💰 कंजूस की शादी
😃 हास्य व्यंग्य 😃
✍️ श्री हरि
🗓️ 29.10.2025
हमारे मौहल्ले में छदामी लाल जी रहते हैं।
छदामी लाल जी ठहरे एक नंबर के कंजूस।
उनका ध्येय वाक्य था—
"चाहे चमड़ी चली जाए पर दमड़ी ना जाए"।
उनके सपूत "चवन्नी लाल" की शादी हमारे ही मौहल्ले की लड़की "छम्मक छल्लो" से तय हो गई।
छम्मक छल्लो हमेशा लक दक रहती थी,
टन टना टन!
दिन भर मेकअप
बाकी पैकअप!
दोनों की जोड़ी शानदार थी—
एक कंजूस तो दूसरी दिलदार थी।
लोगों ने इसे प्रेम नहीं, साहसिक अपराध कहा।
क्योंकि शादी का मतलब था—खर्चा, और खर्चा कंजूस के लिए एक "वर्जित" शब्द था।
कहते हैं, प्रेम आँखों से शुरू होता है और दिल पर जाकर रुकता है। लेकिन चवन्नी लाल का प्रेम एक पैसे से शुरू होकर दो पैसे पर रुक जाता था।
उन्होंने छम्मक छल्लो से कह दिया—
“तुम मुझे पर्स दो, मैं तुम्हें दिल दे दूंगा"
इस टैग लाइन से छम्मक छल्लो इतनी खुश हुई कि वह चवन्नी लाल की चवन्नी छाप हरकतों के बावजूद उससे शादी करने को तैयार हो गई।
इस अनोखी शादी को देखने के लिए पूरा गांव लालायित था।
सब लोग निमंत्रण का इंतजार करने लगे।
लेकिन छदामी लाल जी निमंत्रण पत्र छपवाने में क्यों पैसे बर्बाद करें?
उन्होंने एक पीपा बजाने वाला बुलाया,
उसके कान में कुछ फुसफुसाया
और तब पीपा बजाने वाले ने गांव के बीचोंबीच पीपा बजाया।
साथ में वह जोर-जोर से चिल्लाया—
"सुनो! सुनो! गांव वालों!
चवन्नी लाल की शादी है, सब बारात में चालो!
पर अपनी खुद की सवारी से जाना पड़ेगा।
खाने में 'हवा' और 'गम' हैं,
पीने के लिए 'सब्र' से काम चलाना पड़ेगा!
जो भी बाराती अपनी जेब ढीली करेगा,
'उम्मीद का चिराग' उसी के तेल से जलेगा"।
ऐलान सुनकर गांव में जश्न छा गया।
बच्चे, बूढ़े, जवान—सबको मजा सा आ गया।
बारात की तैयारी में छदामी लाल ने एक बैठक बुलाई—
फैसला हुआ कि घोड़ी की जगह "गधी" चलेगी मेरे भाई।
शादी के बाद दूल्हा वैसे भी "गधा" कहलाएगा।
गधी के ऊपर बैठकर उसकी सुंदरता में चार चांद लग जाएगा।
बैंड का काम हमारा "पदोड़ सिंह" ही कर देगा—
"पाद पाद कर वातावरण में सप्तम सुर भर देगा"।
भोज में दो टेबल लगी थीं—
एक पर हवा, पानी और दूसरी पर सब्र और उम्मीद।
भोजन की व्यवस्था स्वयं छदामी लाल जी ने की थी।
कहते हैं, उन्होंने एक हथेली पर थोड़ी हवा ली, थोड़ा पानी लिया, थोड़ा सब्र चखा और उम्मीद की स्वीट डिश से काम चलाया।
हवा खाने से उनका पेट फूल गया।
चवन्नी लाल उनके पेट पर ही झूल गया।
इससे उनकी गैस निकल गई
और पदोड़ सिंह के सुर में सुर मिल गया।
दोनों के सुर-ताल पर लोग नाचने लगे।
बाकी बाराती खाने की स्टाल पर जाकर "धूल" फांकने लगे।
सुर-ताल छम्मक छल्लो को भी बहुत पसंद आई।
वह पीछे रहने वाली कहां थी, उसने भी ताल से ताल मिलाई।
शादी का बड़ा प्यारा नजारा था।
चवन्नी लाल को अब छम्मक छल्लो का सहारा था।
सुहागरात को छम्मक छल्लो ने कहा—“आओ राजा! प्यार की शुरुआत करें"
चवन्नी लाल बोला—“इतनी जल्दी क्या है, पहले थोड़ी बात करें।
प्यार का परिणाम बच्चे हैं।
बच्चों का क्या करना है महंगाई में, हम तुम दोनों ही अच्छे हैं"
छम्मक छल्लो बोली—“आप कलाकंद हो, मैं रसमलाई हूं।
बच्चों की चिंता मत करो, मैं गुब्बारे साथ लाई हूं"।
इस तरह उस रात प्यार की बरसात हुई।
चवन्नी लाल और छम्मक छल्लो की पूरी सुहागरात हुई।
अगली सुबह छदामी लाल जी आए बोले—“बेटा, बहू को हनीमून पर घुमाने ले जाओ।
अपने खेत में सरसों के फूल खिले हुए हैं, बहू को नेचुरल सीनरी दिखलाओ"।
अब कई साल बीत चुके हैं।
चवन्नी लाल जी की बीवी हर साल सालगिरह पर पूछती है—
“अब तो एक बच्चा दे दो।”
वो बड़े प्यार से कहते हैं—“बच्चे का क्या करना है, मेरा प्यार सच्चा ले लो?"
इस तरह हर साल आती दीवाली है
और अभी तक छम्मक छल्लो की गोद खाली है।
कंजूस जी का सिद्धांत है—
तामझाम में नहीं, प्यार में आस्था होनी चाहिए।
शादी वो कला है जिसमें व्यय नहीं, व्यवस्था होनी चाहिए।
वो गर्व से कहते हैं—
“मेरी शादी में पूरा गांव बारात में गया
लेकिन मजे की बात यह है कि एक धेला भी खर्च नहीं हुआ।"
निष्कर्ष:
कंजूस की शादी में सब कुछ हवा हवाई है।
बिना खर्चे के आ जाती लुगाई है। 😄