कॉलेज की दीवारों से मुलाक़ात

कॉलेज की दीवारों से मुलाक़ात

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और फिर एक दफा मेरी मुलाकात कॉलेज की दीवारों से हुई,

कभी कभी तो लगता है जैसे जब भी कॉलेज से गुजरता हूँ तो दीवारें मुझसे आज फिर कुछ कहना चाहती हैं, पूछती हैं मुझसे की क्या हमें अपनी दिल की किताब में मेहफ़ूज़ रखा है या नहीं, क्या हमें याद करते हो या फिर हम तुम्हारी ज़िन्दगी की किताब के पन्नो से अलग होकर भिखर गए हैं | मन करता तो है की कह दूँ की तुम हे तो हो जिसे मैं आज भी अपनी यादों में नहीं दुआ में भी याद करता हूँ, दिल करता तो है की कह दूँ की मै तो महज़ ज़ख्म हूँ तुम तो मरहम हो मेरी ज़िन्दगी में|

दीवारों ने मुझसे पुछा की आखिर कैसा रहा यह सफर ज़िन्दगी का, मैंने कहा इतना खूबसूरत की जिसे एक कलम न लिख पाए|

दीवारों ने पुछा क्या लेक्चर्स को याद करते हो, तो मैंने कहा लेक्चर्स का तो पता नहीं पर लेक्चर्स के दौरान यारों के साथ आँख झपकाकर उन्हें सेहेन तो बहुत किया है|

दीवारों ने पुछा पुरानी यादों को कैसे मेहफ़ूज़ रखते हो तुम अपने पास, मैंने कहा मेरी कॉलेज लाइफ के पन्नो को मैंने आज भी अपने दिल में मेहफ़ूज़ रखा हैं, कैसे कुछ पल ज़िन्दगी के हमारे दिल में यूँ बस जाते हैं की फिर जब हम उन्हें देखते हैं तो आँखों में आँसूं उमड़ आते हैं |

दिवार ने सहम कर कहा यानी की इस सफर ने तुम्हे ख़ुशी के पल भी दिए हैं और मुस्कुराने की वजह भी |

मैंने मुस्कुराकर कहा,

आज अपनी ज़िन्दगी के सफर का किस्सा सुनाने को जी कर रहा है, कॉलेज की यादों को याद करके मुस्कुराने को दिल कर रहा है, कैसे कुछ बीतें पल चेहरे पर आँसूं लेकर आ जाते हैं, आज वो बिखरे पन्नो की यादों को फिर देखने को जी कर रहा है |

मैंने कहा क्या मुझे यह अवसर फिर मिल सकता है

कुछ पल के लिए दीवारों की आवाज़ बंद सी हो गई पता चला की सपनो में भी हमारी गुफ्त तू गु कितनी हसीन सी हो गई !


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