Sheikh Saquib

Tragedy Inspirational

4.0  

Sheikh Saquib

Tragedy Inspirational

ब्रह्मांड के चार चमत्कार

ब्रह्मांड के चार चमत्कार

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हमारी यह दुनिया हमारी सोच से भी ज्यादा खूबसूरत और खतरनाक है। यहां पतझड़, पेड़, पहाड़, झील, नदियाँ, सागर, रेगिस्तान, पंक्षी, जानवर और मनुष्य और ना जाने कितने ही दिल को मोह लेने वाली चीजों से भरी पड़ी है। सुंदर और मन को मोह लेने वाले दृश्य सिर्फ फिल्मों और डरामों का ही हिस्सा नहीं होते बल्कि यह हमारे आस पास ही एक सहायक के रुप में शामिल होते हैं। अगर हम इस दुनिया का पूरी तरह से जायज़ा ले तो प्रकृति के कारखाने के सुंदर कारनामें और प्रदर्शन दिखाई देते हैं। भगवान ने हम मनुष्य के लिए बहुत सारी खूबसूरत चीजें पैदा की व बनाई है। लेकिन हम मनुष्य तब भी उसकी कारीगरी से खुश नहीं होते और अपने मन में उनके प्रति घृणा रखते हैं।


इस दुनिया के हर एक देश का अपना एक अलग सांस्कृतिक प्रणाली होता हैं। लेकिन हम साथ ही साथ यह भी देखते हैं कि हर एक शहर और गाँव का अपना अलग स्वभाव होता है, रूढ़िवाद और उदासी और मुझे कभी भी शोर, सराबे, गर्म और बेचैन शहर बिल्कुल अच्छे नहीं लगे। वहीं सर्द और शांत शहर मनुष्य के सभी सूख दुःख को अपने अन्दर समा लेते हैं और ऐसे शहर मुझे हमेशा से अपनी तरफ मोहने लगते हैं और इस खूबसूरत मौसम से आँख मिचोली करने का एक सुंदर मौका देते हैं।


शाम के समय जब सूरज डूबने वाला होता है तो वह दृश्य कितना सुंदर लगता है। धीरे धीरे सूरज आसमान की तह में छुपने लगती है और सभी पंक्षी, जानवर और मनुष्य अपने अपने आशियाने की तरफ रवाना होते हैं तो वह दृश्य इस दुनिया की उस हकीकत से मिलाती है जिसे हम कभी कल्पना के संसार में देखते हैं इसलिए उस दृश्य को उसकी खासियत और खास बनाती है और साथ ही साथ उस दृश्य को भी बहुत सुंदर बनाती है एवं वह दृश्य कितना प्यारा मालूम होता है। मानो कोई ऐसा व्यक्ति जो दिन के कामों से थक हारकर अपनी मंजिल की तरफ वापस जा रहा हो। ढलते सूरज की चमक के साथ साथ गाँव के सभी बच्चे अपने अपने खेल कूद में लगे हुए थे। नौजवान और बूढ़े अपने अपने कामों में व्यस्त थे और उनमें से कुछ व्यक्ति अपने घर के सामने बैठकर मौसम का मजा ले रहे थे। ऐसा लग रहा था मानो हर तरफ खुशियाँ ही खुशियाँ नजर आ रही हो और शीतल हवा चारों सिमत लहरा रही थी।


मैं कभी कभी आसमान की तरफ देखता हूँ तो बहुत आश्चर्य करता हूँ कि हमने ऐसी चीजें क्यों खराब कर ली हैं जो हमारे दिनचर्या या रोज़मर्रा के जीवन के लिए बहुत जरूरी है। मुझे आश्चर्य होता है कि हम सागरों को किस तरह खोज करते हैं और तरक्क़ी के नाम पर पेड़ पौधों को अपनी जरूरत के लिए काटते हैं और इसका उपयोग कर रहे हैं बिना ये सोचे के भविष्य में वातावरण को इससे कितना नुकसान होने वाला है। असल में यह एक ऐसा शोकपूर्ण घटना है कि हम ये सोचने पर मजबूर हैं कि भविष्य में हमारी आने वाली पीढ़ियों के पास प्रकृति की कोई भी चीज नहीं बची रहेगी क्योंकि तब तक हम सब कुछ अपने काबू से बाहर कर चुके होंगे और इसी संसार में एक और चीज आती है जो धीरे धीरे वह भी किसी पक्षी या जानवर की तरह इस धरती और इस संसार से लगभग विलुप्त होती जा रही है और वह है दोस्ती / मित्रता एवं इस प्रसंग के प्रति निष्ठा और भरोसा। हमारे इस बेमतलब के जीवन में कुछ हो या ना हो लेकिन कम से कम एक दोस्त तो जरूर होना चाहिए और साथ ही साथ कुछ लोगों पर भरोसा भी होना चाहिए तो चलिए आज आपको एक ऐसी ही कहानी सुनाते हैं जो कि एक सच्ची घटना से प्रेरित और आधारित है और इसका शीर्षक है ब्रह्मांड के चार चमत्कार।


