूनिवर्सिटी के कैंपस में जाके ४/५ राउंड लगाना उनका एक आदत सा बन गया था। वहां पर उनके उम्र के और कुछ लोग भी आया करते थे; जिनके साथ उनका काफी अछि दोस्ती भी हो गयी थी। केमिस्ट्री के प्रोफेसर के रहते हुए उनका रिटायरमेंट हुआ था। शिक्षा ब्यबस्था में ३२ साल की नौकरी किये थे उन्होने। घर में पत्नी बिमला और दो बेटे थे। दोनों बेटो ने अपनी पढाई ख़तम कर के मुंबई में अपनी परिवार साथ सेटल हुए थे। घर में सिर्फ दो लोगों के अलावा राजू नाम का एक लड़का था जो की बिमला देवी को घर के कामकाज में हाथ बटाया करता था।
हर दिन की तरह दो राउंड के बाद रमेश बाबू का टहलना ख़तम हुआ। वो जाके यूनिवर्सिटी के लॉन में बनाया हुआ सीमेंट चेयर के ऊपर बैठ गए। उसदिन रविबार था। कुछ प्रेमियों को युगल लॉन में बैठे अपने हीं धुन में खोये हुए थे। रमेश बाबू उनको देखते देखते कुछ देर के लिए अपने अतीत को चले गए। उनके पिताजी भी बनारस यूनिवर्सिटी में हेड क्लर्क हुआ करते थे। उनका सारा बचपन और जवानी बनारस यूनिवर्सिटी के कैंपस में हीं कैद हुआ था। रमेश बाबू ने देखा एक ३० साल उम्र का एक गोरा सा लम्बा सा लड़का लॉन में लगाए गए पौधों को पानी दे रहा था। वह अपने मन ही मन कुछ हिंदी फिल्मो के गाने भी गन गुना रहा था। रमेश बाबू को उसका चेहरा कुछ जाना पहचाना सा लगा तो उसके पास गए और पूछे “क्या नाम है तुम्हारा?” लड़के ने बोला “मेरा नाम रामु है, मैं यहाँ के हिस्ट्री डिपार्टमेंट पेओन धनीराम का बेटा हूँ ” । धनीराम का नाम सुनते ही रमेश बाबू के रोंगटे खड़े हो गए। रमेश बाबू फिर से उस लड़के से पूछा “तुम कहाँ के रहने वाले हो?” लड़के ने जवाब दिया “हम वनारस, उत्तर प्रदेश के रहनेवाले हैं”। रमेश बाबू ने फिर से पूछा “अभी तेरे पिताजी कहाँ है”? तो लड़के ने आंख में आंसू लाते हुए बोला “पिताजी का तीन साल पहले स्वर्गवास हो चूका है। पिताजी के देहांत के बाद मुझे ये नौकरी उनकी जगह पे मिला है। मेरी माँ कमला गाँव में रहती है। मैं इधर जो भी कुछ कमाता हूँ आधा माँ को भेजता हूँ कुछ दिन पहले वह काम करते करते सीढ़ियों से गिर पड़ी तो उसकी हाथ टूट गयी है I मैंने उसको मेरे मौसी के पास छोड़ के मैं इधर सहर में नौकरी कर रहा हूँ”।
धनीराम और कमला का नाम सुनते ही रमेश बाबू काफी आश्चर्य हुए और अपने आप को बहुत कोसा। उनकी याद आ रहा था ३० साल पहले की बात जब उनके पिताजी अशोक पांडे जी को यूनिवर्सिटी कैंपस के अंदर रहने के लिए क्वाटर मिला था। उनके क्वाटर को काम करने के लिए धनीराम की पत्नी कमला अक्सर आया करती थी I तब रमेश बाबू ग्रेजुएशन कर रहे थे। बनारस यूनिवर्सिटी में धनीराम जूलॉजी डिपार्टमेंट का एक पिओन था। बच्चों की प्रैक्टिकल क्लास के लिए जो सब कीड़े मकोड़े,मेंढक,केंचुए दरकार रहता था वह सब हर दिन ढून्ढ ढून्ढ के लाया करता था। वह दिखने में काफी हट्टाकट्टा था। अशोक बाबू का अडमिंस्ट्रेशन डिपार्टमेंट वही जूलॉजी डिपार्टमेंट के पास में ही था तोह धनीराम का आना जाना