Dharanee Variya

Drama

0.3  

Dharanee Variya

Drama

कलंक

कलंक

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घर में शादी का माहौल चल रहा था। पूरा घर सजा था। मेहमानों और ढोल नगाड़े की आवाज़ से घर गूंज रहा था। चूल्हे की आग पे पक रहे खाने की खुशबू पूरे गाँव मे फैल गई। आँगन में दुल्हन की हल्दी की रस्म चल रही थी।

ज़री वाली मलमल की साड़ी पहन के नाचती औरतों के बीच हल्दी लगाए बैठी सुमन आँखों से बहते आँसू को काजल के पीछे छुपा कर हँसने की कोशिश कर रही थी। इस भीड़ में उसकी साँसे खो रही थी। घुटन को सीने में दबाकर वह लोगो से बातें करने की कोशिश कर रही थी।

हल्दी खत्म हुई। हाथों में उसके नाम की मेहंदी सज चुकी थी। मेहंदी में उस 35 साल के आदमी का नाम देख वो तड़प उठी। ये हैवान एक दिन बाद उसका शरीर खा जाएगा, ये विचार मात्र से वो बुरी तरह काँप उठी।

शरीर को रगड़ रगड़ के वो हल्दी धो डाली जो अब तक उसके शरीर पर कीचड़ की तरह चिपकी हुई थी।

रो रो के बेहाल सुमन के आँसुओ को जानने वाला यह कोई नहीं था।

क्या मैं इसीलिए बनी हूँ?? किसी और की गलती की सजा मैं क्यों भुगतूँ??

सुबह होते ही मेहमानो की चहल पहल में ये बात फैल गई कि सुमन गायब है।

बातें बनना शुरू हो गई, "अरे, माँ की तरह बेटी भी भाग गई क्या??"

                           

[1हफ़्ते पहले]

विवेक : "सुमन, मुझे तुमसे कुछ ज़रूरी बात करनी है।"

सुमन : "हाँ, तो कहो ना।"

विवेक : "मैं अब विदेश जा रहा हूँ, आगे की पढ़ाई करने और शायद मैं फिर वही सेटल हो जाऊंगा। हमारा साथ यही तक का था। मैं तुम्हें धोखा देना नहीं चाहता, इसलिए सामने से बता रहा हूँ कि हमारी शादी नहीं हो सकती। हमारे प्यार को न तुम्हारे घर वाले अपनाएंगे और न मेरे..."

सुमन : "मगर क्यो??"

विवेक : "क्योंकि तुम्हारी माँ भाग गई थी।" कहके वह चला गया लेकिन सुमन के कानों में अब तक वो बात गूंजती रही।

सहसा सुमन की नज़र अविनाश पर गई( जो सुमन का सौतेला भाई था जो अब 18साल का हो गया था।)

वो इन दोनों की बाते सुन रहा था।

सुमन : "लो, और एक मुसीबत।"

अविनाश ने घर पे सबको बता दिया।

दादी ने गुस्से में बहुत कुछ सुनाया, पापा ने एक दो थप्पड़ मारे और थोड़ा कम था इसलिए सौतेली माँ ने उसे उसकी माँ जैसी चरित्रहीन भी कहा।

अब उन लेगो की बातों का उसपे ज्यादा असर नहीं होता था, क्योंकि 20 साल से वो ये सब सुनती आ रही है।

पर इस बार जो अंजाम आया वो बहुत भयानक था। उसके पापा(अमरनाथ) ने उसके डिपार्टमेंट में से एक पोलिस ऑफिसर के साथ मुस्कान की शादी तय कर दी। जो एक 35 साल का आदमी था और मुस्कान 21 साल की।

अमरनाथ और दादी ने ये फैसला लिया कि इसे जल्द से जल्द ठिकाने लगा दे, इससे पहले की ये कहीं मुँह काला करे।

और दूसरे दिन से ही शादी की तारीख निकली और मेहमान आना शुरू हो गए। पूरे गाँव को उसकी बर्बादी में न्यौता दिया गया था।