बहुत समय पहले की बात है कि मद्रास के एक छोटे से गाँव आदर्श नगर में चार घनिष्ठ मित्र रहा करते थे। स्वामी, प्रकाश, राकेश और सोहन। चारों मित्रों में घनिष्ठ मित्रता थी। चारों मित्र एक दूसरे पर अपनी अपनी जान कुरबान किया करते थे। चारों मित्र एक दूसरे के साथ अपना सुख दुःख बाँटा करते थे। चारों मित्र गाँव के पास वाले स्कूल में ही पढ़ा करते थे और चारों रोजाना एक साथ ही स्कूल जाया करते थे। लगभग गाँव के सभी व्यक्ति उनकी मित्रता को देखकर आश्चर्य व्यक्त किया करते थे एवं कहीं भी किसी भी पहर अगर मित्रता की बात होती तो वे उन चारों मित्रों का उदाहरण जरूर दिया करते थे।


जीवन के रेल की गति बहुत तेज दौड़ने लगी थी। जीवन का कालचक्र अब आगे बढ़ने लगा था। धीरे धीरे वे चारों मित्र भी बड़े होने लगे थे। अब उन्हें अपना बचपन सिर्फ एक कल्पना का छोटा सा संसार प्रतीत होता था और उसी कल्पना की दुनिया में उन चारों का परिवार था। लेकिन उन्हें क्या पता था कि बड़ा होना इतना आसान नहीं है जितना के वह सोचा करते थे। बड़े होने के साथ साथ उनकी अपने परिवार के प्रति जिम्मेदारियाँ भी बड़ी होने व बढ़ने लगी थी। अब उन चारों के ऊपर अपने परिवार और अपने भविष्य की जिम्मेदारियाँ आ चुकी थी। धीरे धीरे उन चारों का एक दूसरे से मिलना जुलना कम होने लगा। लगभग सबके घर की स्थितियाँ ठीक थी। परन्तु सोहन के घर की आर्थिक स्थिति बहुत ज्यादा खराब थी। सोहन के पिताजी एक किसान थे, इसलिए खेती करने पर जो कुछ मिलता उसी से सोहन और उसके पूरे परिवार का गुजारा होता था। परन्तु कुछ ही सालों बाद सोहन के पिताजी की तबीयत खराब रहने लगी जिसके उपरांत उन्हें आपना काम भी छोड़ना पड़ गया और तभी सोहन के घर की आर्थिक स्थिति और बिगड़ गई और फिर सोहन के ऊपर जिम्मेदारियों का बोझ अधिक बढ़ गया। सोहन ने स्कूल जाना भी छोड़ दिया क्योंकि स्कूल की फीस अदा करने के लिए सोहन के परिवार के पास अब इतने पैसे नहीं थे। धीरे धीरे सोहन उदास रहने लगा और फिर एक दिन उसने शहर जाकर काम करने का निश्चय किया और कुछ ही दिनों बाद सोहन अपने प्यारे माँ - बाबा, बहन और दोस्तों को बिना बताए ( मद्रास ) की ट्रेन पकड़कर रवाना हो गया। सोहन के काफी दिनों तक ना दिखाई देने पर स्वामी, प्रकाश और राकेश, सोहन के घर गए वहां जाकर उन्हें पता चला के सोहन पिछले हफ्ते ही बिना कुछ बताए शहर चला गया है। यह सुनकर स्वामी, प्रकाश और राकेश को बहुत दुःख हुआ के उसके मित्र ने उन्हें अपना पीड़ा व कष्ट बताना जरुरी नहीं समझा। लेकिन इन सब बातों को नज़र अंदाज करके तीनों मित्रों ने सोहन के लिए भगवान से प्रार्थना कि के मेरे प्रिय मित्र तुम जहां भी रहो बस खुश रहो, तुम्हारी खुशी में ही हमारी खुशी है। परन्तु कोई व्यक्ति अपने मन को तो नहीं मार सकता, लेकिन तीनों मित्र सोहन को याद करके हमेशा उसे भगवान के समक्ष रखते थे।


