Agrawal Shruti

Drama

1.0  

Agrawal Shruti

Drama

कोमल है कमजोर नहीं

कोमल है कमजोर नहीं

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सुबह के आठ-दस बजते-बजते अपने कपड़ो और शक्लों से बिल्कुल बेपरवाह वो सब अपने-अपने कमरों से निकल, आँगन में आ बैठती थीं। बालों को रँगने, चेहरे की मालिश और नाखूनों की पॉलिश जैसे बहुत से काम यहाँ साझे में, खुले हँसी-मजाक और खाने-नाश्ते के साथ हो जाया करते। अनारो को पता था कि ये सब लगभग शाम होने तक यहीं पड़ी रहेंगी और ये गोष्ठी ऐसे ही चलती रहेगी। उसने अपनी लोटा भर चाय में तीन चार चम्मच चीनी और डालकर पारले जी के एक पैकेट बिस्कुट के साथ गटक लिया कि अब इसी पर उसे पूरा दिन काटना था। फिर एक पुरानी सूती साड़ी लपेटकर उसने अपने आपको बुरके से ढाँका और छिपती-छिपाती बाहर निकलने ही वाली थी कि दरवाजे पर से नीली की आवाज सुनाई दी

"कहाँ छुपी हो अनारो? दिखाई ही नहीं देती आजकल तो?" कलेजा जैसे निकल कर गले में आ अटका

बस एक-दो मिनट की गड़बड़ी हो गई वर्ना वह तो गायब ही हो चुकी होती अबतक। इसकी बातों में फँस कर तो अस्पताल पँहुचने में देरी हो जायगी। लेट होने पर वो लोग कुछ नहीं सुनते, सीधे पैसे ही काट लेते हैं। पर कोई उपाय नहीं सूझने पर जवाब देना ही पड़ा

"कहाँ छुपूँगी बहना, आजकल तबियत कुछ ठीक नहीं रहती सो यहीं बिस्तर में पड़ी रहती हूँ।" नीली अविश्वास से उसे देख रही थी

"बुरका पहन कर सोती हो?"

"नहीं नहीं, वो तो थोड़ा साबुन तेल खत्म हो गया था तो बगल की दुकान तक जा रही थी।"

"साबुन तेल लेने तुम क्यों जा रही हो? आंटी से माँगो।"

"सोंचा, थोड़ा सेब संतरा भी ले आती, तबियत ठीक नहीं रहती न आजकल।"

वो थोड़ा झल्ला सी गयी थी। ये नीली की बच्ची भी पूरी अय्यारी पर उतरी हुई है आज तो। एक झूठ बोलो तो उसे सँभालने पीछे सौ झूठ बोलने पड़ते हैं। अनारो परेशान थी पर नीली आज उसको छोड़ने के मूड में कतई नहीं थी।

"कितने पैसे दे गया तेरा ग्राहक कल रात, जो आंटी को देने के बाद भी सेब संतरा खा रही है?" अविश्वास से नीली उसका चेहरा देख रही थी तो अचानक अनारो के सब्र का बाँध टूट गया

"मुझे जाने दे नीली, परेशान मत कर। मैं बहुत जल्दी में हूँ।" नीली को उसकी यह परेशानी जरा भी समझ में नहीं आई।

ये अनारो कभी उसकी बड़ी अच्छी सहेली हुआ करती थी पर पिछले कुछ समय से पता नहीं क्या हुआ है कि सब से मुँह छिपाए बैठी रहती है। फिर कुछ सोंचकर उसने अनारो के दोनों हाथ कसकर पकड़ लिये

"नहीं जाने दूँगी तुझे, पहले बता क्यों गुस्सा है तू मुझसे? क्या गलती की है मैंने?" आँखों में आँसू आ गए अनारो के

"तुझसे गुस्सा क्यों होऊँगी गुइयाँ? मेरे पास तो उसके लिए भी वक्त नहीं है। सब बताती हूँ तुझे, पर मेरी कसम खा कि किसी को नहीं बताएगी?"

"बहन कहती है पर साथ में शक भी करती है?" नीली ने उसकी आँखों में आँखें डालकर कहा तो अनारो उसके कान के पास मुँह ले जाकर बुदबुदाई

"पास वाले अस्पताल में सफाई सुथरा करने की नौकरी पकड़ ली है दिन की। आठ घंटे की ड्यूटी होती है, वहीं जा रही हूँ।"

भौंचक्की थी नीली "क्यों भला? वहाँ तो बहुत ज्यादा खटनी है। थकेगी नहीं तू? ऐसे रात दिन मेहनत कितने दिन कर पाएगी?"

“नीली क्या जानती नहीं है अपने पेशे को? पूरी-पूरी रात नाचना-गाना, अलग-अलग ग्राहकों की अनर्गल माँगों को पूरा करने की मजबूरी शरीर को थका कर चूर कर देती है”

"क्या करूँ, तू तो जानती ही है कि रात वाली सारी कमाई तो आंटी रख लेती है, हाथ में कुछ बचता ही नहीं। पर मुझे अभी पैसों की बहुत जरूरत है।"

"क्यों जरूरत है? खाना कपड़ा सब आंटी के जिम्मे है, घर परिवार बचा नहीं। कौन सी ऐसी नायाब चीज़ खरीदनी है तुझे?" अचकचा सी गई अनारो। इसी एक प्रश्न से बचने को तो छिपी फिरती है वह। नीली उसके कंधे पकड़ कर झकझोर रही थी।

"बोल अनारो बोल, सच बता। क्या छिपा रही है मुझसे? किसी को नहीं बताऊँगी, तेरी कसम" जाने कब से दबाई हुई शारीरिक और मानसिक थकान एकाएक तेज रुदन बनकर फूट पड़ी

"मेरी एक बेटी भी है नीली। मुझे घर से निकालने के दो बरस बाद जब मेरे मरद ने दूसरी शादी की तो मैं उसे चुपके से अपने पास ले आई थी। मेरी जिंदगी तो बरबाद हो चुकी है पर उसे सबसे बचाने के लिए उसी अस्पताल की एक डॉक्टर के कहने पर हॉस्टल में रखा है। पैसा भेजना होता है हर महीने। मत बताना किसी को ये बात... मर जाऊँगी अगर उसके साथ कुछ बुरा हुआ। डॉक्टर बनाना है उसे" रोते-रोते अनारो की हिचकियाँ बँध गई थीं पर उससे बेखबर नीली मुग्ध सी, उस कमज़ोर काया से झाँकती उस माँ के अक्स को देख रही थी जो शायद बिल्कुल भी कमज़ोर नहीं थी।


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