सुमन से एक बार भी राय नहीं मांगी गई। हल्दी की रात वह डर से कांप उठी थी। 20 साल से उसके मन में कई सवाल थे जिसके जवाब टूटी फूटी कहानियों से उसने यूं ही हवा में जोड़े थे। मगर सच्चाई क्या थी। उसे तो ठीक से अपनी माँ का चहेरा तक याद नहीं। दो साल की थी वह जब सहसा उसकी माँ उसे छोड़ के चली गई और उसके ताने वो आज तक दुनिया से सुनती आ रही थी।

सुमन अपने कमरे में काँपती रूह के साथ सारी अलमारी बिखेर बैठी थी। उसमें उसकी माँ की एक छोटी सी बहुत पुरानी तस्वीर हाथ आई। वह तस्वीर से ही सवाल पूछने लगी,

"तू जानती है, तेरे एक कदम ने मुझे जिंदगी भर की सजा दी है। तू भागी क्यों?? दादी और पापा सौतेली माँ और अविनाश को कितना प्यार करते है, तुम्हे ऐसी क्या परेशानी थी कि तुम भाग गई और इस वजह से वो लोग मुझसे भी नफरत करते है। तुम्हें वापस आना होगा। 20 साल पहले तुमने जो बिगाड़ा है वो सब तुम ठीक करोगी, तुम्हे आना ही होगा, मैं लाऊंगी तुम्हें। मैं ऐसी जिंदगी अब नहीं जी सकती।"

सुमन ने मन मक्कम बनाया और वह चोरी छुपे अपनी दादी के कमरे से कुछ पैसे लेकर रात के अंधेरे में चल पड़ी अपनी भागी हुई माँ की खोज करने।

सुबह होते ही ये बात हवा की तरह फैल गई कि सुमन भाग गई। दादी सर पे हाथ रखे बैठे थे कि ये सब क्या हो गया और अमरनाथ अपनी पुलिस की गाड़ी लेकर उसे ढूंढने निकल पड़ा।

दादी की आँखे बंद हुई, सालो बाद कुछ पहले जैसा ही दोहराता नजर आ रहा था। वो डर से सिमट गई।

                            

सुमन कुछ भी नहीं जानती थी अपनी माँ के बारे में या उसके परिवार के बारे में। घर मे कोई उसके बारे में बात ही कहाँ करता।

वह अपना मुंह छुपाते, मेहंदी वाले हाथ चुन्नी से ढक के बड़ी मुश्किल से अपने दूर के मासी के गाँव पहुंची। जिसे उसने 12 साल की उम्र में देखा था इसीलिए शायद उसके गाँव का नाम याद रह गया था।

बाकी उसे तो ये तक नहीं पता था कि उसकी माँ रहती कहा थी।

उसके मौसा जी गाँव के मुखिया थे इसलिए उसके घर पहुँचने में ज्यादा तकलीफ नहीं हुई। उसके घर पहुँचकर पहले मासी को मिन्नते की कि घर पे कुछ न बताए।

फिर सारी बातें बताकर उसने मासी से ये जान लिया कि उसके नाना नानी किस गाँव में रहते थे। जो कि वो दोनों शायद अब जिंदा नहीं थे लेकिन इंसान की पहचान हमेशा जिंदा रहती है।

अपनी मासी से बिदाई लेके वह पहुँची अपने नाना नानी के गाँव। गाँव काफी छोटा था इसलिए उसमें पाठशालाएं भी बहुत कम थी। उसने सभी पाठशाला में जा के अपनी माँ का नाम बता के कुछ जानने की कोशिश कर रही थी। मगर कुछ हाथ न लगा। कोई भी पाठशाला में उस नाम की कोई लड़की पढ़ती ही नहीं थी और वैसे भी इतने पुराने छात्रों के बारे में खोज करने की वहाँ किसे दिलचस्पी थी??