लगा रहता था। धनीराम की शादी को ४ साल पहले हो चुका था, लेकिन उसका कोई भी औलाद नहीं था। उसकी पत्नी कमला इसीलिए हमेशा दुखी रहती थी। कमला की उम्र उस्वक़्त लगभग ३०/३२ साल की रहेगी वह दिखने में उतनी सुन्दर तो नहीं थी, लेकिन उसकी शरीर एक दम सत्ता हुआ था। गोरी थी, लम्बे काले घने बाल और कद में धनिराम से थोड़ा ऊँची भी थी। धनीराम का एक बुरा आदत था की उसको जो भी पैसा मिलता था वह आधे से भी ज़्यादा पैसा शराब और जुए खेलने में लुटा देता था इसलिए कमला के साथ उसकी हर दिन झगड़ा होता रहता था। कमला रमेश बाबू के माँ के पास आकर इसी बात को लेके अक्सर रोया करती थी I रमेश बाबू की माँ कमला को उनके घर में एक सदस्य की तरह देखती थी। कमला भी उनकी खूब आदर और सन्मान करती थी। कमला रमेश बाबू को “छोटे साब” कर के पुकारा करती थी।
एक दिन बहुत जोर से तूफ़ान आया; जिस कुड़िया में धनीराम और कमला रहते थे वो कुड़िया भारी बारिश की वजह से टूट गया। सुबह रमेश बाबू के पिताजी धनीराम से बोले की जबतक उनकी कुड़िया ठीक नहीं हो जाती तब तक वह उनके घर में रह सकते हैं। तो वह दोनों आ के रमेश बाबू के घर में रहने लगे। धनीराम अक्सर रात में नहीं आता था। वो शराब पि के जूलॉजी डिपार्टमेंट के ऑफिस में हि सोया जा करता था।
एक दिन रमेश बाबू के मातापिता बहार गए हुए थे। उनको लौटने में एक दिन लग जायेगा बोलके फोन पे भी रमेश बाबू को बताये थे। कमला और रमेश बाबू दोनों घर में अकेले थे। कमला ने रमेश बाबू के लिए अच्छे से खाना पकाया। दोनों खा के सोने गए। रमेश बाबू अपने कमरे में जाकर पीछे से कड़ी लगाकर सो गए। कमला बहार की कमरे में सोई थी। कुछ देर के बाद वो आके रमेश बाबू का दरवाजा खटखटाया। रमेश बाबू देखे की बाहर कमला खड़ी थी। वो बोली “छोटे साब घर में कोई नहीं है मुझे अकेले बहार सोने में डर लगता है क्या में आप के कमरे में आके सो जाऊं”? रमेश बाबू कुछ कहने से पहले ही वह खुद ही कमरे के अंदर चली गयी और चटाई पार के निचे शो गयी। रमेश बाबू जाके उनके बेड पर सो गए। आधी रात को उनको मालुम हुआ की कोई उनके सारे बदन को हाथों से सहला रहा है। जब आंख खुली तो वो देखे की कमला उनके पास बैठी हुई है। कमला ने बोली “छोटे साब मेरा पति शराब के नशे में कभी मुझे छूता भी नहीं है। शादी किये हुए चार साल हो गया है। पति का सुख क्या है मुझे मालूम ही नहीं है। लोग मुझे बाँझ कहकर बुलाने लगे हैं। एक रात के लिए मुझे वो सूख दीजिये छोटे साब। आप एक रात के लिए मेरे पति बन जाइये” I रमेश बाबू को उस वक़्त कुछ सूझ नहीं रहा था। वह अपने ज्ञान बुद्धि सब कुछ खो बैठे थे। जैसे तूफ़ान में सूखा पत्ता उड़ जाता है ठीक उसी तरह उनके हांसो हवास सब कमला के आगे उड़ गए थे Iनारी और पुरुष का मिलन हो चूका था। कुछ देर बाद जब उन दोनों होश में आये तो कमला ने रमेश बाबू को बोली की “आज हम दोनों कसम खाएंगे की ये बात हम मरते दम तक किसी को नहीं बताएँगे” । सवेरा हो चूका था रमेश बाबू की उठने से पहले कमला अपनी कुटिया मैं जा चुकी थी। कुछ महीने बाद धनीराम ने अशोक बाबू के घर आके मिठाई बाँट रहा था की कमला की माँ बनने की खुसी में I तभी से कमला की आना जाना अशोक बाबू के घर से बंद हो चूका था रमेश बाबू भी अपनी हायर एजुकेशन के लिए बनारस छोड़ के दिल्ली में सेटल हो चुके थे।
