MOHAMMAD SAQUIB AQEEL

Tragedy Inspirational Children

3.6  

MOHAMMAD SAQUIB AQEEL

Tragedy Inspirational Children

किसान और जमीन

किसान और जमीन

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बहुत समय पहले की बात है एक छोटे से गांव में एक सह कुशल नेतृत्व वाला परिवार रहता था। पेशे वह किसान थे जिसका नाम रामु था। वह अपने पूरे गांव में अच्छा खासा पढ़ा लिखा था। परन्तु वह फिर भी खेती बाड़ी एवं गांव के बच्चों को पढ़ाया करता था और इसी से वह अपने परिवार का भरन पोषण करा करता था। रामु के पास दो बेटे (सूरज और अजय) एवं एक बेटी (कल्याणी) थी और वह अपनी पत्नी (कमला) के साथ एक सामान्य एवं खुशहाल जीवन व्यतीत कर रहा था। एवं गांव का अधिकांश भाग किसानों का था जो कि खेती बाड़ी करके अपने परिवारिक जीवन को किसी तरह चलाते थे। गांव के अधिकांश व्यक्ति किसान थे और बरसो से अपने पुर्वज के बताए गए कर्तव्य को सही तरीके से स्थापित कर रहे थे एवं सभी एक दूसरे के साथ प्रेम आदर का व्यवहार रखा करते थे और मुश्किल परिस्थिति में एक दूसरे की मदद किया करते थे।


परन्तु उसी गांव में एक ठाकुर रहा करता था जो एक अच्छे एवं अति समृद्ध परिवार से था। परन्तु उस ठाकुर के मन में गरीब और लाचार लोगों के प्रति लालच एवं नफरत भरी हुई थी। जो किसानों की जमीनें हड़पने के लिए किसी भी हद तक जा सकता था और वह इसके लिए किसानों को उनके जमीनों की कीमत देना तो चाहता था परन्तु किसानों के तय कर्दा कीमत पर नहीं बल्कि अपनी तय कर्दा आधी से भी कम कीमत पर।

किन्तु इस फैसले को लेकर किसान ठाकुर से नाराज़ थे और वह अपनी जमीनें ठाकुर को नहीं देना चाहते थे। कुछ समय के बाद ठाकुर किसानों को बारी बारी से अपनी हवेली पर बुलाता और उन्हें अपनी जमीन बेचने के लिए आमंत्रित करता और किसानों द्वारा ना कहने पर उनके साथ दुर्व्यवहार करता, उन्हें कष्ट देता एवं वह सभी कार्य किया करता जिससे उसे प्रतीत होता के ऐसा करने से जमीनें उसकी हो जाएंगी परन्तु किसान तब भी अपना फैसला नहीं बदलते थे क्योंकि उन्हीं जमीनों से उनका घर परिवार एवं संसार चला करता था।

किन्तु छः माह बाद जब किसानों के खेतों से फसलें एवं अनाज निकाली गई तो ठाकुर ने फिर से एक नई योजना बनाई के इस बार की सारी फसलें एवं अनाज वह किसानों की तय कर्दा कीमत पर खरीदेगा। परन्तु मैं चाहता हूं कि ये तमाम फसलें एवं अनाज खरीदने के बाद तुम सब अपनी अपनी जमीनें मुझे बेच दो ताकि तुम सबके भविष्य को एक नई पहचान मिल सके और जब यहां कुछ अच्छा व्यवसाय शुरू होगा तो तुम सभी को वहां रोजगार के अवसर प्रदान किए जाएंगे। ताकि हमारा गांव किसी शहर से कम प्रतीत ना हो। परन्तु किसानों ने इस बार भी ठाकुर की एक ना सुनी और अपना अनाज ठाकुर को देने से इनकार कर दिया और अपनी जमीनें भी ना देने का निर्णय किया और अपनी फसलों एवं अनाजों को बेचने के लिए पास के दूसरे गांव के मंडी का चयन किया और वहां उन्होंने अपने सभी अनाजों को अच्छी कीमत पर बेची एवं बेहतर मुनाफा कमाया।