वह नाना नानी के घर के आस पास पूछताछ करने लगी तब उसे ये पता चला कि जिस नाम को वो यहाँ तलाश रही थी वह नाम उसका था ही नहीं। उसकी माँ का नाम उर्वी था जो शायद ससुराल वालों ने बदलकर उर्मिला कर दिया था। फिर सही नाम की तलाश शुरू हुई।

एक पड़ोसी ने बताया कि उसकी बेटी भी उर्वी के साथ पढ़ाई करती थी। लेकिन अब तो वो भी ससुराल थी। थोड़ी कोशिशों के बाद उससे बात हो पाई तब पता चला कि उर्वी उसके साथ सिर्फ 12वी तक पढ़ी थी फिर वह कॉलेज करने दिल्ली चली गई। कॉलेज का नाम जानकर उसका शुक्रिया अदा कर वह चली छोटे से गांव से दिल्ली।

10 तक पढ़ी सुमन कभी घर से दूर भी नहीं गई थी और आज वह इतनी साहसी बन गई कि अकेली इस जगह से उस जगह भटक रही थी। ना ही पास फोन और ना ही कोई मददगार, यूं ही एक मंजिल तय कर चल पड़ी थी अंजनी राह पे।

दिल्ली जाने का सफर बहुत लम्बा था। दिल्ली ट्रेन की टिकिट लेके वह स्टेशन पे बैठी। तब उसे ये एहसास हुआ कि वह इतनी भीड़ भाड़ वाली दुनिया में भी बिल्कुल अकेली है, तन्हा और इसकी वजह है मेरी माँ। याद आते ही उसके आँख में आंसू आ गया और मन में घृणा। तब तक ट्रेन आ गई। कुछ खाने की चीजें लेकर वह ट्रेन में चढ़ गई।

बहुत लंबा सफर और तन्हाई। मन में कई सवाल थे।

"मेरी माँ ने इतनी पढाई की थी? मुझे तो सिर्फ 10 तक पढ़ने मिला और वह इतने छोटे से गाँव से दिल्ली तक पहुँची थी। इतनी पढ़ी लिखी होने के बावजूद उसने ऐसा कदम क्यों उठाया? दादी सच बोलती है कि वह अपने आशिक के साथ भाग गई ? मगर इतनी पढ़ी लिखी लड़की ऐसा कदम क्यों उठाएगी? क्या उसे एक बार भी मेरे बारे में ख्याल नहीं आया होगा? क्या वो इतनी स्वार्थी होगी?

सहसा मन ने इस बात को ज़हन तक नहीं पहुँचने दिया। दिल के कोई कोने से एक आवाज आ रही जो शायद कहना चाहती थी कि बात कुछ और है मगर आज तक उसने जो देखा, सुना वह सब उसे वो दबी आवाज सुनने से रोक रहा था।

मन में कई सवालों के साथ ये सफर भी खत्म हुआ।

वह रिक्शा वाले को पैसे खिलाते खिलाते कॉलेज तक पहुँची। ये वो अंतिम कड़ी थी जहाँ से शायद उसकी माँ के बारे में कुछ पता चल सके।

कॉलेज की इमारत देख वह थोड़ी देर थम गई, इतनी बड़ी और सुंदर जगह उसने आज तक देखी नहीं थी।

"माँ यहाँ पढ़ाई करती थी? इतनी बड़ी जगह में कौन मुझे इतने पुराने छात्र के बारे में बताएगा?"

उसने धीरे धीरे क्लार्क ऑफिस की तरह कदम बढ़ाए। वहाँ पे बैठे बूढ़े इंसान जो चश्मा चढ़ाए कॉम्प्यूटर में कुछ कर रहा था उसने सुमन की आवाज़ को दो बार अनसुना ही कर दिया।

तीसरी बार जोर से सुमन बोली, "सर, 23 साल पहले यहाँ एक लड़की पढ़ती थी उर्वी उसके बारे में कुछ जानना है।"

उर्वी नाम सुनते ही ऑफिस में खड़ी एक औरत के हाथ से चश्मा गिर गया।

उस क्लार्क ने तो 23 साल सुनते ही मना कर दिया ये कहके की, "हम किसी की पहचान ऐसे ही नहीं बताते और ऐसे ही पुराने बेमतलबी काम करते फिरेंगे तो आज का काम कौन करेगा?"

पर पीछे खड़ी औरत के हाव भाव तबसे बदले थे जब से उसने उर्वी का नाम सुना था।

निराश हो के सुमन वही सीढ़ियों पे बैठ गई। आँख से आँसू बहने ही वाला था कि उस औरत ने सुमन को अपने पास बुलाया। अपने केबिन में ले जा कर पानी पिलाया, फिर पूछा,

"तुम कौन हो?"