“अरे साहब क्या सोच रहे हैं दिन के १० बज चुके हैं और कितना देर इधर बैठे रहेंगे?” रामु उनको हिला के बोला। रमेश बाबू अपने होश में आये। रमेश बाबू ने रामु को अपने गले से लगया और फूट-फूट के रोने लगे।
रामु आश्चर्य हो के पूछा “क्या हुआ साहब”? रमेश बाबू बोले “नहीं कुछ नहीं”। उन्हेने बोलै “तुम अगले बार कब घर जाओगे ? मुझे एक बार बनारस जा के काशी विश्वनाथ का दर्शन करना है; क्या तुम मुझे आपने साथ ले चलोगे” ? रामु ने बोला “ये क्या बात कर रहे हैं साहब आप मेरे साथ बनारस चलेंगे? इस गरीब की कुटिया में ? ये तो मेरा सौभाग्य होगा”। रमेश बाबू आँखों में पानी लाके बोले “हाँ मेरे बेटे मैं तुम्हरे साथ चलूँगा” ? रामु को रमेश बाबू की मुहं से बेटा शब्द सुन के थोड़ा अजीब सा लगा लेकिन वह मन ही मन खुश भी हुआ और मुस्कुराते हुए बोला “ठीक है साहब हम अगले शनिबार की सुबह यहाँ से निकल पड़ेंगे। मैं कॉलेज से सोमबार के लिए चुटी भी ले लूंगा। आप को पूरा बनारस जो घुमा के दिखाना है”।र मेश बाबू ने वह छः दिन बड़े कस्टों से गुज़ारे। क्यों की वह देखना चाहते थे की कमला अब किस हालत में है। इतना बड़ा सच को वह ३० साल तक छुपा के रखा है। वह उसके पास जायेंगे और उसके सामने हि रामु को आप ने असली बाप का दर्जा देंगे। उन्होने कमला के लिए बाजार से एक लाल रंग की महंगी वाली साड़ी भी ख़रीदे। शनिवार आ चुका था। रामु और रमेश बाबू दोनों निकल पड़े रमेश बाबू की अपनी bmw में। अगले हि दिन सुबह वो रामु के घर के सामने थे। जब वो उनके घर गए देखे की काफी सारे लोग रामु के घर के सामने खड़े थे। रोने दोने का अव्वाज़ अंदर से आ रहा था। रामु और रमेश बाबू कुछ समझ नहीं पा रहे थे। जब वो दोनों घर में घुसे देखे की कमला की देहांत हो चूका था। रामु अपनी माँ को अंतिम निद्रा में देखते ही छोटे बच्चे की तरह रोने लगा। रमेश बाबू पास में खड़े सोच रहे थे “कमला तुमने ३० साल पहले जो वादा निभाने की कसम खायी थी तुमने उसे क्या खूब निभाया। लेकिन जब मैंने उस वादे को तोडना चाहा तो तुम ने मुझे वो तोड़ने ही नहीं दिया। अब मैं तुम्हारे बगैर कैसे रामु से बताऊँ की मैं हीं उसका असली पिता हूँ।
गाँव के लोग कमला के लिए कफ़न का इंतज़ाम में लगे थे। जब सफ़ेद कफ़न कमला के ऊपर बिछाया गया तब रमेश बाबू ने उस सफ़ेद कफ़न को कमला की शरीर से हटा दिया और वह अपने साथ लाये लाल साड़ी को कमला के ऊपर बिछा दिए और थोड़ी सी सिन्दूर लेके कमला की मांग भर दी। अब सधवा नारी की तरह कमला की अर्थी उठी। राम नाम सत्य का नारा लगाना रामु ने शुरू कर दिया था और उसको ये भी पता चल गया था की रमेश बाबू ने उसे बेटा क्यों कहा था ?