बचपन

बचपन

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बचपन के दिन कितने अच्छे होते हैं न, हमे किसी की फिक्र नहीं होती लेकिन सबको हमारी फिक्र होती है ...

वो दादी-नानी से सुनी गयी कहानियाँ दादा और नाना जी के साथ खेलना, पापा की डांट से माँ का बचाना, बारीश होने पर हमारा घंटो भीगना, स्कूल न जाना पड़े उसके लिए पेट दर्द के बहाने ...ओह ...वो भी क्या दिन थे।

आप सोच रहें होंगे की अचानक से आज बचपन की बात कैसे होने लगी, दरअसल आचनक बचपन की याद आज उन बच्चों को देखकर आई जो मेरे घर के पास बने पार्क में खेल रहे थे जिन्हे मैं अपने घर के बालकनी से काॅफी पीते-पीते देख रही थी...देखते-देखते पहले बचपन याद आयी और फिर सूमन याद आ गयी...

आप पूछेगें की ये सूमन कौन है?

दरअसल सूमन मेरे स्कूल मे थी वो हम आप जैसी आम लड़की थी लेकिन उसका बचपन आम बच्चों जैसा नहीं था।

उसका बचपन भूख और गरीबी में व्यतित हुआ, यही नही वो अकेले थी उसका कोई परिवार भी नही था फिर भी उसने हिम्मत नही हारी वो पढ़ायी के साथ-साथ मंदिर के बाहर पूजा के लिए मालाएँ बनाकर बेचती थी। कभी-कभी लगता था कि उसकी मदद करनी चाहिये  ऐसा नही है की सबने कोशिश नहीं की पर वो बहुत स्वाभिमानी थी या फिर वक्त की मार ने ऐसा  बना दिआ था।

आज बालकनी के बाहर खेलते बच्चों को देखकर सूमन की याद आ गयी और साथ मे ये भी की सबका बचपन इतना अच्छा नही होता, क्योंकी कुछ लोंगो का बचपन सूमन के बचपन जैसा भी होता है।

 

 

 

 

 


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