सुमन : "मैं उर्वी चौधरी की बेटी, सुमन हूँ।"

ये दो नाम सुनते ही उस औरत ने लंबी साँस ली और कहा, "मेरा नाम निमिशा है। मैं तुम्हारी माँ की पक्की सहेली हूँ, हम दोनों यहाँ साथ में पढ़ते थे। बहुत अच्छी दोस्त थी वो मेरी।"

अब सुमन खुद को रोक न पाई, जैसे दिल खाली करने कोई कंधा मिला हो ऐसे वो रो पड़ी। इस दुनिया मे कोई तो था जो उसकी माँ को जानता था। बिना राह की मंजिल पाने चली थी वो जिसमें निमिशा पहला कदम थी।

निमिशा ने सुमन को शांत किया उसके बाद प्यार से पूछा, " क्या हुआ? तुम इस तरह यहाँ? और अपनी माँ को क्यों ढूंढ रही हो?"

सुमन ने 2 साल से लेके आज तक कि सारी कहानी बता दी।

सुमन का साहस देख निमिशा की आँखे भी गीली हो गई।

"मैं अपनी माँ के बारे में कुछ नहीं जानती। क्या आप मुझे कुछ भी बता सकती है? वो किसके साथ भागी होंगी?"

निमिशा : "तुम्हारी माँ भागने वालो में से नहीं थी। वो अकेली ऐसी लड़की थी हमारी कॉलेज में जो पूरे गाँव का सामना कर यहाँ कॉलेज पढ़ने आती थी। बहुत हिम्मतवाली थी वो। मगर उसके घर पे कुछ हुआ और उसकी शादी एक पुलिसवाले के साथ हो गई और उसने कॉलेज आधा छोड़ दिया। लेकिन वह अपनी दो साल की बेटी को यूं छोड़ कर भाग जाए ऐसा तो हो ही नहीं सकता। I उसके साथ उस रात कुछ तो हुआ था, जो आज तुम्हारी बातों से मुझे लग रहा है।"

सुमन : "किस रात??"

"जब तुम छोटी थी और तुम्हारी माँ प्रेग्नेंट थी, तब एक रात डेढ़ बजे मुझे उसका कोल आया था। वो कुछ कहना चाहती थी मगर फोन कट गया। पता नहीं पर उसके बाद उससे कभी बात ही नहीं हो पाई। मुझे उसकी चिंता होने लगी तो मैं तुम्हारे घर भी आई थी मगर वहाँ का माहौल तो बहुत भयानक था। तुम्हारे नाना नानी का चहेरा काला करके सब उसे गालियाँ दे रहे थे। किसी से पता चला कि उर्वी भाग गई है। उस समय मुझे कुछ समझ नहीं आया और इस बात को इतने साल हो गए।"

ये सब सुन सुमन और उलझन में पड़ गई। वो वहाँ से निमिशा का शुक्रिया अदा कर के वापस स्टेशन आती है।

जितने सवाल यहाँ आते वक्त थे, उससे कई ज्यादा यहाँ से जाते वक्त थे...अब? कहाँ जाना है ये उसे खुद नहीं पता था। वह स्टेशन में ही बैठी रही। उसके मन के अंदर इतना शोर था कि उसे बाहर के कोलाहल से कोई फर्क नहीं पड़ रहा था।

वह सोचती रही, "निमिशा आंटी के हिसाब से माँ एक बहुत अच्छी लड़की थी और बहादुर भी। तो फिर ऐसी क्या वज़ह थी जिसने माँ को भागने के लिए मजबूर किया वो भी प्रेग्नेंसी के दौरान....कही कुछ तो अनहोनी हुई है, कुछ तो गलत हुआ है जो आज तक छुपा हुआ है सबसे। माँ अगर सही में भागी थी तो फिर पापा तो पुलिस है, उन्होंने माँ को ढूंढा क्यों नहीं। माँ के जाते ही एक महीने में उन्होंने दूसरी शादी क्यों कि? इन सब में एक बात है जो बहुत अजीब है माँ का प्रेग्नेंसी दरमियान भाग जाना। शायद डॉक्टर अंकल को पता हो( अचानक से आए इस विचार ने उसके होंठो पे हल्की मुस्कान ला दी, मानो घने अंधेरे में कोई मोमबत्ती लेके खड़ा हो)