सोहन अब मद्रास पहुँच चुका था, परन्तु ना तो उसके पास पैसे थे, ना रहने के लिए घर, ना खाने के लिए दो वक़्त की रोटी और ना ही जीवन बिताने के लिए कोई काम। सोहन को मद्रास आए हुए पूरे एक हफ्ते हो चुके थे परन्तु सोहन को अब तक यहां कोई काम नहीं मिला था और ना ही रहने के लिए कोई ठीकाना। सोहन शहर आकर भी खुद को बहुत कोसता और सब कसूर अपने भाग्य का ठहराता। एक दिन सोहन मद्रास की गलियों में घूमते घूमते शहर से बहुत दूर निकल गया। वह एक छोटा सा गाँव था शहर से काफी दूर। सोहन ने अपनी रात उसी गाँव के मंदिर के काटने की ठानी और सुबह होते ही सोहन काम की तलाश में फिर से आगे की ओर चल पड़ा। काफी दूर चलने पर उसे एक कार्यशाला दिखाई दिया जो कि एक मेकैनिक की दुकान थी। सोहन ने वहां जाकर कार्यशाला के मालिक से कहा कि बाबा क्या मुझे यहां कोई काम मिल सकता है, मैं बहुत दूर से आया हूँ। यह सुनकर कार्यशाला के मालिक ने जवाब दिया के बेटे तुम क्या क्या काम कर लेते हो तो सोहन ने कहा अगर सच कहूं तो मुझे कोई काम नहीं आता मैं यहां काम सिखने आया हूँ और मैं यहां सिर्फ़ काम की तलाश में आया हूँ। यह सुनकर कार्यशाला का मालिक बहुत उदास हो गया और उसने सोहन से कहा बेटे तुम्हें खाना बनाने तो आता है ना, क्योंकि इसके अलावा मेरे पास तुम्हारे योग्य कोई दुसरा काम नहीं है, अगर तुम यह काम करते हो तो मैं तुम्हें धीरे धीरे मैकेनिक का भी काम सिखा दूँगा फिर तुम मोटरकार और मोटरसाइकिल की मरम्मत कर सकोगे। यह सुनकर सोहन बहुत खुश हुआ और उसने काम करना शुरू कर दिया।


अब सोहन काम करने लगा था। अब पहले से उसकी हालत काफी ठीक ठाक थी। परन्तु उसे अपने परिवार और दोस्तों की बहुत याद आती थी। फिर करीब एक माह बाद सोहन ने अपने घर के खर्चे के लिए मनी आर्डर और अपने दोस्तों के नाम एक पत्र भेजा। पत्र मिलने पर स्वामी, प्रकाश और राकेश की खुशी का ठिकाना नहीं था। क्योंकि आज बहुत दिनों बाद उनके प्रिय मित्र सोहन का पत्र आया था और उस पत्र में लिखा था कि...

