कोरोना को हराने के लिए
कोरोना को हराने के लिए


एक बार एक राजा के राज्य में महामारी फैल गयी। चारों ओर लोग मरने लगे। राजा ने इसे रोकने के लिये बहुत सारे उपाय करवाये मगर कुछ असर न हुआ और लोग मरते रहे। दुखी राजा ईश्वर से प्रार्थना करने लगा। तभी अचानक आकाशवाणी हुई। आसमान से आवाज़ आयी कि हे राजा तुम्हारी राजधानी के बीचोंबीच जो पुराना सूखा कुंआ है अगर अमावस्या की रात को राज्य के प्रत्येक घर से एक – एक बाल्टी दूध उस कुएँ में डाला जाये तो अगली ही सुबह ये महामारी समाप्त हो जायेगी और लोगों का मरना बन्द हो जायेगा।
राजा ने तुरन्त ही पूरे राज्य में यह घोषणा करवा दी कि महामारी से बचने के लिए अमावस्या की रात को हर घर से कुएँ में एक-एक बाल्टी दूध डाला जाना अनिवार्य है। अमावस्या की रात जब लोगों को कुएँ में दूध डालना था उसी रात राज्य में रहने वाली एक चालाक एवं कंजूस बुढ़िया ने सोचा कि सारे लोग तो कुएँ में दूध डालेंगे अगर मैं अकेली एक बाल्टी "पानी" डाल दूँ तो किसी को क्या पता चलेगा। इसी विचार से उस कंजूस बुढ़िया ने रात में चुपचाप एक बाल्टी पानी कुएँ में डाल दिया। अगले दिन जब सुबह हुई तो लोग वैसे ही मर रहे थे। कुछ भी नहीं बदला था क्योंकि महामारी समाप्त नहीं हुयी थी। राजा ने जब कुएँ के पास जाकर इसका कारण जानना चाहा तो उसने देखा कि सारा कुआँ पानी से भरा हुआ है। दूध की एक बूंद भी वहां नहीं थी। राजा समझ गया कि इसी कारण से महामारी दूर नहीं हुई और लोग अभी भी मर रहे हैं।
दरअसल ऐसा इसलिये हुआ क्योंकि जो विचार उस बुढ़िया के मन में आया था वही विचार पूरे राज्य के लोगों के मन में आ गया और किसी ने भी कुएँ में दूध नहीं डाला।
मित्रों , जैसा इस कहानी में हुआ वैसा ही हमारे जीवन में भी होता है। जब भी कोई ऐसा काम आता है जिसे बहुत सारे लोगों को मिल कर करना होता है
तो अक्सर हम अपनी जिम्मेदारियों से यह सोच कर पीछे हट जाते हैं कि कोई न कोई तो कर ही देगा और हमारी इसी सोच की वजह से स्थितियां वैसी की वैसी बनी रहती हैं। अगर हम दूसरों की परवाह किये बिना अपने हिस्से की जिम्मेदारी निभाने लग जायें तो पूरे देश में भी ऐसा बदलाव ला सकते हैं जिसकी आज हमें ज़रूरत है।
सभी घर में रहकर कोरोना को हराने मे सहयोग करें । घर में रहकर हमें अपनेआप को बचाना है किसी ओर को नहीं।