सुमन ने जल्दी से अपने गाँव की टिकिट करवाई और ट्रेन में बैठ के पहुँची अपने गाँव।

उस गाँव में एक ही डॉक्टर था, ज्यादातर औरतो की डिलिवरी वही करते थे। सुमन के सौतेली माँ की डिलीवरी भी वही की गई थी।

वहाँ जा के उसने डॉ. को पहले धीरे से समझाया की उसके पापा को ये बात पता न चले।

डॉ. अजय सुमन को और उर्वी को अच्छे से पहचानता था।

डॉ. अजय : "सुमन बेटा, तुम्हे ऐसा भी क्या जानना है मुझसे??


डॉ.अजय को सुनाई, मगर इस बार उसके मन में अपनी माँ के प्रति घृणा नहीं थी, चिंता थी।

"अजय अंकल, आप मेरी माँ के बारे में कुछ भी बता सकते हो?? मैं अब तो इतना जरूर जानती हूँ कि वह भागी नहीं थी, जरूर कोई वजह थी जिसने उसे ऐसा कदम उठाने पर मजबूर किया।"

"नहीं बेटा, मैं इस बारे में कुछ भी नहीं जानता और उसको इतने साल बीत गए कि कुछ याद भी नहीं।"

ये सुनते ही सुमन की एक आखिरी आशा टूट गई।

ये देख डॉ. अजय ने उसे कहा, "तुम निराश मत हो, मैं पुरानी फाइल खोल के देखता हूँ शायद उसमें तुम्हारे काम का कुछ मिल जाए।"

सुमन की आँखों में फिर से आस जगी। पल पल की दूरी पर उसकी बेताबी बढ़ रही थी कि आखिर उस रात ऐसा क्या हुआ था??डॉ.अजय ने फाइल निकाली और उसमें देख के कहा, "बेटा तुम्हारी माँ यहाँ आखिरी बार आई तब वह सिर्फ प्रेग्नेंट ही नहीं बल्कि अपने साथ एक रोग लेके भी आई थी। इससे मुझे याद आया कि तुम्हारी माँ का शायद तीन बार अबोशन भी हो चुका था, और उस समय उसके गर्भ में जो बच्चा था वो भी बड़ी मुश्किल से पल रहा था। उस गर्भाशय के रोग की वजह से बच्चे के जन्म के बाद उसकी सर्जरी भी होने वाली थी...पर फिर तो..."

ये सब सुनना सुमन के लिए आसान नहीं था। ये सब क्या हो रहा था उसकी माँ के साथ और उस बच्चे के साथ भी। अब कोई ऐसा नहीं बचा था उसकी दादी और पापा के सिवाय जो उसे उस रात की कहानी के बारे में बता सके।

निराशा के बादल ओढ़ वह सुनमुन यूं ही चली गई। हॉस्पिटल के बाहर बैठ के वह रो रही थी। मुँह से हल्की सी चीख निकल गई, माँ तुम कहाँ हो? तुम्हारे साथ क्या हुआ था? तुम जहाँ भी हो मेरे पास आ जाओ। माँ मेरे पास आ जाओ...उसके शब्द अब आँसू बनके बहने लगे। उसे अब कोई परवाह नहीं थी कि गाँव मे कोई उसे देख लेगा या उसके पापा उसे घसीटते ले जाएंगे। उसके जहन में अब सिर्फ उसकी माँ दौड़ रही थी।

सहसा कोई उसके सामने आ के खड़ा हो गया।

"अविनाश, तुम???"

                           

हाथ पे हाथ धरे कुछ भी नहीं होने वाला, अब वक्त आ गया है कि आमने सामने ही बात की जाए।

सुमन बड़े जोश के साथ घर गई। जाके सीधे रुकी अपने पिता के कमरे में, अलमारी खोल उसमें से बंदूक निकाली और जाके ताक दी अविनाश के सिर पर...

