किताबें बोलती हैं ।
किताबें बोलती हैं ।
नमस्ते! कैसे हो? मैं वही आप सबकी जरूरत आप सबकी अपनी किताबें ...जिसे अब लोग शायद भूल रहे हैं या फिर याद हूँ कुछ को...पता नहीं?
मेरे बिना सबका ज्ञान अधूरा है जानती हूँ...चाहे वो कोई शास्त्र हो या फिर कोई ग्रन्थ या फिर किसी लेखक की सोच।
वो भी क्या दिन थे जब सोचती हूँ खुशी होती है, जब लोग मुझे अपने अकेलेपन का साथी मानते थे ..आज सब कुछ बदल चुका है ...मेरी जगह अब नये यूग के नये तकनीकि साधनो ने ले लिया है।
कभी-कभी तकलीफ़ होती है लेकिन फिर उन लोगों के बारे सोचकर खुश हो लेती हूँ जिनकी जिन्दगी में मैं अभी भी बहुत जरूरी हूँ। बूरी और अच्छी बातें सब है मेरे अंदर कोशिश करती हूँ कि सब मुझसे केवल अच्छी बातें सीखें और उनके सपनों को पूरा करने में मै उनकी मदद कर पाऊँ, बस यही चाहत रहती है मेरी ...
कभी-कभी मै भी बोल लिया करती हूँ, हाँ मैं आपकी अपनी किताबें।