05/ फरवरी /1995

आदर्श नगर, मद्रास।

                 मेरे प्रिय मित्रों तुम सबको मेरा ढेर सारा प्यार और सत्कार।

                 मैं यहां मद्रास में कुशल मंगल हूँ और उम्मीद है कि तुम सब भी कुशल मंगल होगे। जब मैं यहां आया था तो खुद को बहुत अकेला समझता था। शुरू शुरू में तुम सबकी बहुत याद आती थी। क्योंकि उस वक्त तक मेरे पास कोई काम नही था तो मैं हमेशा माँ - बाबा और तुम लोगों को याद किया करता था। परन्तु मैं अब यहां एक मेकैनिक की दुकान में काम करता हूँ। मेरे मालिक मेरे बाबा समान है और वह मुझे अपना बेटा समझते हैं। मुझे पता है कि मेरे बिना तुम लोगों का मन नहीं लगता होगा। परन्तु मेरे प्रिय मित्रों मैं हालात के आगे बेबस हूँ। मुझे माँ - बाबा के लिए कुछ अच्छा करना है चाहे मेरे साथ जो हो, मैं वो हर पीड़ा व कष्ट सहने के लिए तैयार हूँ जिनसे उन सभी लोगों को खुशी प्राप्त होती है जो मेरे अपने हैं। हम यहां तीन लोग रहते हैं मैं, मालिक और उनकी बेटी लक्ष्मी। लक्ष्मी बहुत सुंदर है। लक्ष्मी की माँ बचपन में ही स्वर्ग वाश हो गई जब लक्ष्मी बहुत छोटी थी। किन्तु लक्ष्मी के बाबा ने उसे कभी माँ की कमी नहीं खलने दी। खैर अब वक़्त हो चला है, मुझे अब जाना होगा तो मेरे प्रिय मित्रों तुम सबको मेरे इस पत्र का जवाब देना होगा, तुम सब अपना जवाब जरूर भेजना मैं इंतज़ार करूंगा।


                                                                                                                 तुम्हारा प्रिय मित्र

                                                                                                                      सोहन

                                                                                                                      मद्रास


समय बितता गया सब अपने अपने जीवन में व्यस्त होने लगें। कुछ दिनों के बाद सोहन के पास अपने मित्रों का एक पत्र आया डाक के जरिए। यह देखकर सोहन बहुत खुश हुआ और फिर उसने लिफ़ाफा खोलकर पत्र पढ़ना शुरू किया, जिसमें लिखा था...

10/ मार्च /1995

मद्रास ।

                 मेरे प्रिय मित्र तुम्हें हम सबका ढेर सारा प्यार और सत्कार।

                 हम सब यहां कुशल मंगल हैं और उम्मीद है कि तुम भी कुशल मंगल ही होगे। पिछले माह तुम्हारा पत्र मिला था हमें। उस पत्र को पढ़कर बहुत दुःख हुआ हम लोगों को तुम्हारी कठिनाइयों का सुनकर। अगर तुम्हारी जगह कोई और होता वह यह सब नहीं कर पाता और वापिस गाँव लौट जाता। परन्तु तुमने यह साबित कर दिया के मेरे मित्र, मनुष्य से बढ़कर कोई नहीं होता। मेरे प्रिय मित्र हम सबकी भगवान से यही प्रार्थना है कि वह तुम्हें जहां भी रखे बस खुश रखे और तुम भी हमें खुश रखने के लिए अपनी ओर से पत्र जरूर लिखते रहना और अपने माँ - बाबा को भी लिखते रहना। यह अच्छा रहेगा। इससे उन्हें तुम्हारी कमी महसूस नहीं होगी एवं उनका विश्वास भी तुम पर बना रहेगा। तो फिर दोस्त हम लोग चलते हैं। समय मिलते ही हम तुम्हें पत्र लिखकर पोस्ट ऑफिस से पोस्ट कर देंगे। मित्र तुम बिल्कुल भी परेशान मत होना। तुम यह समझो के हम सब तुम्हारे आस पास ही हैं। हम सबको तुम अपनी तरफ से इस पत्र का जवाब जरूर भेजना और साथ में अपना प्यार भी।

                                                                                                            तुम्हारे प्रिय मित्र

                                                                                                        स्वामी, प्रकाश और राकेश

                                                                                                          आदर्श नगर, मद्रास।


इस तरह से इनकी दोस्ती का सिलसिला चलता रहा और धीरे धीरे इनकी दोस्ती और गहरी होती चली गई। क्योंकि इन सबको एक दूसरे से प्यार और एक दूसरे पर भरोसा था। इसलिए हमेशा इन्हें खुशियाँ ही खुशियाँ मिली। आगे चलकर मद्रास के अंदर सोहन एक बहुत बड़ा नाम बनकर उभरा। मद्रास के अंदर अब उसका अपना कार्यशाला था। सोहन ने अपने काम में लगन और चेष्टा दिखाकर यह साबित कर दिया के मनुष्य के लिए कोई भी कार्य असंभव नहीं। वह चाहे तो सब कर सकता है परन्तु इसमें उसकी इच्छा हो तभी। अन्यथा सब बेकार है इत्यादि।


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