घर में सबकी जान हथेली में आ गई। अचानक इतने दिनों बाद घर आई सुमन का ये रवैया देख सब हैरान हो गए।

दादी : "अरे, क्या कर रही हो पागल लड़की, छोड़ अवु को गोली चल जाएगी तो अनर्थ हो जाएगा।"

घर में से चीखने चिल्लाने का शोर आने लगे, सभी पड़ोसी तमाशा देखने पहुँच गए।

सुमन : "अनर्थ तो हो चुका है दादी, मेरी माँ के साथ। अब मुझे किसी की परवाह नहीं।मुझे परवाह है तो सिर्फ मेरे माँ की और उसकी कोख में पल रहे उस बच्चे की। आपने बहुत बता दी अपनी कहानी, अब मुझे सच जानना है। बताओ...क्या हुआ था मेरी माँ के साथ, क्यों वो आज हमारे साथ नहीं है, ऐसा क्या हुआ था कि वह अपनी गर्भवती हालत में भाग गई, बताओ..बताओ..." उसकी आवाज़ में न तो पहले जैसा डर था और न ही किसी की मर्यादा।

सुमन को ऐसा देख सबके पसीने छूट गए, अमरनाथ और दादी डर के मारे काँप उठे।

अमरनाथ : "बताता हूँ ... बताता हूँ...तुम अवु को कुछ मत करना छोड़ दो उसे, छोड़ दो, उसकी कोई गलती नहीं है।"

सुमन : "गलती तो मेरी भी नहीं थी। 19 साल से फिर भी मैं भुगत रही थी न, तो अब ये भी भुगतेगा।

आप सच बताओ वरना आज अपने लाडले बेटे से हाथ धो बैठेंगे।

" नहीं...नहीं..." डर के मारे अमरनाथ तोते की तरह बोलने लगा,

"तुम्हारी माँ जब कॉलेज के आखिरी साल में थी तब तुम्हारे नाना को किसी ने दारू के धंधे में फंसाया था। मैंने तुम्हारे नाना को छोड़ने पे एक शर्त रखी और उसी शर्त के अनुसार तुम्हारी माँ की मुझसे शादी हुई। शुरुआत में सब ठीक चल रहा था। वह अपना कॉलेज छोड़ घर सम्भालती थी और फिर तुम्हारा जन्म हुआ।

घर में एक बेटी के बाद हमे एक बेटा चाहिये था। उसी वजह से तुम्हारी माँ का तीन बार अबॉर्शन करवाया, क्योंकि तीनों बार उसकी कोख में लड़की ही पल रही थी। हर बार तुम्हारी माँ नहीं मानती और हमे जबरदस्ती करनी पड़ती। जब वह चौथी बार प्रेग्नेंट हुई तो डॉकटर ने कहा कि उसके गर्भाशय में गांठे हो गई है, इस बच्चे के बाद वह कभी प्रेग्नेंट नहीं हो सकेंगी...लेकिन हमने दूसरे डॉक्टर को दिखाया जिसने हमे कहा कि ऐसा कुछ नहीं होगा। ऑपरेशन के बाद वह फिर से प्रेग्नेंट हो सकती थी। तो मैं और माँ खुश हो गए और मैंने फिर उसे हॉस्पिटल आने के लिए कहा। हम ये देखने जा रहे थे कि बेटा है या बेटी? बरसात का मौसम थी। अंधेरा होने के बाद गुप्त तरीके से वो जाँच करवाने वाले थे, तुम्हारी माँ जिद पे अड़ी थी कि उसे ये जाँच नहीं करवानी। जो भी हो वो उसे जन्म देना चाहती थी लेकिन मैं ये नहीं चाहता था। कुछ ही घंटों में उसकी बारी आने वाली थी, मैं अकेले में डॉक्टर से बात करने गया इतने में वो हॉस्पिटल से भाग गई। अंधेरा काफी हो चुका था, मैं उसे ढूंढने चला गया। भागते भागते वो एक जंगल की ओर बढ़ गई और मैं गाड़ी लेके उसके पीछे पड़ा था, मेरा खून खौल रहा था उसकी इस बचकानी हरकत पे। मैं बहुत चिल्लाया मगर वो मुझसे बचने की चाह में भागी जा रही थी। अचानक तेज बारिश शुरू हुई, मेरी गाड़ी बंध हो गई। मैं वही गाड़ी छोड़ उसके पीछे भागा। मेरे हाथ में आते ही मैंने उसे जोर से थप्पड़ मारा, मुझे होश ही नहीं रहा था। सारा गुस्सा उस थप्पड़ में बह गया, वो बुरी तरह से गिर गई और सिर पत्थर से टकरा के खून से लथपथ हो गया। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूँ, बारिश बढ़ती ही जा रही थी और तुम्हारी माँ अपनी आखिरी साँस गिन रही थी। अब मेरे हाथ में कुछ नहीं था। मेरी आँखों के सामने वह मर गई और उसकी कोख में पल रहा बच्चा भी। अब उसे ऐसे घर ले जाता तो मुझ पे और माँ पे कई सवाल उठते। हमारा घर बदनाम हो जाता। इस सबसे निकलने का मुझे एक ही तरीका दिखा। मैंने जंगल में माँ को खुदाई का सामान ले के बुलाया और उसे वही दफना दिया। तबसे लेके आज तक हम ऐसे ही जी रहे थे कि वह भाग गई, लोगो को भी यही बताया ताकि उसकी लाश किसीके सामने न आये।