यह देखकर ठाकुर को बहुत गुस्सा आया लेकिन किसानों की एकता एवं अखंडता को देखकर वह काफ़ी समय तक चुप रहा और फिर आने वाले समय में पंचायती चुनावों के मद्देनजर गांव के मुखिया एवं सरपंच के साथ मिलकर यह विचार विमर्श करने लगा के आखिर किसानों से उनकी जमीनें कैसे हड़पी जाए। बहुत सोचने समझने के बाद ठाकुर ने एक योजनाएं बनाई। जिस योजना के तहत गांव के मुखिया एवं सरपंच व जिला कलेक्टर गांव आकर किसानों को सरकार द्वारा कृषि उत्पाद के लिए कुछ सामान मुहैया कराएगी जिसके प्रति एक दस्तावेज़/रसीद बनाई जाएगी जिस पर उन सभी किसानों के हस्ताक्षर एवं अंगूठे के निशान होंगे जिन्हें इस योजना का लाभ मिलने वाला है। यह खबर गांव के सभी किसान एवं गांव के हर परिवार तक बड़ी सावधानी से पहुंचा दिया गया ताकि यह षड्यंत्र सभी को सच एवं असली प्रतीत हो।

तभी रामु ने सोचा कि सरकार के द्वारा आज तक हमें कोई भी लाभ इतनी आसानी से नहीं मिली तो आज गांव में यह होड़ कैसी मची हुई है। इस बात पर रामु को शक का अभाव होने लगा। अगले दिन जब गांव के मुखिया, सरपंच, ठाकुर एवं जिला कलेक्टर और समाज के कुछ चिह्नित व्यक्तिगण आए और समारोह का आयोजन किया गया तो (रामु ने कहा कि हमें सरकार के द्वारा दिए जाने वाले सभी प्रकार के लाभों की सराहना करते हैं। किन्तु हम सभी किसान भाई-बंधू पहले उस दस्तावेज़/रसीद को देखना एवं समझना चाहते हैं। जिसमें सरकार द्वारा किसानों को दिए जाने वाले तमाम लाभों का ब्योरा है। तभी हम सभी किसान भाई-बंधू इस भेंट को परोक्ष रूप से स्वीकार करेंगे।) यह सुनकर ठाकुर और ठाकुर के चमचों के पैर के नीचे से जमीन खिसक गई और ठाकुर द्वारा बना बनाया योजना एक बार फिर से नाकाम हो गई। गांव के सभी किसानों ने रामु की सराहना की एवं उसका आभार व्यक्त किया इस परिस्थिति में सभी को निढाल रखने पर।

समय बीतता गया लोग अपने अपने कार्य में व्यस्त होते गए। किसानों की खेती बाड़ी भी अच्छी होने लगी थी उन्हें फसलों एवं अनाजों की निर्यात से अच्छा मुनाफा मिलने लगा था। घर परिवार भी सह कुशलतापूर्वक चल रहा था। धीरे धीरे गांव भी खुशहाल एवं प्रसन्न-चित्त प्रतीत होता नजर आ रहा था। परन्तु अधर ठाकुर गुस्से से आग बबूला था कि हर बार उसकी योजनाएं विफल हो जाती है। किन्तु ठाकुर अब इतना कमजोर हो चुका था कि वह इन सभी मामलों से दूर रहने लगा। क्योंकि इतनी बार विफल होने के संदर्भ में ठाकुर ने अब परोक्ष रूप से अपनी हार स्वीकार कर ली थी और अब वह किसान एवं गरीबों के प्रति अपनी विचारधारा को बदलने में लगा था।

बीतते समय के साथ साथ सभी का व्यवहार अब थोड़ा अलग प्रतित होता था। क्योंकि किसान भी अब सारी बातें सोचने समझने लगे थे और अपना अच्छा बुरा खुद सोच रहे थे। उन्हें अब समाजी और व्याख्याई राजनीति का अंतर मालूम हो गया था। अब वह सभी कार्य करने से पहले उस पर विचार विमर्श करते थे। कठिन परिस्थितियों में सभी एक दूसरे का सुख दुःख आपस में साझा किया करते थे और आने वाले समय में अपने और अपने बच्चों के लिए एक उज्ज्वल भविष्य की कामना करते थे एवं अपने गांव समाज को अपनी मेहनत से खुशहाल एवं प्रसन्न-चित्त बनाना चाहते थे इत्यादि।


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