Vashu Sharma

Fantasy

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Vashu Sharma

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Khwab

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जानते हो तुम ये बात

कि मेरे हर वर्ण में तुम्हारा

प्रतिबिम्ब बसता है 

पर तुम ये भी तो

जानते हो न 

तुमसे कभी मिला ही नहीं

देखा ही नहीं कभी तुम्हें

बस ख्वाब में शायद 

कहीं देखा था एक बार

बस ...

तब से एक साया सा मुझ संग

रहने लगा ...

हालांकि तुमसे बातें हुयी है बहुत

सुना है तुमको कई बार....

पर ...

उन गहरे लफ्जों की छाप और

गहराई मुझमें बसती गई

दिल की गहराइयों से 

महसूस किए है हर शब्द तेरे

आज भी मेरी नज्में

मेरी कविताएँ तुम्हारे ही

शब्दों के लिबास से सजती हैं 

आज भी तुम्हारी 

धड़कनों की रवानी की धुन 

मेरी नज्मों को लयबद्ध करती है

सुनो !

कई बार तो 

मानो तुम्हारी यादों को

ओढ़ लेता हूँ 

और फिर 

कलम की स्याही में तुम उतर 

कागज़ पर शब्द दर शब्द 

ठहरने लगती हो

ढलने लगती हो तुम

मेरे ख़्यालों के साँचे में

तुम्हारी आवाज़ मानो

ख़्यालों से होती

मेरे अन्तस् पर 

छाने लगती है और मैं

हर शब्दों से होता हुआ

तुममें उतरता जाता हूँ

तुम्हारी गहरी गंभीर आवाज़ 

आज भी मेरे शब्दों के आधार हैं ...

बस! इन शब्दों के जरिए ही 

आज भी मुझमें हो तुम .. 

और हमेशा ही रहोगे

मुझे मेरे शब्दों से प्रेम है 

ठीक वैसे ही !

तुम्हारे ख्यालों से...


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