"अफसोस कि एक धारा आज अमरनाथ की आँखों से भी बह रही थी"


वातावरण में सन्नाटा छा गया, ये शायद खतरनाक तूफान के पहले की शांति थी।

सुमन के हाथ से बंदूक छूट गई, वो जमीन पर जिंदा लाश की तरह गिर गई और चीख चीख के रोने लगी। उसके इस रुदन ने वहाँ खड़े सबके रोंगटे खड़े कर दिए, दादी भी सिर पे हाथ पटक के बैठ गई। जिस राज को उसने इतने सालों से संभाल के रखा था वह आज बेरहमी से बाहर आया था। अब आने वाले तूफान को रोकने की किसी में हिम्मत नहीं थी।

अविनाश भी गुस्से से लाल पीला हो गया, उसने अमरनाथ को खींच के एक चाँटा मारा, "शर्म आती है मुझे तुम्हें बाप कहने में, घिनोने इंसान हो तुम।"

अब सब बर्बाद हो चुका था। सुमन दौड़ के गई अमरनाथ के पास और उसकी कमीज़ खींच के गुस्से में बोलने लगी, "इतनी भी क्या लालसा थी तुम्हें बेटे की, की उसके सामने तुम्हें कुछ न नजर आया। तुम हत्यारे हो पाँच पांच जीव के और ऊपर से मेरी माँ का नाम बिगाड़ के तुम जी कैसे सकते हो, ये क्यों नहीं समझ आता कि एक जीव पहले होता है, लड़का या लड़की बाद में.... वह चीख चीख के बोलने लगी, कब तक ये सब चलता रहेगा? लड़का लड़की एक समान ये बात चीख चीख कर बतानी क्यो पड़ती है? दोनों की तुलना करें ही क्यों? दोनों की अपनी अपनी अहमियत है, दोनों के बिना समाज अधूरा है, फिर सिर्फ लड़के की आशा क्यों? लड़कियों को क्यों ये साबित करने की जरूरत है कि वे लड़को से कम नहीं, क्या वह एक लड़की बनकर नहीं रह सकती, किसी से उसके पद की तुलना क्यो करते हो?? न जाने मेरी माँ की तरह और कितनी औरते इस दुःख से गुजर रही है। बंद करो ये घिनौनी हरकत।ईश्वर के दिए जीव को पालना सीखो नहीं की उसके मोल करके उसे मारना। हर शादी के पहले क्या दहेज के साथ ये शर्त भी रखनी पड़ेगी की लड़की ऐसे घटिया इरादों के लिए अबॉर्शन नहीं करवाएगी???"

सभी चुप थे। सुमन की आवाज़ सबके कानों से होकर दिल को चीर रही थी। मुझे नहीं रहना ऐसे समाज में। वह पीछे मुड़ी और अविनाश के पास गई, "अगर उस दिन हॉस्पिटल तुमने मेरी हिम्मत बढ़ा के ये काम नहीं करवाया होता तो शायद ये घिनौना राज राज ही रह जाता, शुक्रिया। मेरी माँ के नाम से ये कलंक हटाने के लिए।"

कहके वह बिना पीछे मुड़े चली गई....अपनी माँ को न्याय दिलाने की नई राह पे।


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